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संपादकीय

आर्थिक विकास का सामाजिक सूत्र

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लित आंदोलन पलरिका एक मासिक पलरिका है । इसके माध्यम से देश के वर्तमान एवं पारिस्थितिक विष्यों को बड़ी ्पष्टता के साथि जनता के ब़ीच विमर्ष हेतु पहुंचाने का का्य्त लक्या जाता है । भारत एक त़ीव्र गति से उभरत़ी अथि्तव्यवस्था का देश है । वैश्वक ्ति पर उच्च गति से बढ़त़ी ज़ीड़ीप़ी( सकल घरेलू उतपाद) के रूप में भारत़ी्य अथि्तव्यवस्था क़ी विशेषता को देखा जा सकता है । लकि़ी देश क़ी आलथि्तक स्थिति और उसके विकास का ्यह एक महतवपूर्ण सूचक अथिवा सूचकांक होता है । हमारे देश के विविध राजऩीलतक, सामाजिक एवं आलथि्तक घ्टनाक्रमों के ब़ीच भ़ी देश क़ी त़ीव्र गति से बढ़त़ी अथि्तव्यवस्था एवं विकास क़ी दर ह़ी विविधता में एकता को प्रदर्शित कर रहा है । आलथि्तक विकास के भारत़ी्य इतिहास क़ी ्यह अतुल्य उदाहरण है ।
देश क़ी ि़ीमाओं पर तनाव एवं पड़ोसी देश( पालक्तान, च़ीन, बांगिादेश इत्यादि) के साथि सामाजिक संसाधनों एवं राषट़्ी्य कू्टऩीलतक सिदांतों को समाहित कर प्रत्येक मोचचे पर श्ेष्ठता सिद करने के लिए वर्तमान मोद़ी सरकार क़ी प्रशंसा आज प्रतिपक्षी नेताओं द्ािा होना ्वाभाविक है । ऐसे संक्रमण काल में पूरे देश ने एक संगल्ठत राषट् का परिच्य भ़ी लद्या थिा । देश क़ी मां-बेल्ट्यों के अंतर्नाद को ऑपरेशन सिंदूर में परिवर्तित कर संसार के प्रत्येक चुनौत़ी का प्रत़ीकातमक प्रतिउत्तर ह़ी भारत़ी्य मऩीषा के जागरण का द्ोतक है ।
आज देश के विकास, सांस्कृतिक चेतना एवं सामाजिक समानता के का्या्तन्वयन का उचित सम्य एवं पारिस्थितिक उपस्थित है । ऐसे में प्रत्येक आदर्श नागरिक को भ़ी केवल
अधिकार का चिंतन न करके अपने कर्तव्य एवं अधिकार का बोध आवश्यक हो ग्या है । देश क़ी अथि्तव्यवस्था के विकास में हमाि़ी सोच भ़ी हमारे गिलहि़ी प्र्यास से कम महतवपूर्ण नहीं होगा । त़ीव्र गति से बढ़ने में जाति-पाति, ि़ीलत-रिवाज, मजहब-पंथि इत्यादि के ि़ीमा से ऊपर हमें राषट् और राषट़्ी्यता क़ी भावना के अभ्यास क़ी अब आवश्यकता है । पांचवें पा्यदान से चौथिे पा्यदान पर पहुंचना अत्यंत कल्ठन थिा, किंतु मोद़ी ज़ी क़ी निडर ऩीलत्यों ने संभव कर दिखा्या । चौथिे पा्यदान से त़ीििे पा्यदान पर अथि्तव्यवस्था को ले जाना भ़ी अत्यधिक कल्ठन है । चौथिे पा्यदान से त़ीििे पा्यदान के ब़ीच अनुपात ्या गैप बहुत बडा है । ऐसे में त़ीििे पा्यदान पर पहुंचने के लिए सामाजिक एवं पांलथिक एकता अत्यंत आवश्यक है ।
देश के अगले आलथि्तक विकास क़ी कड़ी में 40 करोड दलित समुदा्य क़ी अब महतवपूर्ण भूमिका बन गई है । देश भ़ी दलित समाज को समान अधिकार, सामाजिक सममान, उनके ्योगदान का मूल्यांकन एवं सामाजिक सममान्युकत तथिा भेदभावमुकत समाज के ग्ठन क़ी दिशा में अग्रसर है । दलित समाज एवं उनके अनेकों नेतृतवकर्ताओं को भ़ी सकारातमक चिंतन क़ी दिशा में एकमत होना होगा । डॉ ब़ी आर अंबेडकर के विचारों एवं उनके द्ािा बताए गए मागगों पर चलकर ह़ी सामाजिक समानता, सममान एवं देश के आलथि्तक विकास में दलित समाज क़ी प्रशंसऩी्य भूमिका बन सकेग़ी । एक संगल्ठत समाज ह़ी लकि़ी देश के चहुमूख़ी विकास क़ी आधारशिला है ।
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