Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 363

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
कु रीमतयों के घोर अमभशाप और सब ओर से मतरस्कृ त-त्याज जीवन की बेधक मवद्रूपता भी पाठक की चेतना को झकझोर देने वाले वेग के साथ मौजूद हैं । मशवप्रसाद के चररत्र घोर मवपरीत पररमस्थमतयों में भी अपनी अमडग मजजीमवर्षा की शमक्त के कारि पाठक की चेतना पर बरजोरी छा जाते हैं ।” 13 यह मजजीमवर्षा चाहे मजन्दगी को लेकर बौड़म में हो या आज़ादी को लेकर रोपन में , मशवप्रसाद मसंह के पात्रों को मनराश नहीं होने देती है । वे मन में आशा का दीप जलाये , अंत तक संघर्षारत हैं ।
‘ कमानाशा की हार ’ कहानी में समाज में फै ले अन्धमवश्वासों और सामामजक रूमढ़यों पर करारा चोट मकया गया है । इसी परम्परागत समाज का एक व्यमक्त भैरो पांडे भी है जो इस सामामजक रूमढ़ के सामने खड़ा ही नहीं होता है बमल्क उसे परास्त भी करता है । कमानाशा के मकनारे बसे हुए लोगों में एक मवश्वास प्रचमलत था मक यमद एक बार नदी बढ़ आये तो मबना मनुष्ट्य की बमल मलए लौटती नहीं । इसी गाँव में मवधवा फु लमत रहती है । मजसका भैरो पांडे के भाई कु लदीप के साथ प्रेम सम्बंध है । फु लमत कु लदीप के बच्चे की माँ बनने वाली थी इसी दौरान कु लदीप सामामजक मान-मयाादा के भय से गाँव छोड़कर भाग गया । पूरे गाँव में यह खबर फै ल जाती है मक “ फू लममतया रांड़ मेमना ले के बैठी है । मवधवा लड़की बेटा मबयाकर
सुहामगन बनी बैठी है ।” 14 फु लमत को कु लदीप का यह शारीररक संबन्ध भले ही पाप न लगे लेमकन पूरा गाँव पाप बोध की पीड़ा से कराह रहा है । पूरे गाँव का मानना है मक कमानाशा की बाढ़ फु लमत के पाप के कारि आयी है । मजसके कारि फु लमत और उसके दुधमु ंहे बच्चे को कमानाशा की बमल देना चाहता है । लेमकन इस बमल का मवरोध भैरो पांडे आकर करता है । मजस नदी की बाढ़ को बांध द्वारा रोका जा सकता है , उसे पूरा गाँव एक स्त्री और अबोध मशशु की बमल से रोक रहा है । इस कहानी में समाज की अमानवता और कु रूपता को बड़े ही यथाथापरक ढंग से रेखांमकत मकया गया है । उन पर सामामजक रूमढ़याँ और अन्धमवश्वास इतना हावी है मक उनके मलए मानवता और अमानवता में फका करना मुमश्कल हो गया है । उनकी सामामजक रूमढ़याँ मानवता का गला घोट रही है । मजसकी संवेदनाएँ मबल्कु ल मर गयी हैं । क्या हमारा समाज मकसी कमानाशा से कम है ? भैरो पांडे कहते हैं मक “ मैं आपके समाज को कमानाशा से कम नहीं समझता । मकन्तु , मैं एक-एक के पाप मगनाने लगू ँ तो यहाँ खड़े सारे लोगों को पररवार समेत कमानाशा के पेट में जाना पड़ेगा ... है कोई तैयार जाने को ..?” 15 इस कहानी की शुरुआत होती है- “ काले सांप का काटा आदमी बच सकता है , हलाहल जहर पीनेवाले की मौत रुक सकती है , मकन्तु मजस पौधे को एक बार
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017