के सनिभ्ख में सानुकूल एवं सार्थक परिणाम है । सामाजिक सुख-शाकनि कमी पृषठभमूव् में सामाजिक समरसता एक समाजशासरिामीय विषय है । यह आधुनिक समाजशासरि अथवा समाजविज्ान का एक नयायवािमी एवं संवैधानिक शासरि का स्ग् तथा शासरिमीय चिनिन है । यह दो या दो से अधिक लोगों को एक-िमूसरे के सन्निक्ट लाने और आपस में स्कनिि कर देने कमी प्राककृविक एवं सिाभाविक प्रक्रिया है । संसार के सभमी प्रकार के मानव समाज कमी सुदृढ़ता के लिए यह एक प्रशंसनमीय आग्ह एवं आवशयक पहल है । सामाजिक समरसता कमी अनुशंसा के अनुमोदक भमी अब यह मानने लगे हैं कि सामाजिक समबनधों को शाशिि एवं सुमधुर बनाए रखने के लिए सामाजिक समरसता शासरि एक कुंजमी है । विशि भर में प्रापि प्रतयेक विषम , प्रिमूवषि एवं रूवढ़ग्सि मानव समाज को सर्वप्रिय बनाने और निमीन
परिधान में सुसंगठित करने के लिए सामाजिक समरसता कमी अवधारणा एक अपिरहार्य धैर्य , सानतिना और विशिास है । सामाजिक समरसता दर्शन अपने आप में सामाजिक संगठन का कारक और कारण , दोनों है ।
सामाजिक समरसता दर्शन कमी अवधारणा एक भेदभावमु्ि समाज कमी निर्मात्री है । सामाजिक विषमता , कृत्रिम भेदभावपमूण्ख जािमीयता , रंगभेद अथवा प्रजाति भेद और आर्थिक भेदभाव पर आधारित िमूवषि मानसिकता एवं अनैतिकतायु्ि वयिहार कमी समाकपि हेतु संसार में सामाजिक समरसता दर्शन कमी अवधारणा एक अचमूक औषधि है । यह एक ऐसमी सामाजिक दशा है , जिसमें भेदभावरहित मानव समाज एक साथ आचार-वयिहार करता हुआ जमीिनयापन करता है और उसमें किसमी भमी प्रकार कमी आपस में िमीिार नहीं होिमी है । मानव समाज के सभमी िगगों कमी आपस में एकता एवं समबद्धता
को सथावपि करके उनको सुख-शाकनि प्रदान करने में सहायक होने के कारण सामाजिक समरसता कमी अवधारणा में किसमी भमी प्रकार कमी विषमता के िक्ण नहीं पाए जाते हैं । मानव समाज के संयु्ि परिवार , जो आज आर्थिक भेद पर आधारित स्तरीकरण के कारण िमूवषि हुआ , उसे सुधारकर पुनजतीवित करने हेतु सामाजिक समरसता सुख-समृद्धि , शाकनि एवं कलयाण कमी एक परिणति है ।
धार्मिक आधार पर सामाजिक समरसता को धर्माद्रित करते हुए भाििमीय समाजशाकसरियों ने कहा है कि पुरुषार्थ का प्रथम साधन ‘ धर्म ’ समाज से अलग नहीं है , इसलिए ‘ धार्मिक मानव समाज ’ कहा जाए अथवा ‘ सामाजिक धर्म ’ कहा जाए , सामाजिक समरसता दोनों हमी सनिभ्ख से जुड़मी हुई है । संसार में सामाजिक समरसता धर्म को सर्वग्ाह्य बनाने कमी ्मीठमी व्टवकया है । धर्म के सभमी दसों िक्ण सामाजिक समरसता से अभिपमूण्ख होने पर हमी मर्यादित होते हैं । आश््-धर्म कमी िमीढ़ सामाजिक समरसता है । यह लोगों को धर्माेन्ुर बनाए रखने कमी एक सक्् प्रेरणा है ।
सामाजिक समरसता का अभिप्राय आधयाकत्क दर्शन से भमी जुड़ा हुआ है । यह ्मूलयिान दार्शनिक शासरि कमी कड़मी है । भाििमीय दर्शन पर आधारित सामाजिक समरसता एक सामानय प्राककृविक प्रक्रिया है । यह मन , आदर्श , सहृदयता से समबकनधि भावनात्क अभिवयक्ि अथवा प्रक्रिया है , जिसे संसार में अवतारवाद का कारण भमी माना जाता है । दार्शनिक चिनिन के परिप्रेक्य में यह सपष्ट रूप से कहा गया है कि सामाजिक नियमों एवं मानदणडों के प्राककृविक सिरूप को बनाए रखने तथा मानव समाज में समरसता को सुदृढ़ करने के उद्ेशय से हमी समय-समय पर भाििमीय एवं अनयानय समाजों में ईश्वरीय ततिों को धारण करने वाले साधकों का जन् हुआ है , और उनके प्रतिपादित नियम भमी सार्वभौमिक होते हुए समरसतापमूण्ख रहे हैं । भाििमीय दर्शन इसमी को उदघोवषि करते हुए कहता है कि लोगों के वयिहार यदि आपस में समरसतापमूण्ख रहे तो भाईचारा एवं बनधुति का भाव उतपन्न होगा । �
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