Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 353

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
बनवाई । इस्लाम तो महन्दुस्तान में मेरे पहुँचने से पहले मौजुद था ।” 9 अदीब के समक्ष बाबर स्वीकार करता है मक बाबरी ममस्जद से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है । उपन्यास में बाबर की गवाही हेतु ए . फ्यूहर को सभा में हामजर होने का ऐलान मदया जाता है मजसमें अदीब उसे प्रश्न पूछता है मक ‘‘ तुमने बाबरी ममस्जद का वह मशलालेख पढ़ा था , जो अब पढ़ा नहीं जा सकता ।” 10 ए . फ्यूहर स्पसेता कहते हैं मक ‘‘ महजरी 930 यानी करीब 17 मसतम्बर सन्1523में इिाहीम लोदी ने उस ममस्जद की नींव रखवाई थी , और जो 10 मसतंबर 1524 में बन कर तैयार हुई , मजसे अब बाबरी ममस्जद कहा जाता है । यही बताने मैं बाबर के पास गया था !..... इस खुतबे को वक्त ने नहीं , उन लोगों ने बरबाद मकया है जो इस बाबरी ममस्जद और राम जन्मभूमम ममन्दर को मजन्दा ा़ रखना चाहते हैं ।’’ 11 यही वह ए . फ्यूहर सल्तनते बताामनयां के आमका यालॉजीकल सवे आफ इमण्डया का डायेरक्टर जनरल है “ मजसने 1889 में वह मशलालेख पढ़ा था , जो मेरे नाम पर थोपी जा रही ममस्जद में लगा हुआ था ... आज वह मशलालेख पढ़ा नहीं जा सकता क्योंमक जामहलों ने उसे पढ़ने लायक नहीं छोड़ा ।’’ 12 कट्टर महन्दु और मुमस्लम समाज को भ्रममत कर ममन्दर और ममस्जद के झगड़ों को मजन्दा रखकर अपना स्वाथा साधकर इन दोनों पर अपनी-अपनी सत्ता जमाना चाहते थे । आज तक इिाहीम लोदी पर उंगली न उठाए जाने के लेखक ने दो कारि बताए हैं । - ‘‘ पहली बात-वहाँ ममन्दर था ही नहीं और दूसरी बात मक ... इिाहीम लोदी की दादी महन्दू थी ... महन्दू दादी का खून उसकी रगों में बहता था , इसमलए भी उस पर इल्जाम नहीं लगाया गया .... इसमलए मक वो वतनी था और उस की दादी महन्दू थी । ’ 13 ’ इसी भ्रम के कारि आज पररमस्थमतयां इतनी मबगड़ चुकी है मक मानवता आज कराह उठी है । सत्ता को पाने के मलए नफरत और
महंसा की आड़ में न जाने दुमनया भर में मकतने पामकस्तान बनाये जाने की मुमहम चलती जा रही है । मशमक्षत समाज में भी इन पररमस्थमतयों में कोई सुधार आने के बजाए माहौल और अमधक मबगड़ता जा रहा है । इसी सन्दभा में नदीम अपने बेटे परवेज़ से कहता है मक ‘‘ तो अब मकतने पामकस्तान बनेंगे भाई ?... खुद पामकस्तान में से मकतने पामकस्तान पैदा होंगे ? पंजाब के सरायकी अपना सूबा माँग रहे हैं । पुराने मसंधी अपना मसन्धु देश बनाना चाहते हैं । जैसे यहाँ लोगों ने पंजाबी-उदू ा की लड़ाई-छेड़ दी है , वैसे ही वहाँ मसन्धी- उदू ा की लड़ाई चल रही है । और ... पख्तून अपना पख़्तूमनस्तान चाहते हैं । अताउल्ला मेंगल आजाद बलूमचस्तान माँग रहा है । और अपने मुहामजर भाई मसन्ध कराँची में अपना एक और पामकस्तान बनाना चाहते हैं ... सुना है मक वहाँ महन्दुस्तान में महन्दू भी महन्दुस्तामनयों से अपना महन्दुत्ववादी पामकस्तान माँग रहे हैं .... लंका में तममल अपना लंका अलग करना चाहते हैं ... सरहद पर मारकाट चल रही है छंब- जोररयाँ , खेमकरन की पहामडयाँ ा़ और मैदान खून से नहा रहे हैं ।’’ 14
अतः कहा जा सकता है मकतने पामकस्तान पूरे मवश्व की घटनाओं को समेटकर मलखा गया उपन्यास है इसमें आतंकवाद , साम्प्रदायमकता , जामतगत और रंगभेद के आधार पर मकये जा रहे अत्याचारों का ऐमतहामसक मचत्रि है । हर देश में नये-नये पामकस्तान बनाने के र्षड़यन्त्र रचे जा रहे हैं , मजन्हें धमा के नाम पर की जा रही घृमित राजनीमत अंजाम दे रही है । हजारों साल के इमतहास और अपने समाज को समझने के मलए यह उपन्यास संवेदनशीलता का काम करते हुए मानवता की भार्षा बोलता है । उपन्यास मवश्वभर के तमाम कटु सत्यों को उभारते हुए अन्ततः इस मनष्ट्कर्षा पर पहुँचता है मक प्राचीन समय से चली आ रही बांटने
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017