Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 62

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
थे और उस सांझ तारे को एकदम से गले लगा लू ।
ही कप्तान का आवाज़ सुनाई मदया मक हम मंमजल के
मखडकी के अंदर से ही हाथ फै ला कर मैने उसकी
करीब पहूँच गए हैं और कु छ ही देर में हमारा हवाई
मकस्सी ली ।
जाहज लेंमडंग हो जाएगा । मैने आखरी बार उस सांझ
हवाई जाहज को मेरे मन में चल रहे इन सारे
तारा को देखा । वह मेरे बहुत ही करीब नज़र आ रही
ख्यालों का क्या पता था वह तो अपनी ही धुन में
थी , एक पल में लगा मैने बचपन में देखी हुई वह
उड़ती जा रही थी और मैं अपनी दुमनया में खोई हुई
सपना साकार हो गयी । मैं बहुत देर तक उस नीली
थी । जैसे की खराब मौसम का ऐलान हुआ मैं सीट
नीली अंबर में बादलों के बीच उस सांझ तारे की
बेल्ट कस कर बांध कर रखी । कु छ ही देर में वह सफे द
आँख में आँख ममला कर सैर ही तो कर रही थी ।
बादल कहीं गायब हो गए भूरे रंग के बादलों के बीच
कु छ ही देर में हमारी हवाई जाहज भूमी की ओर
हवाई जाहज उड़ता चला । आगे जाते जाते वह रंग
गतीमान होने लगी । वह बादलों से मनकल कर धीरे
और भी गहरा होने लगा । कहीं कहीं मबजली कड़कने
धीरे धरती के तरफ बढने लगा । मेरी सामने मखडकी
लगी । मबजली की कड़कती आवाज़ हवाई जहाज की
पर बाररश के बू
ँदे टपटपाने लगे थे । एयर पोटा की
आवाज़ में कहीं गुम हो रही थी पर भूरे रंग के बादलों
मबजली , बाररश के साथ साथ हमारा स्वागत कर रही
के बीच से मबजली की झलक मदख रही थी । मैं समझ
थी । न जाने क्यों कु छ पल के मलए मेरे आँखें नम हो
गई की धरती पर मबजली चमक रही होगी मजसकी
गए । लगा मक ये अश्रु वो मपता के तो नहीं जो अपनी
झलक बादलों के उपर तक मदख रही है । लेमखका
बच्ची के तलाश में भटक रहा था । क्या यह अश्रु
अगर ररयमलटी में जीने लगी तो लेमखका कै से बनीं ?
अपनी बच्ची को पाकर उससे ममलने मक ख़ुशी से
मैं तो सपनो को घेरे में जी रही हूँ । ररयमलटी में भी कु छ
होगी या ...... मफर ... खोने की दुःख से ..?
नया ढूँढ लेना उस नया पन में एक नयी कहानी ढूँढ
मफर क्या था धरती की हर चीज मुझे धू
ंधली
लेना ही तो लेमखका की खामसयत है । नए नए शब्दों
सी नजर आने लगी । हमारी मुम्बई से कोलकत्ता की
से एक नयी कहानी रचना उन कहामनयों में रंग भर कर
सफर इस तरह रहा । हवाई जाहज धरती को छू ते ही
पाठकों को पेश करना कोई आसानी बात नहीं थी ।
हम सब लेमखकाएँ अपने अपने सामान कै ब से
इस बात पर एक बात याद आ गई बहूत खूब कहा है
मनकालने लगे और आगे की सफर की ओर बढ़ गए
मकसीने और मबल्कु ल सही कहा है , " जहाँ पहूँच न
पाता है रवी वहाँ पहूँच जाता है कवी " । वाह !
यही खयालात मेरे मन को छू गई , उन कड़कती
लता तेजेश्वर
बादलों को देख कर मेरे मन का ड़र बाहर उभर आया
Mob . no : 9004762999
। जगह जगह मबजली की झलक बादलों के उपर से
टचा की रोशनी जैसी नज़र आ रही थी । पल भर के
मलए लगा जैसे मकसी मपता ने अंधेरे में अपनी रास्ता
भटकी हुई बच्ची की तलाश में टचा लेकर ढूँढ रहा हो
। मदल में भय और ममता मलए कड़कड़ाती और
थरथरााती आवाज़ से अपनी लाड़ली बेटी को पुकार
रहा हो । एकदम से मेरे रोंगटे खड़े हो गए और रोम रोम
काँप उठे । मेरी अपनी बेटी की याद आ गई और मैं
सपनों को तोड़ कर सीधी बैठ गई । बहुत देर तक उन
आवाज़ों को महसूस करती रही । मबल्कु ल उसी वक्त
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017