Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 380

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
हंिराज रहबर के िासहसययक कृ सतयों में राष्ट्रिाद और माक्िकिाद का द्वंद
पंकज कु मार
हंसराज रहबर माक्सावादी भी हैं और राष्ट्रवादी भी हैं , लेमकन माक्सावाद हो या राष्ट्रवाद दोनों का ढोंग उन्हें पसंद नहीं । अपने उपन्यास ‘ मबना रीढ़ का आदमी ’ में रहबर ने मुहम्मद हसन ररजवी के ढोंग को इस प्रकार व्यक्त मकया है मक ‘‘ मजस इंसान के मदल में एक बार मामकिं मसज्म का नूर दामखल हो गया , वह ‘ हमेशा क्रांमतकारी बना रहेगा और मौमलक मचंतन करेगा ।’’ 1 मनुष्ट्य को क्रांमतकारी अथवा माक्सावादी बने रहने के मलए एक ही जीवन में कई जन्म लेने पड़ते हैं । हंसराज ’ क्रांमतकारी अथवा माक्सावादी अध्ययन लम्बे अनुभव के ‘ बहुत बाद ‘ रहबर ’ बने । अपनी आत्मकथा ‘ मेरे सात जन्म में उन्होंने उल्लेख मकया है मक ‘‘ मैं अगस्त 1942 के भारत छोड़ों आंदेलन में मगरफ्तार हुआ । दो वर्षा जेल में रहा । दूसरा मवश्व युद्ध चल रहा था । पररमस्थमतयाँ तेजी से बदल रही हैं । मैंने गांधीवाद , राष्ट्रवाद , माक्सावाद और इमतहास का अध्ययन मकया । समझ बढ़ी और जेल में कम्युमनष्ठ बन गया । यह मेरा पाचवाँ जन्म था ’’ 2 रहबर के व्यमक्तत्व एवं कृ मतत्व के आलोक में इनकी मवचारधारा का सहज ही मूल्यांकन मकया जा सकता है । यमद उन्हीं के शब्दों में कहें तो ‘‘ मैं सैद्धामन्तक रूप से सन् 1942 तक समाजवादी या आदशावादी ही था । कहने की जरूरत नहीं । इसके बाद से माक्सावाद और जीवन ही मेरा प्रेरिास्रोत है ।’’ 3 जो व्यमक्त इस प्रकार की उद्घोर्षिा करता हुआ आगे बढ़ता है , उसके माक्सावाद होने की संमदनध ्टमसे से नहीं देखा जा सकता । ‘ रहबर ’ 1943 सं . कम्यूमनसे पाटी के समक्रय सदस्य रहे ।
मवरोध में खड़े हो जाते । चाहे इसकी कीमत उन्हें जो भी चुकानी परे चुनौती के मलए तैयार रहते थे । इस संदभा में दो घटनाओंका उल्लेख अपररहाया है । पहला ‘‘ सन् 63-64 के मदनों में में कम्यूमनस्ट पाटी पर डांगे का एकामधकार था । उन्हीं मदनों मकसी बात पर इन्होंने नेशनल कौमन्सल के प्रस्ताव से मवरोध जामहर मकया और जब बात बढ़ी तो मलख कर दे मदया मक मैं नेशनल कौमन्सल प्रस्ताव को नहीं मानता और उस पर अमल नहीं नहीं करूँ गा । मजसके पररिामस्वरूप इन्हें सन् 64 में पाटी से मनकाल मदया , मकन्तु ये झुके नहीं और लड़ाई जारी रखी ।’’ 4 दूसरा अपने इसी व्यमक्तत्व का पररचय इन्होंने तब भी मदया जब ये ‘ योद्धा सन्यासी मववेकानन्द ’ मलख रहे थे । यह तथ्य जगजामहर है मक ‘ रहबर ’ उस मवचारधारा के प्रबल समथाक हैं । मजसे माक्सावादी ‘ लेमननवादी ’ कहा जाता है । जब दल के नेतृत्व को पता चला मक ‘ रहबर ’ मववेकानन्द पर पुस्तक मलख रहे हैं , तो फरमान आया और तलब करके पूछा गया मक क्या ‘ रहबर ’ भी वही काम करेंगे जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कर रहे हैं ? तब रहबर जी अमडग रहे तो चेताया मक प्रकाशन से पूवा मदखा लेना । इस प्रकार रहबर माक्सावादी चेतना के आयामतत रूप अथवा मकसी मापदंडों को स्वीकार करने के बजाय भारतीय पररप्रेक्ष्य में लोकतांमत्रक मवमध का सहारा मलया , मजससे माक्सावादी मवचारधारा का उमचत उपयोग भारतीय जनमानस पर हो सके न मक मकसी रुढ़गत् नीमत को अपनाया जो इन्हें प्रगमतशील वैचाररकी का युग पुरुर्ष बनाता है । इस बात में स्पसेीकरि उनके आत्मकथा में ममलता है ।
‘‘ पौधा धरती से और मनुष्ट्य अपने अतीत से जीवन शमक्त ग्रहि करता है ।’’ 4
रहबर जी ने उल्लेख मकया है मक माओत्सेतु
ंग को
माक्सावादी मवचारधारा को , उन्होंने भारतीय पररप्रेक्ष्य
में आत्मसात मकया , इन्होंने इसे आँख मू
ंदकर नहीं ,
बमल्क व्यवहार की कसौटी पर परखकर इन्हें जो सही
और साथाक लगा , उसी का समथान मकया , अन्यथा
पाटी मवभामजत होने के बाद मैंने पढ़ा , उसने मलखा है-
‘‘ संस्कृ मत मवहीन सेना मन्द बुमद्ध सेना है , वह शत्रु को
नहीं नहीं हरा सकती । हमारी क्रांमत के मलए हमें दो
तरह के मसपामहयों की जरूरत है । बन्दूक के मसपाही
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017