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भ्रम की राजनीति और दलित-मुस्लिम गठजोड़
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वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव के परिणाम वैसे नहीं आए , जैसी आशा की जा रही थी । लगातार दस वर्षों के शासन में प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी की नीतियों एवं कार्यक्रमों का मूल उद्ेशय जहां भारत को अग्रणी देशों की पंक्त में खड़ा करना रहा , वहीं मोदी सरकार की नीतियों-कार्यक्रमों में समाज के उस वयक्त पर सबसे पहले धयान दिया गया , जिसे अंतिम पंक्त में सथान मिलता था । भारत की सवतंत्ता के बाद से अंतिम पंक्त में खड़े वयक्त को जिस तरह से केवल वोट के लिए उपयोग किया गया , उसी अंतिम पंक्त वाले वयक्त के उतथान के लिए किए गए प्रयासों का ही परिणाम है कि पिछले नौ वर्षों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी की सीमा से बाहर आ गए । इनमें सर्वाधिक लोग गरीब दलित , पिछड़े , वनवासी एवं वंचित वर्ग के हैं । गत दस वर्षों के दौरान दलित , पिछड़े , वनवासी वर्ग के लिए समर्पित मोदी सरकार के कायषों का ही परिणाम है कि आज भारत बडी तीब्र गति से विकास की ओर अग्रसर है । ऐसे में यह प्रश्न उठना सवाभाविक है कि लोकसभा परिणाम आशा की अनुरूप ्यों नहीं आए ? अंततोगतवा ्या कारण रहा ? जिसके चलते भाजपा को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वाली कई लोकसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा ? गंभीरता से अगर विश्लेषण किया जाए तो राजनीतिक रूप से मिली पराजय उस दलित-मुकसलम गठजोड़ का ही परिणाम था , जिसके लिए पिछले दस वर्षों से लगातार प्रयास किए जा रहे थे और जिस गठजोड़ के लिए भारत विरोधी बाह्य एवं आंतरिक शक्तयां सक्रिय थी । इनहीं शक्तयों के मोहरे के रूप में भाजपा विरोधी दलों ने जहां दलित , पिछड़े , वनवासी वर्ग को भ्रमित करने के लिए संविधान और लोकतंत् को समापत करने का ऐसा मायाजाल रचा , जिसने उस आम जनता को पूरी तरह भ्रमित कर दिया , जिसका वासतलवक कलयाण मोदी सरकार के कार्यकाल में ही संभव हुआ ।
दलित , पिछड़े एवं वनवासी वर्ग को भ्रमित करके भाजपा के विरुद्ध भड़काने के साथ ही एकता के नाम पर दलित-मुकसलम गठजोड़ को भी हवा दी गई और दलित , पिछड़े एवं वनवासी वर्ग को यह समझाया गया कि मुकसलम वर्ग के साथ राजनीतिक रूप से जुड़ने पर उनकी सभी समसयाओं का समाधान एक पल में हो जाएगा । भ्रम की राजनीति के साथ दलित-मुकसलम गठजोड़ से सत्ा हथियाने के इस खेल में वहीं सब ततव शामिल रहे , जो जवाहर लाल नेहरू विशवलवद्ालय में भारत विरोधी नारे लगाने के अलावा कथित रूप से दलित छात् रोहित वेमुलला की आतमहतया , दलित उतपीड़न कानून को फजजी से रूप से समापत करने , नागरिकता संशोधन कानून- 2019 , कथित किसान आंदोलन सहित कई मुद्ों को लेकर दलित-मुकसलम गठजोड़ की पैरवी करते आ रहे थे ।
मुद्ों के अभाव में मात् विरोध के नाम पर विरोध करने वाले इन ततवों का
एकमात् लक्य येन-केन-प्रकारेण सत्ा को हासिल करके भारत के एक बार फिर टुकड़े करना है । आशचय्यचकित करने वाली यह बात है कि इस पूरे खेल में दलित , पिछड़े एवं वनवासी वर्ग का उसी तरफ इसतेमाल किया जा रहा है , जिस तरह से जिन्ा ने पाकिसतान बनाने के लिए किया था । आशचय्य की बात यह भी है कि दलित-मुकसलम गठजोड़ को वह नेता भी समर्थन देते दिखाई दे रहे हैं , जो सार्वजनिक मंचों से दलित कलयाण के दावे करते हैं । इस कथित नेताओं के पास इस प्रश्न का उत्ि नहीं है कि जब दलित उतपीड़न की अधिकांश घटनाओं में मुकसलम आरोपी संलिपत पाए जाते हैं तो राजनीतिक रूप से दलित-मुकसलम गठजोड़ कैसे संभव हो सकता है ? वासतव में दलित समाज को इस गठजोड़ में घसीटने का प्रयास सपषट रूपेण भारत विरोधी आंतरिक शक्तयों का कुप्रयास है ।
ग्रामीण क्ेत्ों से लेकर नगरीय इलाकों में दलित हिनदुओं की बहू-बेटियां और उनका मान-सममान सुिलक्त नहीं है । उनके सवालभमान तथा धर्माभिमान को भंग करने के कुकतसत प्रयास आज भी जारी हैं । देश एवं समाज में अवयवसथा उतपन् करने के लिए भारत विरोधी शक्तयां दलितों का उपयोग करना चाहती हैं । यही कारण है कि सदैव पूरे हिनदू समाज को अपमानित करने वाले असुदुद्ीन औवेसी जैसे कई मुकसलम नेता भी दलित-मुकसलम गठजोड़ की वकालत करते हुए दिखाई देते हैं । पैसों के लोलूप तथाकथित दलित नेता उनके फेंके जाल में फंस चुके हैं , किनतु एक राषट्रभ्त , सवालभमानी और सच्ा दलित हिनदू इस भ्रम में न तो फंसा हैं और न फंसने वाला है । दलितों से अधिक राषट्रभ्त कोई नहीं हो सकता है । जब तलवार की नोंक पर बड़ी संखया में हिनदुओं को मुसलमान बनाया जा रहा था , तब इसी कट्टर हिनदू ने सिर पर मैला ढोना और चर्म-कर्म सवीकार कर लिया , किनतु सिर पर मौत देखकर भी इसलाम को ठुकरा दिया ।
आज दलितों को गुमराह करके उनके तयाग और बलिदान को कलंकित कर दलित-मुकसलम गठजोड़ के माधयम से सत्ा की मलाई खाने का सपना देखने वाले तथाकथित दलित और मुकसलम नेता लगातार सक्रिय हैं और इसका परिणाम लोकसभा चुनाव में भी दिखाई दिया है । भारत में मुकसलम-दलित गठजोड़ की नहीं , बकलक राषट्रीय सति पर सामाजिक एकता बनाने की आवशयकता है । आज तीव्र गति से हिनदू समाज को संगठित होते देख कर भारत विरोधी शक्तयां बौखलाहट में असहिषणु हो चुकी हैं । यहां समझने वाली बात यह है कि गठजोड़ सिर्फ अपने सवाथषों को पूरा करने के लिए किया जाता है । भारत का समाज सदैव एकता के पक् में रहा है , लेकिन दलित-मुकसलम गठजोड़ करने वाले सवाथजी , राषट्र एवं हिनदू समाज विरोधी एवं लालची ततवों से सावधान होने की आवशयकता है , जिससे देश एवं समाज को खंडित करने वाले ततवों को उचित और कठोर प्रतिउत्ि दिया जा सके ।
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