Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
“ निं लुगडं’ कहानी-िंग्रह में आसदिािी‘ पारधी िमाज’ का सचिण”
रामडगे गंगाधर महंदी मवभाग-
हैदराबाद मवश्वमवद्यालय, हैदराबाद Email- gangap3377 @ gmail. com
‘ आमदवासी मवमशा’ और‘ स्त्री मवमशा’ है । भारत देश आज मवकास के पथ में मनरंतर आगे बढ़ रहा है । यह मवश्वास दश ाया जाता है मक आने वाले समय में भारत तीसरी महासत्ता के रूप में उभरकर आयेगा । यह देश के मलए गौरव की बात है क्योंमक मवकास से मनमित ही देश की जनता आवाम तरक्की पर पहुँचेगी; मकन्तु संपूिा मानव जामत का एक मवभाग उन लोगों का भी है जो सभ्यता के मवकास की दौड़ में बहुत पीछे छू ट गये हैं । उन्हें आमदवासी कहा जाता है । इन आमदवामसयों का जीवन अमधकतर जंगलों में बीतता है । जंगल इनकी संस्कृ मत है और इनका धमा भी । मवमभन्न संस्कृ मतयों, सभ्यताओं तथा मवमभन्न परम्पराओं से मबलकु ल अलग आमदवासी अपनी संस्कृ मत का मवकास स्वयं करते हैं ।
दरअसल आमदवासी अपने श्रम के बल पर सदैव आत्ममनभार और स्वावलम्बी रहा है । अपने समूह और समाज से जुड़कर, प्रकृ मत का साथी बनकर जीवन जीना उसकी शैली और स्वभाव रहा है ।“ आमदवासी के देवता आकाश में नहीं रहते । वे उसके घर-द्वार या जहां उसके पुरखे दफनाए जाते हैं उन( श्मशानों) में, ज्यादा से ज्यादा हुआ तो पेड़ों पर रहते हैं, मजनकी वह खुद रक्षा करते है । इन देवताओं से उसका संवाद सतत् जारी रहता है, चाहे जन्म हो या मरि, मववाह हो या कोई उत्सव । यानी सुख-दुःख की हर घड़ी में उसके देवता भी उसके साथ शाममल रहते हैं, संवाद करते हैं और खाते-मपते हैं ।” 1
भारत में हजारों वर्षों से शोर्षि मबना रूकावट के बेशमों की तरह चलती आ रही है । यहाँ के राजा तो बदलते रहे लेमकन समाज और लोकपरंपरा जस की तस चली आ रही है । इसका प्रत्यक्ष साक्ष्य आत्रम जी ने‘ नवं लुगडं’ कहानी-संग्रह में मदखाने का प्रयास मकया हैं । भारत के आमदवामसयों के सामने हमेशा से कई समस्याएँ रही हैं । जैसे महाजनी शोर्षि की समस्या, ऋि की समस्या, जमीन
घुमंतू आमदवासी समाज के जीवन पर मलखा गया‘ नवं लुगड़’ रामराजे आत्राम का मराठी कहानी- संग्रह है । इसमें आत्राम जी ने पारमधयों के जीवन का यथाथा और उनकी वास्तमवकता को मदखाया है ।‘ पारधी’ जामत एक घुमंतू समाज है जो आज यहाँ तो कल वहाँ अपने पेट की भूक को ममटाने के मलए दर- दर भटकती है । घुमंतू आमदवासी समाज के लोग मवकास की ओर अग्रसर नहीं हुए क्योंमक आमदवासी जीवन तो जल-जंगल-जमीन के संघर्षा में ही उलझा रहा । आज पुरे भारत देश में आमदवासी समाज के लोगों की जल, जंगल और जमीन की समस्या हैं । पारधी समाज में जन्म लेना मकतना महाभयानक है और उसी समाज में रहकर जीवन मबताना मकतना कमठन एवं मनदायी होता है यह‘ नवं लुगडं’ कहानी- संग्रह के माध्यम से रामराजे आत्राम ने मदखाने का प्रयास मकया हैं । कहानी-संग्रह में सात कहामनयाँ है ।
अमभजात्य सामहत्य के बाहर एक बहुत बड़ा समाज है जो बरसों से अपने अमधकारों से वंमचत है । मजनके पास आजीमवका का कोई साधन भी नहीं है । मजस समाज की ओर अभी तक सामहत्य की नजर भी नहीं गई लेमकन आज सामहत्य में यह स्वर मुखर हो चूका है । आज भार्षा और सामहत्य के सामने अनेक प्रकार की चुनौमतयाँ खड़ी हैं । कु छ समय पूवा दमलत, आमदवासी, स्त्री तथा अल्पसंख्यक सामहत्य हामशये पर थे परंतु आज सामहत्य में महत्वपूिा बन गया है । पररिाम स्वरूप वतामान सामहत्य में आज मजन मवमशों की मवशेर्ष चच ा हो रही है वे‘ दमलत मवमशा’, Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017