Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 140

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
“ िंजीि के‘ धार’ उपन्द्याि में आसदिािी सचंतन”
मनीष कु मार पी-एच ॰ डी ॰ शोधाथी
महंदी मवभाग काशी महन्दू मवश्वमवद्यालय, वारािसी
मो.- 7725076980 ईमेल- manish2190 @ gmail. com
आमदवासी से हमारा अमभप्राय देश के मूल एवं प्राचीनतम मनवामसयों से है । आज भारत आमथाक मवकास के पथ पर तेज गमत से आगे बढ़ता जा रहा है, इसके बावजूद आज भी समाज का एक वगा ऐसा है जो हजारों साल पुरानी परम्पराओंके साथ जी रहा है । भारत के आमदवासी आज भी जंगली पररमस्थतयों में मकसी तरह से अपना जीवन- यापन कर रहे हैं ।
आमदवासी जनजीवन के संदभा में डॉ. गोरखनाथ मतवारी ने मलखा है –“ संपूिा मनुष्ट्य का एक मवभाग उन लोगों का भी है जो सभ्यता की दौड़ में बहुत पीछे छु ट गए हैं । उन्हें आमदवासी कहा जाता है ।” 1 आधुमनक सामामजक व्यवस्था पर यमद कोई मपछड़ा हुआ समाज है तो वह आमदवासी समाज है जो समदयों से जंगलों तथा पवातीय क्षेत्रों में रहने को मववश है और सभी साधन-सुमवधाओं से वंमचत है । यह आमदवासी समाज अज्ञान तथा अमशक्षा के कारि अभी भी अपनी रूमढ़गत मान्यताओं और परम्पराओं से बाहर नहीं आ पाया है, इसीमलए समाज में सभी प्रकार से दममत हुआ है, क्योंमक वह अपनी परम्पराओं से जकड़ा हुआ है ।
“ आज आमदवामसयों में चेतना जगी है । वह नई-नई मवचारधाराओं और क्रांमतयों से पररमचत हुए हैं, मजनके पररप्रेक्ष्य में वह अपनी नई पुरानी मस्थयों को तोलने लगा है । उसमें अपने होने न होने, अपने हकों के अमस्तत्व की वतामान मस्तमथ, अपने साथ हुए भेदभाव व अन्याय
का बोध भी जगा है ।” 2 सामान्यतः यमद कहा जाये तो आमदवासी समाज के मवर्षय में मकया गया मवचार-मचंतन ही आमदवासी मचंतन है । आमदवादी मचंतन वह मचंतन है, मजसमें आमदवासी जनजामतयों के जीवन व्यवहार पर गंभीरता से मवचार-मवमशा मकया जाता है तथा उसकी समस्याओं को समाज के सामने प्रस्तुत मकया जाता है ।
वस्तुतः आमदवासी मचंतन वतामान काल की उपज है । आजादी के पिात देश के लोगों को अपनी उन्नमत और मवकास का अवसर ममला मजसमें दमलतों तथा अन्य मपछड़ी जामत के लोगों को थोड़ी-बहुत मात्र में मवकास का अवसर प्राप्त हुआ, मजसका लाभ उठाकर कु छ लोग उन्नमत के मशखर पर पहुचें, मकन्तु आधुमनकता के इस दौर में हमारे देश का आमदवासी समाज जैसा जहाँ था वैसा ही वहीं पड़ा है, जो मक गम्भीर मचंतन का मवर्षय बन गया है । यमद कु छ अपवादों को छोड़ मदया जाये तो यह कहना मबलकु ल सही होगा की हमारे समाज में सबसे अमधक आधुमनक संसाधनों से वंमचत उपेमक्षत तथा अभावग्रस्त समाज आमदवासी समाज रहा है ।
संजीव नये उपन्यासकारों में एक चमचात नाम है । 1990 में प्रकामशत संजीव का‘ धार’ उपन्यास आमदवासी जीवन की गररमा तथा उपलमब्धयों को उजागर करता है ।‘ धार’ उपन्यास संथाल परगना में कोयले की खानों में काम करने वाले मजदूरों का मचत्रि हुआ हैं । उपन्यास के के न्द्र में संथाल परगना का बॉसगड़ा अंचल और आमदवासी हैं । ये आमदवासी मजदूर पेट की आग के कारि कोयले की खदानों में काम करने जाते हैं । कभी जहरीली वायु फै लने के कारि, कभी धरती के धसने के कारि तो कभी पानी भरने के कारि उन्हीं खदानों में समा जाते हैं । इसके आलावा प्रस्तुत इस उपन्यास में पू ंजीवादी व्यवस्था, मबचौमलयों की कु मटलताएँ, अवैध खनन, मामफया मगरोह का आतंक, श्रमजीमवयों का शोर्षि, आमदवामसयों का जीवन आमद का भी मचत्रि हुआ है ।
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017