मेरी क ना
म� खो गया �ँ कही, ं मुझ े नही ं मालूम। �वचारो ं क� लहरो ं म� गोत े लगात-े
लगात े कब समं दर ने अपनी ओर खीच ं �लया- मुझ े नही ं पता। क ना
क� उड़ान भरत े �ए मेरा जहाज कहा ँ प�ँ च गया- मुझ े याद नही। ं सूरज
क� िकरणो ं से बचत े �ए कब अध
रेी गुफा म� जा प�ँ चा- मुझ े होश नही। ं
तभी अध
रेे को चीरती �ई एक रोशनी मुझ से टकराई। इस से पहले िक
म� अपने आप को सं भाल पाता मेरी धडकनो ं ने र ार पकड़ ली। उस
देखत े �ए कब उसक� नज़रो ं म� कै द हो गया, इस का आभास न रहा।
तम�ा तो थी बस गले लगाने क�, पर न जाने कब उसक� बाहँो ं क�
�गर� म� चला गया, महसूस ही न �आ। उसके बालो ं को सुलझात े कब
उलझ गई- इ�ी ं जवाबो ं क� तलाश म� लगा �आ �ँ ।
मेरी �जदगी
�नकलता �ँ रोज़- इ�ी ं सवालो ं के जवाब ढँू ढने। पर, कोई रोशनी नही
िदखाई देती. �मलत े ह � तो �सफ� - उसके क़दमो ं के �नशान� जो शायद
व के साथ �मटत े चले जाएं गे, पर तलाश अभी भी जारी ह.ै..
बालमुच
गो�वदा
����, वष� ����