वोट ्भी मिला । आरहक्त सीटों पर ्भाजपा की सफलता दर अप्तयाहशत और आ्चय्मचकित करने वाली रही । ह््ली में ्भी दलितों का एक बडा ्भाग ्भाजपा को समर्थन में खड़ा हुआ । उनके सामने नमो बुद्ाए या अबेडकर वाद की राजनीतिक पैंतरेबाजी काम नहीं आई ।
ह््ली विधानस्भा चुनाव से पहले महाराषट्र और झारखंड में विधानस्भा चुनाव हुए थे । महाराषट्र डा . ्भीमराव आंबेडकर की संघर्म्भदूहर रही है । आंबेडकर ने नागपुर में बौद् धर्म अपनाया था । इसीलिए कहा जाता है कि महाराषट्र आंबेडकरवादियों और नमोबुद्ावाद की उर्वरक ्भदूहर है , जहां दलितों के अंदर राजनीतिक जागरूकता ्भी आसमान छूती है । महाराषट्र
विधान स्भा चुनाव के दौरान ह््ली विधानस्भा चुनाव की तरह ही उबाल और बवाल की राजनीतिक गरजी पैदा की गयी थी । ्भाजपा के विरुद् न केवल आरिरकता उतरन्न की गई थी , बल्क ्भाजपा का संहार करने की ्भी कसमें खायी गई थी । ्भाजपा विरोधी ग्ठबंधन के साथ नमो बुद्ाएं और आंबेडकरवादी खडे थे । यह ्भी घोषणा की गई थी कि दलित किसी ्भी कस्हत में ्भाजपा को सतिा हासिल नहीं करने देंगे । उधर कांग्ेस ्भी दलितों के समर्थन से जोश में थी । लेकिन जब महाराषट्र विधानस्भा का चुनाव
परिणाम आया , तब इन स्भी की राजनीति पर कु्ठराघात हो गया और जनता ने इनिें नकार दिया । राजय में ्भाजपा की जोरदार और अतुलनीय जीत हुई । झारंखड में ्भाजपा का रथ जरूर रुका , पर ्भाजपा के रथ को रोकने वाले दलित नहीं , बल्क पिछडे थे , जो ्भाजपा की कथित पिछड़ा विरोधी राजनीति से नाराज थे । हरियाणा और उतिर प््ेश के हर्कीरुर विधान स्भा की कहानी ्भी उ्लेखनीय है , जहां दलितों ने ्भाजपा का खुल कर साथ दिया ।
आंबेडकरवाद और नमो बुद्ाएं राजनीति को सफलता की चरमसीमा पर पहुंचाने का श्रेय मायावती और काशीराम को अव्य दिया जाता है । एक बार रदूण्म बहमुत और कई बार ग्ठबंधन सरकार बनाकर इसका सतिा सुख ्भी मायावती और काशीराम ने उ्ठाया । लेकिन इनकी राजनीति शक्त स्ायी नहीं रह सकी । आज उतिर प््ेश विधान स्भा में बसपा का एक मारि सदसय है और वह ्भी राजरदूत जाति का है । संसद में बसपा का प्हतहनहधतव नहीं है । पिछले लोकस्भा चुनावों में बसपा की उतिर प््ेश में ही नहीं , बल्क रदूरे देश में कोई ्भी सफलता नहीं मिली थी ।
नमो बुद्ाए और अबंडेकरवाद ्या-दोनों अलग-अलग राजनीतिक श्रेणियां हैं ? नमो बुद्ाए की अह्भवयक्त रखने वाले लोग रदूरी तरह से बौद् धर्म में दीहक्त और हशहक्त हो चुके हैं । उनिें हिन्दू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है । इसके विपरीत आंबेडकरवादी रदूरी तरह से हिन्दू धर्म से मु्त नहीं हुए हैं । लेकिन दोनों हिन्दू धर्म के विरुद् बोलने और राजनीतिक शक्त हासिल करने के लिए साथ-साथ हैं । आंबेडकरवादियों को हिन्दू धर्म से विछोह तो समझ आता है ्योंकि उनिें प्ताडित किया गया । लेकिन नमो बुद्ाए कहने वाले लोगों का हिन्दू धर्म से विछोह समझ में नहीं आता ? नमो बुद्ाए कहने वाले हिन्दू धर्म के लिए अपशब्ों का प्योग ्यों करते हैं ? हिन्दू धर्म की निरर्थक आलोचना ्यों करते हैं ? ऐसे कई प्श्न स्भी के सामने हैं । नमो बुद्ाए एवं आंबेडकरवादी हिन्ुओं की हर अवसर पर आलोचना और अपमान करते
हुए देखे जा सकते हैं । आज की राजनीति में इनकी कोई गिनती तक नहीं है । दलित इनिें एनजीओ छाप , गिरोहबाज और मुकसलर समर्थक मान कर खारिज करते हुए अनसुना कर रहे हैं ।
लोकस्भा चुनाव के दौरान संविधान समापत होने का डर फैलाकर भ्हरत करके दलितों की संरदूण्म एकता हवरक् सुनिश्चत नहीं कर सका । मोदी विरोध में संविधान को हथकंडा बनाया गया और मोदी को आंबेडकर विरोधी हसद् करने के स्भी प्यास विफल हो गए । लोकस्भा चुनाव में ध्का खाने के बाद ्भी नरेनद्र मोदी और ्भाजपा की शक्त बढी और वह अनिवार्य तौर पर अपनी शक्त बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं । इसमें उनिें सफलता ्भी मिली है । इसके साथ ही ्भाजपा ने दलितों को क्याणकारी योजनाओं से जोडकर अपनी जगह बनायी है ।
यादव और मुकसलर समीकरण के परिणाम से नमो बुद्ाए और आंबेडकरवादियों ने कुछ नहीं सीखा है । बिहार में लालदू का परिवार पिछले बीस वरषों से और अखिलेश यादव पिछले दस वरषों से सतिा से बाहर है । यादव और मुकसलर समीकरण अब सतिा से बाहर होने का राजनीतिक प्राण बन गया है । दलित और मुकसलर समीकरण ्भी कैसे जीवंत और शक्तशाली बन सकता है ? मुकसलर क्भी ्भी अपनी कीमत पर दलित को समर्थन दे नहीं सकते हैं । मुकसलर संस्ानों जैसे अलीगढ मुकसलर हव्वहवद्ालय और जामिया मिलिया में दलितों का कोई आरक्ण नहीं है । कोई मुकसलर नेता यह प्श्न नहीं उ्ठाता कि दलितों और पिछडों को मुकसलर संस्ानों में आरक्ण ्यों नहीं मिलता है । मुकसलर वर्ग उसी को समर्थन देते हैं जो ्भाजपा को हराने के लिए शक्त रखते हैं । उग् हिन्दू विरोधी गोलबंदी से दलित राजनीति को नुकसान ही है । मुकसलरों के साथ समीकरण बनाना नमो बुद्ाए और अबंडकरवादियों के लिए रदूरी तरह घाटे का सौदा है । हिन्दू विरोध के उग्वाद को यह छोडेंगे नहीं और मुकसलरों के साथ समीकरण की मानसिकता को बनाए रखने से सतिा राजनीति में इनिें कोई सफलता मिलने के आसार फ़िलहाल दिखाई नहीं देती है ।
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