Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 267

मीरा और िमाज: एक पुनमू कल्यांकन
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725

मीरा और िमाज: एक पुनमू कल्यांकन

- डॉ. िोमाभाई पिेल
मध्यकालीन भमक्त युग को‘ सुविा युग’ कहलाने में अनेक संत-कमवयों का प्रदान अहममयत रखता है । भमक्तकालीन कमवयों ने अनेक आयामों पर अपना जो मवचार व्यक्त मकया वह न के वल अपनी सीमा तक सीममत रहा, बमल्क कालजयी मसद्ध हुआ । ऐसे कालजयी मवचार प्रस्तुत करनेवाले संत-कमवयों के नाम लें तो लम्बी फे हररस्त बन जाएगी । भमक्तकालीन कमवयों की अनेक मवलक्षिताओं का जो वतामान पररप्रेक्ष्य में समाज को उपयोगी हो, उसका पुनमू ाल्यांकन होना आवश्यक ही; नहीं अमनवाया है । यों भी मकसी रचना या रचनाकार का सही मूल्यांकन समय ही करता है । मध्य युग को स्वमिाम बनाने में मीराबाई का योगदान कम नहीं । मीरा बार-बार याद की जाने वाली महान कवमयत्री हैं । भमक्त आन्दोलन की स्वमिाम मवरासत में मीरा की कमवता हमारे आधुमनक समाज के मलए भी पथप्रदशाक है ।“ आज यमद स्त्री आन्दोलन को मीरा की कमवता में रौशनी नजर आती है या वे सामहत्य मवमशा के कें द्र में हैं तो इसका उनकी कमवताओंका युगांतकारी प्रभाव है ।” १ मीरा न के वल राजस्थान की; परन्तु समूचे भारतवर्षा की बड़ी अनुपम कवमयत्री हैं । मीरा की कमवता का ममा आज व्यापक समाज तक पहुचें यह जरुरी है । क्योंमक समीक्षकों, शोधकतााओं, संकलनकतााओं द्वारा मीरा उतनी मात्रा में याद नहीं की गयी या लोकमप्रय नहीं हुई मजतनी मात्रा में भक्तों, साधू-संतों या सरल स्त्री-पुरुर्षों द्वारा । करुिता यह है मक समाज में मीरा की भमक्त को मजतना प्राधान्य मदया है उतना प्राय: उसके जीवन और समाज के पारस्पररक अंत: संबंधों को नहीं मदया ।
मीरा के सामामजक, दाशामनक मवचारों को, मीरा को आज तकरीबन पांच सौ से अमधक वर्षा बाद याद मकया जाना उसकी महत्ता को स्वत: ही उजागर करता है । आशीर्ष मससोमदया का कहना है,“ भमक्त आन्दोलन के प्रेरिास्रोत रामानुज और रामानंद थे । मकन्तु मध्ययुगीन भमक्त आन्दोलन की एकमात्र अत्यंत प्रभावशाली ममहला भक्त कवमयत्री मीराबाई थी, मजसने मवरासत में भमक्त का समग्र दशान भावी पीमढयों को मदया । इसीमलए उसे भक्त मशरोममि, भमक्त भागीरथी, भमक्त भगवती आमद मवशेर्षिों से सम्बोमधत मकया जाता है । मीरा जन-जन की पीड़ा को समझती थी । भारतीय महन्दू मजस मुगलकालीन अन्याय के संकट से गुजर रहा था मीरा ने उस पीड़ा को पहचाना ।” २ सारा जग जानता है की मीरा की भमक्त ने राष्ट्रीय स्तर पर लोकोन्मुख, मानवीय, समतामूलक ्टमसे स्थामपत की । लेमकन हम यह न भूलें मक वतामान नारी सशमक्तकरि के दौर में सामामजक मवर्षमताओंके मखलाफ आवाज़ उठाने वाली नाररयों में मीरा का नाम भी अमर है ।
प्रथम हमारे मलए भारतीय भक्त-कमवमयत्री समाज में मीरा का स्थान मनधााररत करना उमचत होगा । भमक्त आन्दोलन मातृभार्षाओं में रचनाशीलता, आत्मामभव्यमक्त की स्वतंत्रता के साथ-साथ सशक्त स्त्री-स्वर को लेकर आया । इस काल में भारत की अन्य भार्षाओं में आंदाल( तममल), अक्का महादेवी( कन्नड़), बमहिा तथा मुक्ताबाई( मराठी) की तरह महंदी में मीरा की भूममका महत्वपूिा मानी जाती है । यू तो मीरा से पहले कु छ चारि कमवयमत्रयों( झीमा, पद्मा, कक्रे ची, मबरजू) के नाम ममलते हैं, लेमकन सशक्त स्त्री काव्य का आरम्भ मीरा की कमवता से माना जाता है । उनकी आवाज़ में स्त्री-स्वाधीनता की आकांक्षा से प्रेररत स्वर है, मजसे हम स्त्री-चेतना कह सकते हैं । भाव और भार्षा की ्टमसे से मीरा ने के वल
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017