गौतम नगर के कु त्े
वक्त-वक्त की बात है. अब देखिए, प्रशाशनिक सेवा का सपना संजोए हम परीक्ा का पहला पड़ाव भी पार न कर पाए. और ज्यों ही एम्स में हमारी डिग्ी पूरी हुई, हमें छात्ावास छोड़कर गौतम नगर में आना पड़ा. वैसे गौतम नगर में सारे ऐशो- आराम हैं. बस पैसा दीजिए, सब कु छ कमरे तक आता है. और रात को घूमिए तो कु त्े एम्स की याद दिला देते हैं.
मैं तो गौतम नगर आने से डर रहा था. तो क्ा है कि एम्स में कु त्तों ने कोहराम मचा रखा है. जब देखो‘ गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ जैसी लड़ाईयां हो रही होती हैं. बहुत बार तो राडत् में जीना दूभर हो जाता है. कईं बार रास्ा बदलना पड़ता है.
तिस पर ये पशु-प्रेमी लोग. हमें यह तर्क सुनने को मिलता है कि भाई कु त्े तो यहाँ सदिययों से जी रहे थे. हम मनुष्यों ने एम्स बनाया, हम उनके घर में घुसे. वाह भई वाह! यहाँ छात्ावास में मरीज़यों को घुसने नहीं देते और कु त्तों की मौज है. कु छ श्ाि प्रेमिययों ने तो‘ फे सबुक’ पर एक मशहूर कु तिया‘ मुश्ा’ की‘ प्रोफाइल’ बना रखी है. इंसाियों के बच्े पैदा करवाने में निपुण यहाँ के छात् कई बार गर्भवती कु तियाओं के भी काम आते हैं.
वैसे पिल्लों को देखकर किसी के मन में भी प्ार उमड़ सकता है, परन्ु मैं जानता हूँ कि यह पिल्े आखिर बड़े होकर क्ा बनेंगे. आखिर दुम कभी सीधी हुई है?
इसी कारण मैं गौतम नगर आने से हिचकिचा रहा था. पर गौतम नगर ने कु त्तों के बारे में मेरा नज़रिया ही बदल दिया. यहाँ के कु त्े बेहद सभ्य हैं और अपने काम से मतलब रखते हैं. इंसाियों को तंग नहीं करते.
कहते हैं जैसा देश वैसा भेष. अब एम्स के कु त्े‘ एम्सोनियन’ हैं. देश में सर्वश्ेष्ठ हैं. देश की‘ क्ीम’ हैं. गौतम नगर में तो विफल लोग जाते हैं, मेरे जैसे, जो अभी तक तैयारी ही कर रहे हैं. कु त्े भी वही मानसिकता रख लेते हैं, और अपने आप को दोयम दजजे का मान कर चुप हो जाते हैं. नज़र नीची करके चुप-चाप निकल जाते हैं बगल से. छाती तान कर नहीं चलते एम्स के कु त्तों की तरह.
लेकिन उनके मन में भी आशा है. वे भी एम्स आना चाहते है. इसलिए मेहनत कर रहे हैं. आखिर एम्स देश में सर्व-श्ेष्ठ जो है.
अभिजीत बेनीवाल २७८०, वर्ष २०१०