Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 115

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
मूलतः वे लेखक थे, यह बात उनके सम्पूिा जीवन पर नजर डालने से पता चलता है ।“ वे शौमकया अमभनेता
थे । उन्होंने मफल्मों में जो काम मकया आकमस्मक ही था । उसके पीछे उनकी कोई कोमशश या आग्रह नहीं था । कु छ अपनी प्रमतभा थी, कु छ नाटकों के काम का अभ्यास, कु छ बड़े भाई बलराज की सफलता की प्रेरिा और कु छ मनदेशकों का दबाव, वे मफल्मी अमभनय के क्षेत्र में आ गए ।” 9 भीष्ट्मजी का मफल्मों में
बतौर अमभनेता आगमन भी बड़ा मदलचस्प ढंग से हुआ ।“ मफल्म‘ मोहन जोशी हामजर हो’ के मुख्य
चररत्र मोहन जोशी के मलए सईद अख्तर ममज ा को एक गैरपेशेवर अमभनेता की तलाश थी । मकसी ने उन्हें भीष्ट्मजी का नाम सुझाया । भीष्ट्मजी को भी कहानी पसंद आई ।” 10 क्योंमक इस मफल्म की कहानी आम
आदमी के बेहद करीब है । भारतीय कानून-व्यवस्था पर तीखी चोट करती 1984 में आई मफल्म‘ मोहन जोशी हामजर हो’ में न्यायालय की खचीली और उबाऊ न्याय प्रमक्रया को मदखाया गया है ।
‘ मोहन जोिी हासजर’ हो सर्ल्म में भीष्ट्म िाहनी-
‘ मोहन जोशी हामजर हो’ मफल्म में मोहन जोशी( भीष्ट्म साहनी) और उनकी पत्नी( दीना पाठक) एक पुराने टूटे-फू टे बहुमंमजली इमारत के एक छोटे से फ्लैट में गुजर बसर करते हैं । मकान मामलक हर महीने मकराया तो वसूलता है लेमकन इसकी मरम्मत नहीं कराता । मोहन जोशी उस पर मुकदमा कर देता है । उसके बाद मफल्म में लालची वकीलों की मक्कारी और न्यायालय की लु ंज-पु ंज व्यवस्था को दश ाया गया । न्याय की उम्मीद में मोहन जोशी वकील को पैसा देता जाता है । उसे अपनी बीवी के गहने तक बेचने पड़ जाते हैं । आमखर में मुकदमें को देख रहा जज खुद इमारत देखने आता है तो मकान मामलक आनन- फानन में उसकी कामचलाऊ मरम्मत करा देता है । जज मकान की मरम्मत के मदखावे में न आ जाए इसके
मलए मोहन जोशी मकान में लगाए गए लकड़ी के एक खंभे को पूरे ताकत से महला देता है । इसी बीच जजार मकान की छत उस पर ही मगर पड़ती है और वह बेमौत मारा जाता है । इस प्रकार मफल्म में मोहन जोशी नाम का मकरदार मकराये के मकान में रह रहे आम आदमी के जीवन की दुश्वाररयों को सामने लाता है । मोहन जोशी बड़े-बड़े मकानों के मामलकों के सामने एक सवाल छोड़ जाता है मक क्या के वल मकराया वसूलना ही उनका धमा है! पैसे के लालच में अंधा होने की बजाय आदमी की जान की कीमत पहचाने के मलए ये मफल्म प्रेररत करती है ।
भीष्ट्म िाहनी के उपन्द्याि‘ तमि’ का सिनेमाई िंस्करण-
भीष्ट्म साहनी ने मवभाजन को बड़े नजदीक से देखा था । अपनी इस पीड़ा और समाज पर साम्प्रदामयकता की चोट को उजागर करते हुए उन्होंने‘ तमस’ नाम का एक उपन्यास मलखा ।‘ तमस’ मफल्म इसी उपन्यास पर आधाररत है । देश के मवभाजन के समय रावलमपंडी और उसके आस-पास के गांवों में हुए साम्प्रदामयक दंगों के आधार पर मलखे इस उपन्यास के आधार पर ही पहले दूरदशान के मलए 6 एमपसोड की एक धारावामहक बनाई गई । इसी धारावामहक को संपामदत करके मफल्म भी बनाई गई मजसमें खुद भीष्ट्म जी ने भी अमभनय मकया ।
‘ तमि’ सर्ल्म की कथा-व्यथा-
‘ तमस’ की शुरुआत नत्थू( ओमपुरी) द्वारा मबना मकसी बदमनयमत से एक सूअर को मारने की घटना से शुरु होती है । मजसे समाज को बांटने की मनयत से एक ठेके दार द्वारा ममस्जद के सामने रखवा मदया जाता है । मजसके मलए मुमस्लम लोग महंदूओंको मजम्मेदार मानते हैं । मुमस्लमों के मन में महंदूओंके प्रमत घृिा फै ल जाती है और इलाके में तनाव फै ल जाता है । नत्थू मजसने मबना मकसी बदमनयमत के सूअर को
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017