May 2023_DA | Page 3

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आवश्यकता निष्पक्ष चिंतन की

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र्नाटक विधानसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश में संपन्न हुए निकाय चुनाव के परिणाम आ चुके हैं । कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा जहां दूसरी बार सत्ता हासिल करने का इतिहास रचने से चूक गयी , वहीं उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव परिणाम प्टटी के लिए थोड़ी सी राहत लेकर आए । लेकिन इन दोनों ही चुनाव में भाजपा को जो उममीद थी , वह पूरी न हो सकी । ऐसा कयों हुआ ? यह तो भाजपा के रणनीतिकार ही निर्धारित करेंगे , लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि दोनों ही राजयों में चुनाव के समय प्टटी नेताओं की उदासीनता , गुटबाजी और भितरघात को भी सपषट रूप से सभी ने देखा । प्टटी नेताओं और कार्यकर्ताओं में वय्पि गुटबाजी का ही यह परिणाम रहा कि कर्नाटक में पूर्व मुखयमंत्ी एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता जगदीश शेट््र भाजपा का दामन छोड़ कर कांग्ेस के खेमे में जा बै्ठे । यह अलग बात है कि वह विधानसभा चुनाव में अपनी हार को बचा न पाए , परनिु उनका प्टटी को छोड़ कर जाने का नकारातमक प्रभाव प्टटी और विधानसभा चुनाव पर पड़ा ।
चुनाव से पहले राजय में भाजपा सरकार ने अलपसंखयक आरक्षण को समापि कर दिया । प्टटी के इस कदम से माना जा रहा था कि इसका लाभ मिलेगा और कर्नाटक की अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा को बढ़त मिलेगी । पर ऐसा नहीं हुआ । चुनाव परिणाम यह बताते हैं कि अबकी बार चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 15 विधानसभा सीट में से एक भी सीट पर भाजपा को जीत नहीं मिली , वहीं कांग्ेस ने इनमें से 14 सीट पर विजय हासिल की , जबकि एक अनय सीट जनता दल ( सेकयुलर ) के पास चली गयी । जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 15 विधानसभा सीट में से सात सीट पर विजय हासिल की थी ।
इसी तरह राजय में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 36 विधानसभा सीट में अबकी बार भाजपा को म्त् 12 सीट ही मिली , जबकि 2018 में प्टटी ने 16 सीटों पर जीत हासिल की थी । इस बार चुनाव में कांग्ेस ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 21 सीटों पर अपना कब्् जमा लिया । ऐसा कयों हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर ढूंढना ही होगा । वासिि में देखा जाए तो कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान प्टटी नेताओं में तालमेल और सहयोग का अभाव रहा । प्टटी के शीर्ष नेतृति ने चुनाव में लिंगायत नेता बी एस येदिरुपप् को आगे रखा , लेकिन येदिरुपप् भी लिंगायत मतदाताओं को खींचने में असफल रहे और लिंगायत मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग कांग्ेस के खेमे में चला गया । लिंगायत मतदाताओं की नाराजगी का असर चिकमंगलूर में देखा गया , प्टटी महासचिव सी टी रवि सियं चुनाव में हार गए । लिंगायत के साथ ही वोकक्वलंगा , दलित और वनवासी वर्ग का भी वोट भाजपा को उस तरह से नहीं मिला , जैसा की सभी उममीद कर रहे थे । चुनाव के दौरान राजय के नेता “ अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग ” सुनाते हुए सिर्फ प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी , गृहमंत्ी अमित शाह , भाजपा अधयक्ष जे .
पी . नड्् के भी भरोसे ही बै्ठे रहे । प्टटी के शीर्ष नेताओं ने अपनी पूरी ताकत लगा दी , परनिु विधानसभा चुनाव परिणाम ने शीर्ष नेताओं की मेहनत को नकार दिया । राजय में भ्रषट्चार के मुद्े पर भी भाजपा बैकफुट पर रही और विपक्षी दलों के आरोपों पर जनता के सामने अपना पक्ष रखने में पूरी तरह असफल रही । प्रश्न यह भी है कि आखिर वह कौन से कारण रहे , जिनकी वजह से सियं भाजपा और र्षट्ीय सियं सेवक संघ से जुड़े लोगों में नाराजगी पैदा हुई और नाराजगी के कारण उनहोंने अघोषित रूप से सियं को चुनाव से दूर रखा ।
कुछ ऐसा ही हाल उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव का भी रहा । राजय निकाय चुनाव में भाजपा ने सभी नगर निगम में मेयर का पद हासिल कर लिया । इसके साथ ही 91 नगर पालिका परिषद और 191 नगर पंचायतों में भी प्टटी ने जीत दर्ज की , लेकिन 108 नगर पालिका परिषद और 353 नगर पंचायतों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा । इन चुनाव परिणाम ने राजय में भाजपा के सांसदों के साथ ही राजय सरकार के कई मंवत्यों और नेताओं की कमजोर ससथवियों का भी खुलासा कर दिया । भाजपा के उन कई सांसदों के क्षेत् में निकाय चुनाव का परिणाम प्टटी के विरुद्ध रहा , जो निकाय चुनाव से पहले लगातार “ सब कुछ सही ” होने का दावा कर रहे थे । निकाय चुनाव में राजय के मुखयमंत्ी योगी आदितयर्थ ने 50 से जय्दा जनसभाएं की , वट्पल इंजन की सरकार का नारा भी दिया , भाजपा शासन का मॉडल भी जनता के सामने रखा , लेकिन मुखयमंत्ी द््रा दिन-रात की गयी मेहनत के बाद भी वैसी सफलता नहीं मिली , जैसी उममीद की जा रही थी ।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव के परिणाम से यह बात भी सामने आ गयी है कि राजय सिर पर भाजपा संग्ठर में बड़े सिर पर बदलाव की आवशयकता है । कयोंकि 2014 के बाद से राजय सिर के भाजपा नेता प्रधानमंत्ी मोदी , गृहमंत्ी अमित शाह और भाजपा अधयक्ष जे . पी . नड्् के ऊपर आवरित हो चुके हैं । उनहें ऐसा लगता है कि शीर्ष सिर के यह सभी नेता उनकी गलतियों को सुधारेंगे और फिर चुनाव परिणाम को भाजपा के पक्ष में कर देंगे । लेकिन ऐसा नहीं है । मोदी सरकार के शासन में भाजपा ने उललेखनीय सफलता तो हासिल की , लेकिन राजय सिर के नेताओं ने प्टटी के लिए कई बार संकट पैदा किए । वह चाहे पसशचम बंगाल हो या फिर राजसथ्र , मधय प्रदेश या छत्तीसगढ़ । ऐसे में यह आवशयक हो गया है कि प्टटी का शीर्ष नेतृति राजय सिर पर भाजपा संघटन में आमूलचूल परिवर्तन के लिए कड़े और प्रभावी कदम उ्ठ्ए । अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले समय में तीन राजयों के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की ससथवि और बिगड़ सकती है , जिसका सीधा और नकारातमक असर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी होगा , जिससे निपटना भाजपा के लिए अब बहुत जरुरी हो गया है ।
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