Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
पारमधयों को चोर की नजर से देखा जाता है । इसमलए हमेशा इन पर ही आरोप लगाया जाता है ।
‘ जन्म घेिे लागे वासनेच्या पोटी’ आमदवासी भील समाज की वतामान मस्थमत और बरसों से उनके माथे पे थोपा गया गुनहेगारी के कलंक का वास्तमवक मचत्रि इस कहानी में मकया गया है । भील समाज के लोगों पर चोरी-डकै त की शंका जताकर पुमलस उन्हें अधारामत्र नींदों से जगाकर जबरदस्ती जेल में बंद कर देते है । आमदवासी समाज में जन्म मलया यही उनका अपराध है । इनके पूवाजों ने कोन-सा गुनाह मकया था पता नहीं लेमकन अंग्रेज शासन काल में इन जमामतयों को अंग्रेजों ने गुनहगार जमात ही ठहरा मदया ।“ लम्बे समय से महाजन इनका शोर्षि करते रहे । वे सामंती जमींदार बनते चले गये । इन्होंने आमदवामसयों के इन आमदम साम्यवादी क्षेत्रों में सामंतवाद को खड़ा मकया । मामलक बने, गुलाम बनाये गये । मफर अंग्रेज आये । अंग्रेजों ने अपने स्वाथा की पूमता के मलए महाजनों-जमींदारों को ज्यादा शमक्तशाली बनाया और ये अंग्रेजों का समथान पाकर दुगुने वेग से आमदवामसयों पर टूट पड़े ।” 4
‘ कवडी मोल मािूस’ कहानी में आत्रम ने यह मदखाने का प्रयास मकया है मक आज के समय में मनुष्ट्य की कोई कीमत नहीं है । व्यमक्त व्यमक्त का जानी-दुश्मन बना है । कहानी में महाराष्ट्र के लातूर, उस्मानाबाद मजले की सच्ची घटनाओं को उजागर मकया गया है । मजस प्रकार मानवता को कामलमा लगाने वाला कसाई मनदायी ह्रदय से गाय काटता है उसी प्रकार प्रत्यक्ष रूप से मनुष्ट्यों को काटा गया । मस्त्रयों को ननन करके उनके साथ अत्याचार मकया गया । ऐसा अत्याचार एक मनुष्ट्य द्वारा दुसरे मनुष्ट्य पर मकया गया । ऐसी अवस्था में अपराध करने वाले आरोपी को खुले में छोड़ मदया जाता है और मनरपराध गररब मनुष्ट्य को जेल की हवा खानी पड़ती है । इस मृत्यु लोक में इंसानों को कीड़ों-मकौडों की तरह
मसला जा रहा है । उनकी हत्या की जा रही है और उन्हें कोई पूछता तक नहीं लेमकन मकसी प्रािी की हत्या पर प्रमतबंद लगाकर शासन ने इंसानों की कीमत कम और जानवरों की कीमत अमधक कर मदया है ।
‘ खल मनग्रहिाय सदरक्षिाय’ भारत में पुमलस प्रशासन का मनमााि मकया गया है मजसका िीद वाक्य है-‘ खल मनग्रहिाय सदरक्षिाय’ । मजसका अथा- अच्छे एवं सत्यप्रवृमत्त के मनुष्ट्यों की रक्षा करना है और गु ंड देशमवधायक, देशद्रोही, मामफया, नक्षलवादी जैसे लोगों का जड़ से समाप्त करना है, जबमक कहानी में पुमलस अमधकारी इसके मवपरीत रक्षक ही भक्षक बनते मदखाई देते है । कहानी का नायक गिेश भोसले पर चोरी, खून और बलात्कार का झूठा आरोप लगाकर पुमलस उसे जेल में बंद कर देती है । जबरदस्ती गुनाह कबूल करने को कहा जाता है । नमक और ममचा डालकर जानवर की तरह उसे मपटा जाता है; मजसके चलते गिेश की जेल में ही मृत्यू हो जाती है । कहानी में मदखाया गया है मक पुमलस अमधकारी पैसों की लालच के कारि गु ंडे और दुसे प्रवृमत्त के लोगों का संरक्षि करती है और सामान्य जनता पर अन्याय, अत्याचार करती है ।
‘ पारध्यांचं आत्मसमपाि’ कहानी में आत्रामजी ने आमदवासी पारमधयों की उस मुख्य समस्या को उठाया है जो आत्मसमपाि से संबंमधत है । कहानी में राजनीमतक कायाकत ा समस्त पारधी लोगों को झूठे आमशम, लोभ मदखाकर उन्हें सरकार और पुमलस के सामने आत्मसमपाि के मलए कहता है । गररब एवं गंवारू लोग हजारों की संख्या में उपमस्थत होते है । मजसमें बूढ़े, बाल-बच्चे, गभावती ममहलाएँ भी शाममल होते हैं । मबना कोई गुनाह मकए इन पारमधयों को आत्मसमपाि के नामपर कै द कर मलया जाता है । राजकीय नेता पारमधयों के स्वेच्छा से नहीं बमल्क अपने अमस्तत्व के मलए, अपनी रोटी सेकने के मलए इन पारमधयों का उपयोग करता है ।
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017