Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 32

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
मकया . वह भी कई-कई बार जगह बदलते-बदलते इस नवमनममात ओवरमिज के नीचे आ गया . एक ठेके दार की दया्टमसे ने उसे यहीं मजदूरी मदला दी . दो-तीन वर्षा तक चले मनम ाि काया ने उसे इतने समय तक स्थायी रोजी-रोटी का बंदोवस्त कर मदया . इसके साथ ही उसके रहने का भी मठकाना बना मदया . जमीन पर लेते हुए हररया ओवरमिज को ताकने में लगा था . अनजान से इस शहर में इसी ओवरमिज ने उसे सहारा मदया , उसकी रोजी-रोटी का पुख्ता इंतजाम कराया और अब उसके मलए घर भी बना हुआ है . समय कै से गुजर जाता है पता ही नहीं चलता है . उसके पास वैसे भी बहुत जमीन नहीं थी मक खेती के सहारे जीवन मनव ाह हो जाता . मात्र दो बीघा जमीन थी वो भी गाँव के बड़े साहूकार के पास मगरवी रखी हुई थी . लोगों का गाँव छोड़कर जाना होने लगा तो बड़े-बुजुगों के समझाने पर हररया ने भी पैतृक जमीन का मोह छोड़कर उसे साहूकार को औने-पौने बेच मदया . बचा- खुचा समान , छोटी सी गृहस्थी , पत्नी और बच्ची को समेटकर मजदूरी की तलाश में लगभग एक दशक पहले इस शहर में आ गया था . + “ क्या भैया , कहाँ ध्यान है , सही से ररक्शा चलाओ , नहीं तो उतार दो .” सवारी का उलाहना सुनकर हररया वतामान में आ गया . “ कछु नई ं सामहब , बस जरा ऐसे ही .” बात को अमहस्ता से टालने की गरज से हररया बुदबुदाया . वो जानता था मक उसके मलए उसका वतामान उसकी सवारी ही है . मबना इसके उसकी और उसके पररवार की गुजर-बसर नहीं होने वाली . रामकु ं ड के पास सवारी को उतार कर वो सुस्ताने लगा . दोपहरी की टीकाटीक दोपहरी में कु ं ड की दीवार के मकनारे बने पेड़ की छाया में ररक्शे को रोककर उसी का सहारा लेकर हररया लेट गया . रह-रह कर भोर का सपना उसे
परेशान कर रहा था . हररया मजतनी बार अपना ध्यान हटाने की कोमशश करता , उतनी ही बार वो सपना उसे और तीव्रता से याद आने लगता . परेशान होकर वो ररक्शे से उतर आया और टहलने लगा . हररया ने एक उदास सी मनगाह आसपास डाली . रामकु ं ड में भी पानी का कहीं नामोमनशान नहीं था . दोपहरी की चमक में ममट्टी के चटकने के मनशान स्पसे रूप से चमक रहे थे . हररया को लगा जैसे वह भी ऐसे चटकने लगा है जो गाँव से सबकु छ बेचकर शहर में रोजी-रोटी की तलाश में आया था . यहाँ आकर भी उसे सुकू न नहीं ममला . उसे अपने अंदर सूखे कु ं ड की तरह ही बहुत कु छ सूखा-सूखा सा महसूस हुआ . + रामदेई को सामान से भरा झोला देकर हररया चबूतरे पर बैठ बीड़ी सुलगाने के बाद तम्बाकू मलने लगा । मसर पर बँधा अंगोछा उतार अपने कं धे पर डाला और शरीर को इत्मीनान से फै ला मदया । चेहरे पर आज संतुमसे के भाव मदख रहे थे । रामदेई सामान को मनकाल यथावत जमाने लगी और राघव बैटरी के तारों में इंजीमनयररंग करता हुआ टी0वी0 चलाने की जुगाड़ करने लगा । ‘‘ चम्पा , एक लोटा पानी दै जइयो ।’’ आवाज लगाते हुए हररया ने बीड़ी के ठूँठ को जमीन में मसल कर फें क मदया । ‘‘ है नई ंयां , पानी लेन मुमखया के बगैचा तक गई है ।’’ रामदेई ने अंदर से ही जवाब मदया । ‘‘ जा मबररया ? सबेरे काये नई ंभरवा लओ ?’’ ‘‘ सबेरे गई हती पर पानी नई ं ममल पाओ हतो ।’’ रामदेई के जवाब देते-देते हररया उसके पास आकर खड़ा हो गया । तभी ‘‘ अम्मा , अ .... म् ...... मा ....’’ धीमी सी रोती- रोती आवाज पहचानी सी लगी तो हररया और रामदेई
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017