परिवर्तन लाए हैं ।
वाड़ी मॉडल कया है ?
वाड़ी शबि गुजराती भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ " बगीचा या उद्ान " है । नाबार्ड की जनजातीय विकास निधि के अंतर्गत यह एक विशेष पहल है । यह मलॉडल संधारणीय कृषि-वानिकी को बढ़ावा देता है जिसमें फलदार पेड़ों और अंतर-फसल ( इंटरक्रलॉलपंग ) की विधियों को जोड़ा जाता है । वाड़ी मलॉडल न केवल पर्यावरण की दृकषट से सरायी है , बकलक आदिवासी परिवारों के लिए नियमित और कसरर आय का स्रोत भी है । इस पहल के माधयम से नाबार्ड ने आदिवासी समुदायों को आर्थिक रूप से सशकत बनाने के साथ-साथ उनके पर्यावरणीय संसाधनों को संरक्षित रखने में भी मदद की है .
2005-06 से जनजातीय विकास निधि ( टीडीएफ ) के तहत नाबार्ड ने राजसरान में आदिवासी समुदायों के लिए सतत और सहभागी आजीविका के अवसर सृजित करने की दिशा में कदम बढ़ाया । इन परियोजनाओं का उद्ेशय न केवल उद्ान आधारित कृषि प्णालियों को बढ़ावा देना है , बकलक सवासथय देखभाल , सवच्ता , महिला सशककतकरण और कौशल विकास को भी एकीकृत करना है । इन कार्यक्रमों के तहत कौशल विकास , सवासथय , सवच्ता , और महिला सशकतीकरण पर विशेष धयान देते हुए समग् सामुदायिक प्गति सुलनकशचत की गई । गत 30 नवंबर 2024 तक , राजय में कुल 64 परियोजनाएं सवीकृत की गई हैं , जिनके लिए 200.90 करोड़ रुपए की संचयी निधि आवंटित की गई । इनमें से 156.11 करोड़ रुपए का वितरण किया जा चुका है । इन प्यासों का लाभ उदयपुर , बांसवाड़ा , बारां , पाली , चित्ौड़गढ़ , कोटा और झालावाड़ सहित 15 जिलों में 51,885 से अधिक आदिवासी परिवारों को हुआ है । सवीकृत परियोजनाओं में से 56 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं , जबकि 8 परियोजनाएं अभी चल रही हैं ।
इन परियोजनाओं के अंतर्गत मुखयतः अंतर- फसलन के साथ-साथ आम , अमरूद , नींबू ,
और आंवला के छोटे बगीचों ( वाड़ी ) की सरापना कर , सागौन , सहजन और करौंदा आदि का सीमावतथी वृक्षारोपण किया जाता है । साथ ही , 2,500 भूमिहीन परिवारों को वैककलपक आजीविका जैसे बकरी पालन , पशुपालन , मुगथी पालन और छोटे सतर पर खाद् प्संसकरण एवं किराने की दुकानों जैसे कृषीतर कायषों के माधयम से समर्थन प्िान किया गया है ।
सफलता की कहानी : सिया बाई सहरिया
नाबार्ड के इस कार्यक्रम की सफलता का एक उदाहरण बारां जिले के केलवाड़ा किसटर की आदिवासी महिला सिया बाई सहरिया हैं । नाबार्ड और परियोजना कार्यानवयन एजेंसी-डेवलपमेंट सपोर्ट सेंटर के सहयोग से सिया बाई ने एक बगीचा विकसित किया और जलवायु-अनुककूि कृषि प्राओं अर्थात जलवायु परिवर्तन प्लतरोधी कृषि प्राओं को अपनाया । इसके परिणामसवरूप फल और सकबजयां बेचकर उनकी सालाना 95,000 रुपए की अतिरिकत आय हुई , किराना दुकान से 35,000 रुपए और जलवायु-अनुककूि कृषि से 95,000 रुपए की कमाई के साथ उनकी
वार्षिक आय 2018-19 में 45,000 रुपए से बढ़कर 2023-24 में 2,50,000 रुपए हो गई । उनकी आय में इस वृद्धि ने न केवल उनकी वित्ीय कसररता में सुधार किया , बकलक वित्ीय नियोजन और सामाजिक कलयाण लाभों के बारे में उनकी जागरूकता को भी बढ़ाया , जिससे उनहें विभिन्न सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे पीएमएफबीवाई , पीएमजेजेबीवाई , पीएमएसबीवाई आदि में सक्रिय रूप से नामांकन करने और उनका लाभ उठाने के लिए प्ेरित किया ।
नाबार्ड की टीडीएफ परियोजनाएं राजसरान में अपने अभिनव दृकषटकोणों के लिए जानी जाती हैं , जहां लगभग 500 बगीचों में लरिप सिंचाई प्णालियों ने पानी की उपलबधता सुलनकशचत की , वहीं वमथी-कमपोसट गड्ों ने जैविक खेती को बढ़ावा दिया । आदिवासी किसानों को सामूहिक विपणन के माधयम से उनकी उपज के बेहतर मूलय दिलाने के लिए एक किसान उतपािक संगठन ( एफपीओ ) का भी गठन किया गया । नाबार्ड अपनी इन परियोजनाओं के माधयम से न केवल समावेशी और विकास को बढ़ावा दे रहा है , बकलक आदिवासी समाज के जीवन में सरायी परिवर्तन लाने में भी सफल रहा है । �
tuojh 2025 31