March 2025_DA | Page 3

संपादकीय

सर्ता , सर्ानता और सर्रसता का प्रतीक र्हाकु म्भ

l

नातन हिन्दू धर्म की आस्ा , श्रद्ा एवं समर्पण का पर्व महाकुम्भ संपन्न हो गया । सनातन धर्म में मानयता है कि महाकुं्भ में हरिवेणी घाट पर स्ान करने से जीवन के समसत पापों से मुक्त मिलती है और शरीर एवं आतरा दोनों शुद् हो जाता है । अबकी बार महाकुं्भ का अद्भुत संयोग करीब 144 वर्ष बाद बना , यही कारण रहा कि अनुमानों के विपरीत 66 करोड़ से अधिक श्रद्ालु रहवरि स्ान के लिए गंगा तट पर पहुंचे । 13 फरवरी से लेकर 26 फरवरी तक चलने वाले महाकुम्भ का इतिहास अतयंत प्ाचीन है । पौराणिक मानयताओं के अनुसार युगों पहले अमृत की खोज में हुए समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश प्कट हुआ , जिसके लिए देवताओं एवं असुरों के बीच युद् हुआ । अमृत कलश की छीना झपटी के दौरान कलश से अमृत की बदूंदें छलक कर हरिद्ार , प्यागराज , उज्ैन और नासिक में गिरी और फिर इनिीं चार स्ानों पर कुं्भ का आयोजन किया जाने लगा ।
महाकुम्भ एक ऐसा अहद्तीय महापर्व है , जहां हवह्भन्न संस्कृतियां , ्भाषा और परमररा के सूत्र सहजता से आपस में मिलते हैं । यह विविधता में एकता के हसद्ांत का प्राण है । जाति-पांति , मत सहित अपनी पृष्ठ्भदूहर की चिंता करने के स्ान पर श्रद्ालु सामाजिक समरसता का सन्ेश देते हुए महाकुम्भ में जिस तरह एक साथ दिखाई देते हैं , वह समाज की सीमाओं से परे समता और समानता की ्भावना को बढावा देती हैं । सांस्कृतिक ह्भन्नताओं से यु्त एवं आधयाकतरकता की खोज में सनातन को जानने और समझने वाले लाखों श्रद्ालुओं की सारदूहिक ऊर्जा साव्म्भौमिक सतय और प्बोधन की खोज में संलग्न होती दिखती है और स्भी हर-हर गंगे का उदघोर लगाकर डुबकी लगाते हुए एकरस में डूबे हुए दिखाई देते हैं ।
्भारतीय समाज जीवन का यही समरस सवरूप उसकी वासतहवकता है जो महाकुं्भ में साक्ात रूप से दिखाई दी । महाकुं्भ में समाज जीवन की समरसता के जो दर्शन होते हैं , वहीं दर्शन संरदूण्म ्भारत राषट्र की एकरूपता के होते हैं । अंग्ेजीकाल में जाति , वर्ग , ्भाषा और ्भदूरा के आधार पर जो हव्भाजन की रेखा खींची गई , वह देश में सवतंरिता के 75 वर्ष बाद ्भी देखी जा सकती है , लेकिन महाकुं्भ में स्ान के लिए आने वाले श्रद्ालु जाति , वर्ग , ्भाषा , ्भदूरा और आर्थिक आधार पर होने के ्भे््भाव से विरत होकर
सारदूहिकता के ्भाव को प््हश्मत करते हुए दिखाई दिए । सववे ्भवनतु सुखिनः ,’ सववे सनतु निरामयाः पर आधारित ्भारतीय संस्कृति के रोम-रोम में वैश्वक सामाजिक समरसता की सोच रची-बसी है । सामाजिक समरसता का ्भाव जब तक प्तयेक वयक्त में नहीं आ जाता , तब तक अनाव्यक निम्नता-श्रेष्ठता के अह्भरान-सागर में आकण्ठ डूबी हुई मानव के मनःकस्हत की जड़ता समापत नहीं हो सकेगी और सामाजिक विषमताओं को समापत करने के लिए समाज सुधारकों द्ारा किए जा रहे प्यास सकारातरक परिणामदायी नहीं हो सकेंगे ।
महाकुं्भ के सफल आयोजन को देख कर सनातन विरोधी एक फिर फिर एकजुट होकर सामने आए और उनिोंने सनातन आस्ा , श्रद्ा , ्भक्त पर कई तरह के आरोप लगाए । इस ततवों ने भ्ारक एवं गलत प्चार करके सनातन के विरुद् रदूरा माहौल बनाने का प्यास किया । अखिलेश यादव , ममता बनजजी , लालदू प्साद जैसे सनातन विरोधियों ने महाकुम्भ की आड़ में वोट बैंक की कुकतसत राजनीति करते हुए सनातन धर्म का मखौल उड़ाया । इनको वामपंथी और ्भारत विरोधी ततवों का रदूरा सहयोग मिला । विदेश से सोशल मीडिया के माधयर से भ्र की कस्हत बनाने की चेषटा तो की गई , लेकिन उसका कोई विशेष प्रभाव आम जनमानस पर नहीं पड़ा ।
हां , यह अव्य हुआ कि उनकी कुकतसत मानसिकता स्भी के सामने आ गई । इस पर प्हतहरिया वय्त करते हुए प्धानमंरिी नरेंद्र मोदी ने कहा कि हिन्दू आस्ा से नफरत करने वाले यह लोग सदियों से किसी न किसी वेश में रहते रहे हैं । गुलामी की मानसिकता से घिरे यह लोग हमारे र्ठ , मंदिरों पर हमारे संत , संस्कृति व हसद्ांतों पर हमला करते रहते हैं । इसके बाद ्भी महाकुं्भ का सफल आयोजन हुआ और रदूरी ्भवयता के साथ हुआ । वासतव में महाकुं्भ मेला गौरवशाली सनातन संस्कृति का अह्भन्न अंग है , जो ्भारतीय समाज के धार्मिक , सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के प्तयेक पहलदू को संजोए हुए है । यह केवल एक धार्मिक आयोजन या स्ान का पर्व नहीं , बल्क समाज के सुधार , सामाजिक समरसता और आधयाकतरक उन्नति का महत्वपूर्ण मंच ्भी है । ऐसे में सनातन विरोधियों की आलोचना और प्लाप सदूय्म पर ्दूकने से जया्ा और कुछ नहीं है ।
ekpZ 2025 3