Hybrid Hues '15-'17 AIIMS, New Delhi | Page 105

आज़ाद हर आज़ाद प�रदे ं को देखकर यँ ू लगता था, िक आज़ादी भी ा खूब होगी, म� जीना, ा इस तरह �पजर व -व पर दाना-पानी �मलत े रहना, उसी के इं तज़ार म� िदन काटने प�त े ह,� सामने घडी के काटंे आगे बढ़त े रहत े ह,� बीच-बीच म� इं सान आकर कु छ कह जात े ह,� अपना मनोरंजन कर टी.वी. म� लग जात े ह.� खुला छू ट जाए, रोज़ दआ करता �ँ िक काश! �पजरा खुली हवा म� सैर हो जाए, कोई सं गी-साथी �मल जाए, पे�ो ं से फल, �ील से पानी �मले, मनमौजी होकर यह जीवन चले. एक िदन वह दआ �ई, कबल तकलीफ से ही सही पं खो ं को हवा नसीब �ई, उ�ना थोडा मु��ल था, जस े अब भी कै द म� था, पर �ािहश पूरी तो �ई . अिदती मोहता २७८२, व�� २०१० खुले गगन म� म� चल प�ा, यहा-ँवहा ँ साथी ढं ू ढ़ता रहा, जहा ँ िदखे वही ँ चल िदया, और कु छ ही देर म� िफर �शक� म� बं ध गया, �बन जाल क� �शक� उनके साथ जीने क�, उसी रा� े जहा ँ वे जाएं , दाना वही ँ जहा ँ वे चाह,� वृ वही जो उनको भाए. िफर एक िदन ऐसा आया, बवे भयं कर तफ़ ान आया, सारे घरौदे ं �त�र-�ब�र हो, प ी समूह का अतं नज़र आया. उन �गरी �ई टह�नयो ं के नीचे, मौत से ल� रहा था म�, अके ला था, �शक� म�, एक तफ़ ान लगा माहौल बदलने म�, पर आज़ाद था, हा,ँ अब सचमुच आज़ाद था म�.