June 2025_DA | Page 50

संवैधानिक गणतंत्

पहले दलौर के चतुनता्व में प्रतयेक सरीि के क्लए चतार उम्मीद्वतारों को चतुननता थता । यह चतार आम चतुनता्व के क्लए उम्मीद्वतार थे और दक्लत वर्गों और अन्य दोनों के क्न्वता्णचन षिेत् में आम चतुनता्व कता समय बढ़ा क्दयता गयता थता ।
अलग क्न्वता्णचन मणडल करी मतांग करने के क्लए अपने तर्कसंगत क्नषकष्ण सक्हत आंबेडकर ने 24 मताच्ण ' 1947 को रताजयों और अलपसंखयकों के अक्धकतार पर प्रस्तुत क्कए गए अपने ज्ञतापन और प्रतारूप लेख में दोहरतायता है । इस प्रतारूप में उन्होंने अलग क्न्वता्णचन मणडल करी प्रणतालरी को समतापत करने करी मतांग करी । इस बरीच पूनता समझलौते के बताद पंद्रह ्वष्ण बरीत गए लेक्कन
जनजताक्तयों के आरषिण को दस वर्षों बताद समतापत कर क्दयता जतानता चताक्हए । उन्होंने कहता, " एडमन्ड बर्क के शबदों में मैं उनको यह कहनता चताहतता हूं क्क, क्क क््वशताल सताम्रताजय और संकरीण्ण मनो्वृक्तयतां एक सताथ नहीं रह सकते हैं ।"
आंबेडकर इतने सहरी थे क्क आरषिण करी अ्वक्ध को बढ़ाने के क्लए अनतुचछेद 334 में बतार-बतार संशोधन करनता पड़ा । न्वरीनतम संक््वधतान( 62्वतां संशोधन) अक्धक्नयम 25 जन्वररी- 1990 को अन्तक््व्णषि क्कयता गयता, क्जसमें यह व्यवस्था करी गई है क्क सरीिों कता आरषिण संक््वधतान लतागू होने के बताद पचतास ्वष्ण तक जताररी रहेगता ।
संक््वधतान और क्हन्दू कोड करी ्वेदरी पर मनतुस्मृति को जलताने कता उनकता प्रयतास असफल रहता । यक्द ्वह आज जरीक््वत होते तो क्या सोचते जब साम्प्रदताक्यक और जताक्तगत क््वद्ेष चरम सरीमता पर हैं । बहतुत समय पू्व्ण 1929 में आंबेडकर ने क्लखता थता क्क मेरे क््वचतार से आज समय करी सबसे महत्वपूर्ण आ्वशयकतता लोगों में सतामतान्य रताषट्ररीयतता करी भता्वनता पैदता करने करी है । ऐसरी भता्वनता नहीं क्क ्वह सबसे पहले भतारतरीय है और बताद में क्हन्दू, मतुसलमतान अथ्वता क्संधरी और करताड़री है, ्वह प्रतारमभ से अन्त तक भतारतरीय है । स्वतंत् भतारत के क्लए आज डता. आंबेडकर के ्वह शबद और भरी संगत है । स्वतंत्तता, समतानतता और भताईचतारे को
अनतुसूक्चत जनजताक्तयों करी स्थिति में कोई सतुधतार नहीं हतुआ । स्वतंत्तता करी भोर और क््वभताजन के समय देश में खून करी नदरी बहने से पहले पेश क्कयता गयता थता । अतरीत में क्भन्न क्न्वता्णचन मणडल प्रणतालरी के कतारण साम्प्रदताक्यक मतभेद खतरनताक स्थिति तक बढ़ गए और स्वसथ रताषट्ररीय जरी्वन के क््वकतास में मतुखय बताधता क्सद्ध हतुई ।
तथताक्प अनतुसूक्चत जताक्तयों और अनतुसूक्चत जनजताक्तयों के क्लए आरक्षित सरीिें यथता्वत बनरी रहरी । ्वह उन सदसयों कता मखलौल उड़ाते थे जो जोश देकर कहते थे क्क अनतुसूक्चत जताक्तयों और
देश करी रताजनरीक्तक संस्थाओं में अनतुसूक्चत जनजताक्तयों के प्रक्तक्नक्धयों करी उपस्थिति से अनतुसूक्चत जताक्तयों के लोगों के सतामताक्जक और आक्थ्णक क््वकतास पर बहतुत कम प्रभता्व पड़ा । यहतां तक क्क संक््वधतान के अनतुचछेद 15( 4), 16( 4) 46, 330, 332 और 335 के अन्तर्गत बनताए गए क््वक्शषि प्रता्वधतान भरी अनतुसूक्चत जताक्तयों करी समस्याओं को हल करने में असफल रहे हैं । सतामताक्जक, आक्थ्णक और शैक्षणिक रूप से ्वह आज भरी समताज में सबसे नरीचे हैं ।
आंबेडकर एक हतताश वयसकत करी मलौत मरे ।
मजबूत बनताने और इस देश को संगक्ठत महतान राष्ट्र बनताने के क्लए भतारत को आज एक और आंबेडकर करी आ्वशयकतता है ।
( मुरलीधर सी. भंडारे महाराषट्र के वरिष्ठ
नेता थे । वह 1980 से 1994 तक राजयसभा सदस्य रहे । उनका यह लेख 1991 में लोकसभा सचिवालय द्ारा प्काशित ' सुप्नसद्ध सांसद( मोनोग्ाफ
सीरीज) डा. बी. आर. आंबेडकर ' नामक पुस्तक में सकममनलत किया गया था ।
पा्ठकों के लिए यह लेख साभार प्स्तुत किया गया हैं ।)
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