Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 151

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
बौिकालीन नारी : दिा और सदिा
िोध िारांि
अरुण कु मार सनर्ाद
िोिच्छात्र संस्कृ ि िथा प्राकृ ि भाषा शवभार्ग लखनऊ शवश्वशवद्यालय , लखनऊ
हमारे देि में प्राचीनकाल से ही नाररयों को बहुि सम्मान की दृशष्ट से देखा र्गया है । वैशदककाल में िो उन्हें हर प्रकार की छू ट थी । वे सारे कायम पुरुषों के समान कर सकिी थीं । परन्िु बौद्धकाल में शियों की शस्थशि बहुि अच्छी नहीं थी । पुत्र और पुत्री में ही भेदभाव थे । बेटी और बहू में भेदभाव थे । प्रस्िुि िोिपत्र में उनकी इन्हीं सब बािों की चचाम की र्गयी है ।
की िडक : नारी-सस्थसत , बौिकाल , ितकमानकाल ।
बौद्धकालीन समय में मस्त्रयाँ संयुक्त पररवार में रहती थीं । उन्हें पमत के साथ-ही-साथ अपने सास- श्वसुर की भी आज्ञा का पालन करना होता था । उनकी की आज्ञा ममलने पर वे अमतमथयों से ममल बोल सकती थीं । मवमानवत्थु में एक जगह मलखा है मक- एक सास ने अपनी बहू को मूसर से इसमलए मार डाला , क्योंमक उसने सास से मबना पूछे एक श्रमि को
मभक्षा दे दी थी । 1 कु छ बहुएँ भी सास-श्वसुर पर अत्याचार करती थीं । 2 ये बातें आज भी समाज में देखने को ममलती हैं मक- कोई सास कहीं बहू को प्रतामड़त कर रही है , तो कहीं बहू सास को प्रतामड़त का रही है । पमत ही पत्नी के मलए परमात्मा था । यह बहुत पहले से चला आ रहा है । परन्तु ये धरातल पर बहुत ही कम देखने सुनने को ममलता है । पत्नी को तो भगवान बुद्ध ने भी सबसे अच्छी ममत्र बताया है-
“ भररया च परमो िखा ।” 3
उन्होंने कहा मक- माता कु मटया के समान है और पत्नी घोंसले से समान –
“ मातरं कसटकं ब्रुसि , भररयं ब्रूसि कु लावकं ।” 4
बुद्ध का तो यह भी कहना था मक- ममहलायें पुरुर्षों से अमधक बुमद्धमान और गुिवान होती हैं –
“ इत्थीसप सह एकासच्चया , िेय्या पोिजनासधप मेधासवनी िीलवती , िस्िुिेवा पसतब्बता ।
तस्िा यो जायसत पोिो , िूरो होसत सदिम्पसत । तासदिा िुभसगया पुत्ते , रज्जं सप अनुिािती सत ।” 5
अपवाद स्वरूप कु छ मवपरीत आचरि वाले स्त्री-पुरुर्ष के उदाहरि भी उस समय में देखने को ममले हैं । जातक में में एक स्थान पर कहा गया है मक- मस्त्रयों पर भरोसा नहीं करना चामहए क्योंमक वे मकसी एक
1
बौद्ध सामहत्य में भारतीय समाज , डॉ . परमानन्द मसंह ,
3 पामल एवं प्राकृ त मवद्या एक तुलनात्मक अध्ययन , डॉ .
हलधर प्रकाशन वारािसी , प्रथम संस्करि 1996 ई ., पृष्ठ
मवजय कु मार जैन , मैत्री प्रकाशन , गोमतीनगर , लखनऊ ,
108
प्रथम संस्करि 2006 ई ., पृष्ठ 157
2
बौद्ध सामहत्य में भारतीय समाज , डॉ . परमानन्द मसंह ,
4 पामल एवं प्राकृ त मवद्या एक तुलनात्मक अध्ययन , डॉ .
हलधर प्रकाशन वारािसी , प्रथम संस्करि 1996 ई ., पृष्ठ
मवजय कु मार जैन , मैत्री प्रकाशन , गोमतीनगर , लखनऊ ,
113
प्रथम संस्करि 2006 ई ., पृष्ठ 157
5
पामल एवं प्राकृ त मवद्या एक तुलनात्मक अध्ययन , डॉ .
मवजय कु मार जैन , मैत्री प्रकाशन , गोमतीनगर , लखनऊ ,
प्रथम संस्करि 2006 ई ., पृष्ठ 157
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017