June 2025_DA | Page 39

को स्वयं झेलता । अपमतान और क्तरस्कार करी परीड़ता ने अनेक बतार उनके हृदय के अन्तरतम को झकझोर कर रख क्दयता थता । अपने करोड़ों बन्धतुओं के दतु: ख को देखकर ्वे दृढ़ होते चले गये । " अपनता यह जरी्वन इन्हीं परीक्ड़त मतान्वजनों के दतु: खों को दूर करने में हरी लगता दूंगता " यह संकलप क्दन प्रक्तक्दन और अक्धक मजबूत होतता चलता गयता । भलौक्तक सतुखों करी चताह, उच् पद प्रतापत करने करी महत्वताकतांक्षा, वयसकतगत प्रक्तष्ठा, परर्वतार आक्द कता मोह भरी उन्हें इस मताग्ण से कभरी क््वचक्लत न कर सकता । इसरी कतारण जब
आ्वशयकतता पड़ी तब ्वह केन्द्ररीय मंत्री कता प्रतिष्ठित पद छोड़कर नेहरू जरी के मंत्रिमंडल से बताहर आ गए । हैदरताबताद के क्नजताम तथता ्वेक्िकन क्सिरी के पोप द्वारता अकूत समपक्त् कता क्न्वेदन भरी उन्हें उनके मताग्ण से भ्रक्मत न कर सकता और ्वह क्नरन्तर अपने सतुक्नसशचत मताग्ण पर चलते रहे क्जसके द्वारता करोड़ों असपृशय
बन्धतुओं को सममताक्नत जरी्वन प्रतापत कर्वता सकें ।
आन्दोलनकारी समाज सुधारक
डता. आंबेडकर जरी के जरी्वन में एक महत्वपूर्ण बतात हमको क्दखलताई देतरी है ्वह यह है क्क ्वह पतुरतानरी सभरी मतान्यतताओं, आदशयों और व्यवस्थाओं को ध्वसत करनता नहीं चताहते तथता क्कसरी जताक्त यता ्वण्ण के ्वे शत्रु नहीं हैं, जो अच्छा है ्वह संभतालकर रखनता और जो अनता्वशयक है उसे हितानता हरी उन्हें अभरीषि है । इस दृसषि से ्वे एक " आन्दोलनकताररी " हैं । डता. आंबेडकर यह
जतानते थे क्क भतारतरीय दर्शन के मलौक्लक तत्व बहतुत उदात्त हैं । क्कन्ततु, क््वकृक्तयों, रूढ़ियों, ढोंग, पताखणड, कर्मकताणडों ए्वं परंपरताओं कता अनता्वशयक अक्तरेक, क्जसने उस समसत दर्शन जो सभरी मनतुषयों को समतान मतानतता है तथता करुणता, प्रेम, ममतता, बन्धतुत्व, दयता, षिमता, श्रद्धा आक्द सद्गुणों कता सन्देश देतता है ए्वं उसकता
संरषिण भरी करतता है, को ढंक क्लयता है, ्वहरी हमतारे परर्वत्णन कता मूलताधतार बनता रहे ।
सतुधतार्वतादरी आन्दोलन को चलताते समय हर षिण यह बतात समरण रखनरी होगरी क्क यक्द क्कसरी भरी कतारण से आपसरी प्रेम, ममतता और बन्धतुत्व कता भता्व समतापत हो गयता तो परर्वत्णन कता यह संघर्ष एक क्रूर ्वैमनसय में बदलकर अक्धकतम अक्धकतारों को पताने करी इच्छा रखने ्वताले गृहयतुद्ध में बदल जतायेगता । अत: ्वह कहते थे क्क हम यह बतात ध्यान में रखें क्क हमतारे देश में सभरी सद्गुणों कता दतातता, " धर्म " है । इस " धर्म " को अपने क््वशतुद्ध रूप में पतुनसथता्णक्पत करनता है । ढोंग, पताखणड, भेदभता्व, कर्मकताणड आक्द के परे " धर्म " में अन्तक्नक्ह्णत महतान सद्गुणों को संरक्षित करते हतुए हमें आगे बढ़नता है । कुछ लोग कहते हैं क्क धर्म करी मतान्व जरी्वन में कोई आ्वशयकतता नहीं है ।
डता. आंबेडकर लोगों के इस मत से सहमत नहीं थे । उन्होंने कहता- " कुछ लोग सोचते हैं क्क धर्म समताज के क्लए अक्न्वताय्ण नहीं है, मैं इस दृसषिकोण को नहीं मतानतता । मैं धर्म करी नीं्व को समताज के जरी्वन तथता व्यवहतार के क्लए अक्न्वताय्ण मतानतता हूं ।" मताकस्ण्वतादरी लोग धर्म को अफरीम कहकर उसकता क्तरस्कार करते हैं । धर्म के प्रक्त यह क््वचतार मताकस्ण्वतादरी दृसषिकोण करी आधतारक्शलता है । डता. आंबेडकर मताकस्ण्वताक्दयों के इस मत से सहमत नहीं थे । ्वह इस बतात से पूररी तरह आश्वसत थे क्क " धर्म " मनतुषय को न के्वल एक अच्छा चररत् क््वकक्सत करने में सहतायतता करतता है अक्पततु ्वह समताज के संरचनतातमक पषिों को भरी क्नधता्णरित करतता है । चररत् ए्वं क्शषिता को ्वह धर्म कता हरी अंग मतानते थे । ्वह कहते थे " धर्म " के प्रक्त न्वयतु्वकों को उदतासरीन देखकर मतुझे दतु: ख होतता है ।" डता. सताहब कता मताननता थता क्क " धर्म " कोई पंथ यता कर्मकताणड नहीं है । धर्म के नताम पर हो रहे क्नरर्थक ढोंग, पताखणड तथता व्यर्थाडमबरों को ्वे धर्म नहीं मतानते । धर्म से उनकता ततातपय्ण है- वयसकतगत, पतारर्वतारिक ए्वं सतामताक्जक व्यवस्थाओं को आदर्श रूप से संचताक्लत करने ्वतालता " नैक्तक दर्शन ", जो सभरी के क्लए श्ेयसकर है ्वहरी " धर्म " है । �
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