Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
मकया. वह भी कई-कई बार जगह बदलते-बदलते इस नवमनममात ओवरमिज के नीचे आ गया. एक ठेके दार की दया्टमसे ने उसे यहीं मजदूरी मदला दी. दो-तीन वर्षा तक चले मनम ाि काया ने उसे इतने समय तक स्थायी रोजी-रोटी का बंदोवस्त कर मदया. इसके साथ ही उसके रहने का भी मठकाना बना मदया. जमीन पर लेते हुए हररया ओवरमिज को ताकने में लगा था. अनजान से इस शहर में इसी ओवरमिज ने उसे सहारा मदया, उसकी रोजी-रोटी का पुख्ता इंतजाम कराया और अब उसके मलए घर भी बना हुआ है. समय कै से गुजर जाता है पता ही नहीं चलता है. उसके पास वैसे भी बहुत जमीन नहीं थी मक खेती के सहारे जीवन मनव ाह हो जाता. मात्र दो बीघा जमीन थी वो भी गाँव के बड़े साहूकार के पास मगरवी रखी हुई थी. लोगों का गाँव छोड़कर जाना होने लगा तो बड़े-बुजुगों के समझाने पर हररया ने भी पैतृक जमीन का मोह छोड़कर उसे साहूकार को औने-पौने बेच मदया. बचा- खुचा समान, छोटी सी गृहस्थी, पत्नी और बच्ची को समेटकर मजदूरी की तलाश में लगभग एक दशक पहले इस शहर में आ गया था. +“ क्या भैया, कहाँ ध्यान है, सही से ररक्शा चलाओ, नहीं तो उतार दो.” सवारी का उलाहना सुनकर हररया वतामान में आ गया.“ कछु नई ं सामहब, बस जरा ऐसे ही.” बात को अमहस्ता से टालने की गरज से हररया बुदबुदाया. वो जानता था मक उसके मलए उसका वतामान उसकी सवारी ही है. मबना इसके उसकी और उसके पररवार की गुजर-बसर नहीं होने वाली. रामकु ं ड के पास सवारी को उतार कर वो सुस्ताने लगा. दोपहरी की टीकाटीक दोपहरी में कु ं ड की दीवार के मकनारे बने पेड़ की छाया में ररक्शे को रोककर उसी का सहारा लेकर हररया लेट गया. रह-रह कर भोर का सपना उसे
परेशान कर रहा था. हररया मजतनी बार अपना ध्यान हटाने की कोमशश करता, उतनी ही बार वो सपना उसे और तीव्रता से याद आने लगता. परेशान होकर वो ररक्शे से उतर आया और टहलने लगा. हररया ने एक उदास सी मनगाह आसपास डाली. रामकु ं ड में भी पानी का कहीं नामोमनशान नहीं था. दोपहरी की चमक में ममट्टी के चटकने के मनशान स्पसे रूप से चमक रहे थे. हररया को लगा जैसे वह भी ऐसे चटकने लगा है जो गाँव से सबकु छ बेचकर शहर में रोजी-रोटी की तलाश में आया था. यहाँ आकर भी उसे सुकू न नहीं ममला. उसे अपने अंदर सूखे कु ं ड की तरह ही बहुत कु छ सूखा-सूखा सा महसूस हुआ. + रामदेई को सामान से भरा झोला देकर हररया चबूतरे पर बैठ बीड़ी सुलगाने के बाद तम्बाकू मलने लगा । मसर पर बँधा अंगोछा उतार अपने कं धे पर डाला और शरीर को इत्मीनान से फै ला मदया । चेहरे पर आज संतुमसे के भाव मदख रहे थे । रामदेई सामान को मनकाल यथावत जमाने लगी और राघव बैटरी के तारों में इंजीमनयररंग करता हुआ टी0वी0 चलाने की जुगाड़ करने लगा ।‘‘ चम्पा, एक लोटा पानी दै जइयो ।’’ आवाज लगाते हुए हररया ने बीड़ी के ठूँठ को जमीन में मसल कर फें क मदया ।‘‘ है नई ंयां, पानी लेन मुमखया के बगैचा तक गई है ।’’ रामदेई ने अंदर से ही जवाब मदया ।‘‘ जा मबररया? सबेरे काये नई ंभरवा लओ?’’‘‘ सबेरे गई हती पर पानी नई ं ममल पाओ हतो ।’’ रामदेई के जवाब देते-देते हररया उसके पास आकर खड़ा हो गया । तभी‘‘ अम्मा, अ.... म्...... मा....’’ धीमी सी रोती- रोती आवाज पहचानी सी लगी तो हररया और रामदेई
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017