Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 103

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
अभामगन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है । आज ईद का मदन और उसके घर में दाना तक नहीं । क्या आमबद होता तो इस तरह ईद आती?
अन्धकार और मनराशा में डूबी अमीना सोचती है । मकसने बुलाया इस मनगोड़ी ईद को?
( प्रकाश पुन: हाममद पर पड़ता है ।)
मजसे मकसी के मरने-जीने से कोई मतलब नहीं उसके अन्दर प्रकाश है । और बाहर आशा ।
मवपमत्त अगर अपना सारा दल-बल लेकर आये । तो हाममद की आनन्द भरी मचतवन उसका मवध्वंस कर देगी ।
( प्रकाश धीरे-धीरे हाममद से अमीना की ओर पड़ता है । और हाममद अमीना दोनों पर ठहर जाता है ।)
हाममद – दादी अमीना से तुम डरना नहीं अम्मां, मैं सबसे पहले आउंगा ।
अमीना का मदल बैठा जा रहा है( गाँव का ्टश्य)
प्रकाश बीच मंच पर पड़ता है । जहाँ बच्चे अपने बाप के साथ जा रहे हैं । प्रकाश धीरे-धीरे उनके साथ चलता है ।
( प्रकाश पुन: अमीना पर पड़ता है ।)
है । थोड़ी दूर पर उसे गोद में ले लेगी । लेमकन सेमवयां कौन पकाएगा यहाँ? पैसे भी तो नहीं है । नहीं तो चटपट सामान जुटा लेती । फहीमन के कपड़े मसये तो उनसे ममले आठ पैसे को ईमान की तरह बचा रही थी । ईद के मलए ।
( अठन्नी की ओर देखकर महसाब लगाती है ।)
दो पैसे हाममद के दूध के मलए बचे दो आने तीन पैसे हाममद की ज़ेब में, पाँच अमीना के बटुवे में
गाँव मेले में जा रहा है । हाममद भी साथ है । कभी सब दौड़कर सबसे आगे मनकल जाते है । मफर मकसी पेड़ के नीचे खड़े इन्तजार करते है । हाममद के पैरों में तो जैसे पंख लग गये हैं ।
( चलते-चलते गाँव का ्टश्य शहर में बदलता जा रहा है ।)
सूत्रधार –( शहर का ्टश्य) सड़क के दोनों ओर अमीरों के बगीचे, पक्की चार मदवारी, पेड़ों पर आम और लीमचयां लगी हुई है । बड़ी-बड़ी इमारतें, अदालत, कॉलेज, क्लब घर आमद । लड़के कं कड़ उठाकर आम पर मनशाना लगाते है । माली को उल्लू बना भाग रहे हैं ।( और हंस रहे हैं । खी! खी! खी!)
( प्रकाश हाममद पर पड़ता है ।)
हाममद सोचता है । इतने बड़े कॉलेज में मकतने लड़के पढ़ते होंगे? लड़के नहीं सब आदमी है । बड़ी-बड़ी मुछों वाले अभी तक पढ़ते जा रहे है । न जाने कब तक पढ़ेंगे और क्या करेंगे इतना पढ़कर
अमीना सोच रही है । उसके मसवा हाममद का और हाममद के मदरसे में भी दो-तीन बड़े-बड़े लड़के हैं । कौन है । उस नन्हीं सी जान को अके ले कै से जाने दे; तीन कौड़ी के तीन कोस चल पायेगा? जूते भी तो नहीं है ।( आखों में आंसू भरते हुए) पैर में छाले पड़ जायेंगे । वह सोचती Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017