Hybrid Hues '15-'17 AIIMS, New Delhi | Page 113

आतं क और इं सा कु चलकर यँ ू इं सा को ा हा�सल कर लोगे, िकसे दोजख दोगे, िकसको ज�त दोगे। अब धमाको ं से जी नही ं भरता क�-ए-आम होता ह ै बरेहम , बदन छलनी-छलनी ह � िदल जसैे गए ह � सहम । डर से भी बढ़कर कु छ ह जो घर कर गया ह ै घरो ं म� , मेरा आ�शया ँ न महफू ज़ ह ै , न म��द म�, न मं िदरो ं म�। आतं क का ये चेहरा, बनेकाब होकर भी, बिेहसाब जटुा ह,ै �ै लाने म�, द�रदगी स�ाएँ ो ं चुपचाप ह,� थोड़ा पैसा देकर, इं सान क� क�मत चुकाने म� । दम घुटता ह ै कै द मन क� दीवारो ं म�, कै से क�ा दँ ू , अपनो ं क� लाश को कै से आसँू पोछ, �ससकती �ई मज़ारो ं म�। ये �सल�सला न जाने कब थमेगा, पता नही ं यँ ू कौनसा मकसद �मलेगा। आज़ादी गर छ�नोगे जीने क� हमस न ज़मी ं नसीब होगी, न आसमा ँ ही �मलेगा।। डॉ. पं कज वमा व�� २० ०४