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संवैधानिक गणतंत्र

से उनहोंने उन अमानवीय कसथवतयों को समझा और अनुभव किया जिनके कारण हिनिू समाज धर्मशासत्रों के आधार पर उनको अलंधय समझा था और इन अमानवीय और गिरी हुई प्रथाओं के यश में तर्क दिया जाता था, इससे वह सवभाविक रूप से बहुत वखन् और दुखी थे । हरिजनों के प्रश्न पर गांधी जी के साथ उनके मतभेद थे, जिसके कारण गांधी जी को ' आमरण अनशन ' करना पड़ा । परनतु सौभागय से जय- गुरु( एम. आर. जयकर और तेज बहादुर सत्रु) समझौता हुआ था । यह कोई समझौता न होने के बाद भी समझदारी और सहानुभूति का विषय था । वह इसके लागू किए जाने के तरीके से संतुषट नहीं थे । वह इस विषय में बहुत संवेदनशील थे । उनहोंने उस दर्शन को सवीकार किया जो असमानताओं और वववभन्ताओं को दूर करता है ।
डा. आंबेडकर का अपने देश तथा देशवासियों को महान योगदान यह है कि मुखय रूप से उनहोंने भारतीय संविधान बनाया जो राषट्र के विकास, प्रगति और अकसततव का आधार है । सरदार बललभ भाई पटेल ने कहा था कि युगों पूर्व हमारे समाज में धर्मशासत्रों के लेखक के रूप में रिाह्मण मनु थे, भासतीय सवतंत्रता के इस युग में हमारे पास इस कार्य के लिए एक हरिजन है । वासतव में डा. आंबेडकर वयावहारिक रूप में भारतीय संविधान के जनक हैं । यद्वप इसकी रचना में सहायता के लिए उनके साथ कुशल मकसतषक थे, इसका अधिकांश भार उनके कंधों पर था और उनहोंने इस कठिन कार्य को करके समपूण्म राषट्र को संतुकषट प्रदान की । सभी ने संविधान का ढांचा तैयार करने और इसके प्रतयेक अनुचछेि के लिए उनका अतयवधक सममान और प्रशंसा
की ।
संविधान सभा के हम सभी सदसयों को यह विशवास हो गया था कि इस पवित्र कार्य को करने के लिए हमने सववोत्म वयक्त का चयन किया है । मेरा विशवास है कि इसे ठीक प्रकार से विरले ही कर सकते थे । डा. आंबेडकर ने भारतीय संविधान के निर्माता के रूप में राषट्र की महानतम सेवा की है । देश उनहें कृतज्ञतापूर्वक युगों-युगों तक याद करेगा ।
( लेखक संविधान सभा के सदसय और कर्नाटक के भूतपूर्व मंत्री थे । उनका यह लेख 1991 में लोकसभा सचिवालय
द्ारा प्रकाशित ' सुप्रवसद सांसद
( मोनोग्ाफ सीरीज) डा. बी. आर. आंबेडकर ' नामक पुसतक में सम्मवित किया गया था । पाठकों के लिए यह लेख
साभार प्रसतुत किया गया है ।)
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