Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 409

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
काल-वातावरि से प्रभामवत होती है । लेखक अपने व्यमक्तगत तथा सामामजक जीवन के अनुभव , जो उसके अपने भी हो सकते है या मकसी और से सुने हुए भी हो सकते है , को सामहमत्यक भार्षा में पुनरुत्पामदत करता है । ‘ मूल-रचना ’ भी मकसी घटना , अनुभव या मवचार का ही पुनसृ ाजन है । एक ऐमतहामसक प्रमक्रया का महस्सा है । उसी ऐमतहामसक प्रमक्रया का , मजसका महस्सा लेखक और अनुवादक दोनों है । मफर एक मौमलक और दूसरा गैर-मौमलक कै से हो सकता है ? लुकाच इस संदभा में साफ-साफ कहते है मक “ मवश्व सामहत्य के सारे महान लेखक सहज भाव से या थोड़ा बहुत चेतन ढंग से , अपनी रचना में प्रमतमबंबन की मसद्धांत का अनुसरि करते रहे है और अपने कला मसद्धांतों को स्पसे करने में इस मसद्धांत का अनुसरि करते रहे है । सारे महान लेखकों का प्रमुख उद्देश्य यथाथा का कलात्मक पुनरुत्पादन रहा है ... माक्सावादी सौन्दयाशास्त्र इस कें द्रीय प्रश्न का समाधान , मकसी बुमनयादी मौमलकता का दावा मकया बगैर , खोज लेता है ।” 71 लेमकन ‘ यथाथा का कलात्मक पुनरुत्पादन ’ “ इंमद्रयजन्य तथ्यों का फोटोग्रामफक पुनराचना ” 72 नहीं होनी चामहए । जो लोग यह मानते है मक मकसी
क्लामसक रचना का “ कला-उत्पादन एक ही बार संभव है ।” 73 लुकाच मानते हैं मक इस तरह की मवधाएं “ कलात्मक मवकास की मकसी कम मवकमसत मंमजल में ही संभव होती है ।” 74 मजसे मौमलक रचना कहा जा रहा है वह दरअसल ‘ यथाथा का कलात्मक पुनरुत्थान ’ है तो मफर ईमानदारी का यह बोझ अनुवादक के कं धे पर ही क्यों ? ‘ ईमानदारी ’ का यह प्रश्न दरअसल नैमतक प्रश्न न होकर , एक राजनीमतक प्रश्न है । जो मक हमेशा ‘ मूल पाठ ’ को उच्चत्तर ( Superior ) और अनूमदत पाठ को मनम्नतर ( Inferior ) सामबत करना चाहता है ।
रामायि के 300 संस्करि अगल-अलग भार्षाओँमें उपलब्ध हैं । कहीं राम नायक है और कहीं रावि खलनायक तो कहीं रावि नायक है और राम खलनायक । कहीं राम-सीता को ‘ आदशा दम्पमत ’ के रूप में प्रस्तुत मकया गया है तथा कहीं राम – सीता – लक्ष्मि भाई – बहन है । कहीं सीता रावि की पुत्री है । अब मकसे ‘ मूल पाठ ’ कहा जाये और मकसे ‘ ईमानदार ’ न होने की वजह से खाररज कर मदया जाये ? ये सारी कहामनयां अपने सांस्कृ मतक व ऐमतहामसक पररवेश में उपजी है । सबके अपने
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जॉजच लुकाच , लेख-सौंदयचशास्त्र के बारे में माक्सच
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वही , पृ . सं . -449
और एंगेल्स के ववचार , माक्सच-एंगेल्स , ‘ सादहत्य और
73
वही , पृ . सं . -449
कला ’, राहुल फाउं डेशन लखनऊ , प्रिम संस्करण-2006 ,
74
वही , पृ . सं . -457
पृ . सं . -456
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017