Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
लोग कह्याँ ममरां बावरी, सासु कह्याँ कु लनासी री ।” ३ ररश्तेदार या समाज उसे कु लनासी भले ही कहे, मीरा अपने मवचारों में अटल रहती है । मीरा ने अपने अमस्तत्व को कु चलने नहीं मदया ।
युग की ओर ्टमसेपात करते हैं तो पाते हैं मक उस वक्त मीरा का युग राजनैमतक की अपेक्षा धाममाक ्टमसे से बरजोर था । तब मुगलों का शासन कें द्र मदल्ही था । अत: राजस्थान मुगलों की द्वेर्षपूिा बबारता से सुरमक्षत था । मीरा के जन्म समय ज्ञानयोग की धारा का पूिा प्रभाव था, जो उसके पदों में सहज ममलता है । मीरा ने अपने पदों में‘ मीरा के प्रभु हरर अमवनाशी, देस्यु प्राि अकोरा’ बार-बार कहा है ।‘ मैं मगरधर के घर जाऊ ।’,‘ हरर थें हरया जि री भीर ।’ आमद पदों में भी मनगु ाि समपाि भाव व्यक्त मकया है । उसके युग में प्रेमानुबंध धारा भी बरजोर थी । लोग लौमकक भावनाओं के माध्यम से अलौमकक तत्व की प्रामप्त में लगे थे ।‘ हरर म्हारा जीवन प्राि अधार ।’,‘ माई री म्हा मलयाँ गोमवंदानं मोल ।’ जैसे कई पद इस धारा से सम्बंमधत हैं । साथ-साथ भमक्तभाव की धारा भी मवद्यमान थी । अत: मीरा में ज्ञान-योग, प्रेमानुबंध तथा भमक्तभाव; तीनों प्रकार की भमक्त का प्रभाव देखने ममलता है । कह सकते हैं मक मीरा ने तत्कालीन धाममाक मवचारधाराओं तथा भमक्तधाराओं का सममन्वत रूप स्वीकार मकया था । धाममाक संप्रदाय की जो बात उसे अच्छी लगी; अपनाई । इस प्रकार अपने युग में प्रवतामान सभी सम्प्रदायों को, धाममाक समाज को मीरा ने अपने धाममाक-जीवन में अपनाया ।
उसकी सामामजक पृष्ठभूमम वन्दनीय, सराहनीय है, वतामान प्रासंमगक है ।
िन्द्दभक-िंके त:
१. अरुि चतुवेदी( सं.), मीरा एक मूल्यांकन, पृ. प्राक्कथन से
२. वही, पृ. १११
३. डॉ. कृ ष्ट्िदेव शमाा( सं.), मीराबाई-पदावली, पृ. १२१
सहंदी सिभाग,
नीमा गल्िक आिडकि कॉलेज, गोज़ाररया-३८२८२५
कु लममलाकर कह सकते हैं मक मीरा का सामंतवादी उन्मूलन सराहनीय है । उसने पदाा प्रथा, सती प्रथा, मवधवा की करुिता जैसी सामंती मयाादाओं का सशक्त मवरोध मकया । जीवन-व्यवहार में उसकी त्याग- भावना समाज के मलए प्रेरिा समान है । यों तो मीरा के
जीवन का महत्वपूिा अंग भमक्त और दशान है, मफर भी Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017