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बहादुर शा्त्री की सरकार में महिलाओं को एक भी मंत्रालय नही दिया गया । इंदिरा गांधी के नेतृति में गठित देश की पांचवी , छठी व नवीं कैबिनेट मे एक भी महिला केनरिीय मंत्री नही थी । राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में भी केवल एक महिला मोहसिन किदवई को ही शामिल किया गया था । इस मामले में मौजूदा मोदी सरकार मे महिलाओं की स्थति में सुधार हुआ है । 2014 में मोदी सरकार के कार्यकाल में कुल नौ महिला सांसदो को कैबिनेट और राजयमंत्री बनाया गया । 16वीं लोकसभा में कुल 61 महिला उममीदवार जीती हैं । इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सरकार में गयारह
महिलाओं को मंत्री बनाया है जो कि तनसशचर तौर पर एक बडी उपलसबि है ।
राजनीतिक तौर पर जागरूक होने की जरूरत
बेशक मौजूदा मोदी सरकार ने महिलाओं पर बहुत अधिक भरोसा जताया है और पहले कार्यकाल में विदेश और मानव संधासन सरीखे महतपूर्ण विभागों की जिममेदारी महिलाओं को
देने के बाद इस दूसरे कार्यकाल में भी वित् सरीखा सबसे महतिपूर्ण विभाग निर्मला सीतारमण के रूप में एक महिला के हवाले करने में उनहोंने हिचक नहीं दिखाई है । लेकिन फिर भी इसे यह मान लेना गलत होगा कि महिलाओं को उनका पूरा अधिकार मिल गया है । इसे धयान में रखने के जरूरत है कि देश की आधी आबादी महिलाओं की है और वे बढ़ — चढ़कर मतदान के अधिकार का उपयोग भी कर रही हैं । चुनाव दर चुनाव महिला मतदाताओ की संखया में लगातार वृद्धि हुई है और 1980 मे महिला मतदाताओं की संखया 51 प्रतिशत थी जबकि 2014 में 66 प्रतिशत
महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इ्रेमाल किया । लेकिन इस स्थति को बहुत बेहतर नहीं माना जा सकता कयोंकि यह आंकडा अभी भी कम है । साथ ही महिला किस पाटनी को वोट देंगी यह फैसला आज भी अधिकांशत : घर के पुरुषों द्ारा ही किया जाता है और वह उसी पाटनी को वोट देने के लिए बाधय हो जाती है । हालांकि गुपर मतदान की वयि्था के कारण महिलाएं जिसे चाहें उसे वोट दे सकती
हैं लेकिन कहीं ना कहीं राजनीतिक तौर पर महिलाओं को अभी अधिक जागरूक होने की जरूरत है वर्ना मतदान के अपने अधिकार का पूरा सदुपयोग वे कैसे कर पाएंगी ? राजनीतिक क्षेत्र में महिला सशसकरकरण की अवधारणा को किस हद तक जमीनी ्रर पर साकार किया जा सका है इसके उदाहरण के रूप में हम ग्ाम पंचायतों को देखते हैं तो पाते हैं कि महिलाएं मुखिया और सरपंच तो बन जाती हैं परंतु उसके कामकाज घर के पुरुषों द्ारा संपादित किए जाते हैं । महिला केवल नाम मात्र की जन — प्रतिनिधि बनकर रह जाती है जबकि अधिकारों और हनक का इ्रेमाल मुखियापति और सरपंचपति करते देखे जाते हैं ।
सशवतिकरण के लिए बनाना होगा वातावरण
यदि हम सही मायने में महिला सशसकरकरण करना चाहते है तो हमे सामाजिक व मानसिक वातावरण बनाने की जरूरत है जिसमें महिलाओं की आधी जनसंखया को अपना पूरा हक हासिल करने के लिए अलग से सोचना या कुछ करना ना पड़े । यदि सभी माता पिता अपनी लड़तकयों को खुद ही अपनी समपति में से उनका हक देना आरंभ कर दें और इसे परंपरा के तौर पर समाज द्ारा अपना लिया जाए तो लैंगिक ्रर पर आर्थिक विषमता धीरे धीरे ्ियं ही समापर हो जाएगी । तब महिलाएं अपने अधिकारों का उपयोग कर एक नए और बेहतर समाज की नींव रख पाएंगी जिसमे लिंग के आधार पर समाज का विकास प्रभावित व संचालित नहीं होगा बसलक समाज का हर वर्ग सुरक्षित व आतमतनभ्तर होगा । इस दिशा में एक पहल ' बेटी बचाओ बेटी पढाओ ' अभियान के रूप में अवशय हुई है लेकिन अभी इस दिशा में बहुत कुछ करने की आवशयकता है । भारत को लैंगिक भेदभाव रहित देश बनाने के लिए सरकार और समाज के साथ ही परिवार और वयसकर को भी अपनी भूमिका ईमानदारी से निभानी होगी और इस दिशा में जो प्रयास हो रहे हैं उसकी गति बेशक धीमी है लेकिन दिशा एकदम सही है । �
50 flracj 2022