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साहितय

दलित लेखन : इतिहास को देखने की एक नई दृष्टि

दलितों और ससत्यों को इतिहास-हीन कहना गलत

शैलेन्द्र चौहान

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रतीय समाज आद्दकाल सरे ही वर्ण वयव्रा द्ािा द्नयंद्त्रत रहा है । ऐसा माना जाता है द्क जो वर्ण वयव्रा प्रारंभ में कर्म पर आधारित थी , कालानति में जाद्त में परिवद्त्थत हो गई । वर्ण नरे जाद्त का रूप कैसरे धारण कर द्लया , यह द्वचारणीय प्रश्न है । वर्ण वयव्रा में गुण व
कर्म के आधार पर वर्ण परिवर्तन का प्रावधान था , द्कनतु जाद्त के बंधन नरे उसरे एक ही वर्ण या वर्ग में रहनरे को मजबूर कर द्दया । अब जनम सरे ही वयसकत जाद्त के नाम सरे पहचाना जानरे लगा । उसके वयवसाय को भी जाद्त सरे जोड़ द्दया गया । जाद्त वयसकत सरे हमरेशा के द्लए द्चपक गई और उसी जाद्त के आधार पर उसरे सवर्ण या शूरि , उच् या द्नम्न माना जानरे लगा ।
शूद्रों को अ्पृशय और अछूत माना जानरे लगा । इतना ही नहीं उनहें वरेददों के अधययन , पठन - पाठन , यज् आद्द करनरे सरे वंद्चत कर द्दया गया । उच् वर्ग नरे समाज में अपना वच्थ्व बनायरे रखनरे के द्लए बड़ी चालाकी यह की द्क ज्ान व द्शक्ा के अद्धकार को उनसरे ( द्नम्न वर्ग सरे ) छीन द्लया और उनहें अज्ान के अंधकार में झदोंक द्दया । इससरे वरे आज तक जूझ रहरे हैं और उबर
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