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सपना कुमारी
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राइटिंग विद फायर : खबर लहरिया दलित महिलाओ ंकरे अखबार की गाथा ऑस्कर पुरस्कारों में नामांकित
बार फिर विशि मंच पर भारत की सशकर दलित महिलाओं के नाम और काम का डंका बज रहा है और इनकी हर ओर जोर — शोर से चर्चा हो रही है । इसकी वजह बनी है रिंटू थॉमस और सुसषमर घोष द्ारा तनददेशित भारतीय डॉकयूमेंट्री ' राइटिंग विद फायर ' जिसने 94वें अकादमी पुर्कार के सर्वश्ेषठ डॉकयूमेंट्री फीचर श्ेरी में नामांकन प्रापर किया है । डॉकयूमेंट्री को ' असेंशन ', ' एटिका ', ' फली ' और ' समर ऑफ द सोल ' के साथ नामांकित किया गया है । राइटिंग विद फायर एकमात्र भारतीय फिलम है , जिसे इस साल के ऑ्कर पुर्कारों में नामांकित किया गया है । इससे पहले राइटिंग विद फायर का 2021 में सनडांस फिलम फेस्टिल में विशि प्रीमियर हुआ था । इस फेस्टिल में डॉकयूमेंट्री ने दो पुर्कार - द ऑडियंस अवॉर्ड और एक ्पेशल जूरी अवॉर्ड भी जीते । अब तक इस डॉकयूमेंट्री को 20 से अधिक अंतरा्तषट्रीय पुर्कार मिल चुके हैं ।
दलित महिलाओं के अखबार की गाथा
' राइटिंग विद फायर ' दलित महिलाओं द्ारा चलाए जा रहे अखबार ' खबर लहरिया ' पर प्रकाश डालता है । इस अखबार की शुरुआत साल 2002 में दिलली स्थर एनजीओ निरंतर द्ारा बुंदेलखंड क्षेत्र के चित्रकूट में की गई थी । ' राइटिंग विद फायर ' में ' खबर लहरिया ' के प्रिंट से डिजिटल में शिफट होने की जननी को दर्शाया गया है । इस फिलम में मीरा और उनके साथी
पत्रकारों की कहानी बताई गई है । जो नई तकनीक सीखते हुए पितृसत्ा पर सवाल उठाती हैं , पुलिस बल की अक्षमता की जांच करती हैं , और जाति व लिंग हिंसा के पीतड़रों के बारे में लिखती हैं । बुंदेलखंड में प्रकाशित अखबार खबर लहरिया भारत का एक मात्र अखबार था , जिसे सिर्फ दलित महिलाएं संचालित करती थीं । आठ पन्ों के अखबार खबर लहरिया में महिला रिपोर्टर बदलते समाज , भ्रषटाचार , सरकार के अधूरे वादों , गरीबों और महिलाओं की कहानियां सुनाती थीं । खबर लहरिया नामक अखबार बुंदेलखंडी भाषा में 2002 से चित्रकूट समेत बुंदेलखंड के कई जिलों से प्रकाशित होता था । हालांकि , 2015 में यह बंद हो गया । तब से लेकर अब तक मोबाइल पोर्टल पर खबर लहरिया संचालित है । इस पूरी टीम में महिलाएं ही काम करती हैं । खबर लहरिया के लिए इसके सं्थापक एनजीओ निरंतर को यूने्को किंग सेजोंग लिट्रेसी सममान 2009 से सममातनर किया गया था ।
खबर लहरिया की कहानी कविता की जुबानी
चित्रकूट के कुंजनपुर्वा गांव के एक दलित मधयमिगनीय परिवार की कविता ( 30 ) की शादी 12 साल की उम्र में हो गई थी । वह जयादा पढ़ाई नहीं कर पाई थीं । बाद में उनहोंने एक एनजीओ की मदद से पढ़ाई शुरू की । साल 2002 में उनहोंने एनजीओ द्ारा शुरू किए गए अखबार खबर लहरिया में बतौर पत्रकार के रूप में काम शुरू किया । धीरे-धीरे अखबार का प्रसार बढ़ने लगा । कविता का कहना है कि हम पर दवाब डाला जाता था कि महिला होकर हमारे खिलाफ खबर छापती हो । बड़े अखबारों ने हमारे खिलाफ कुछ नहीं निकाला तो आपने कैसे निकाला । शायद इसीलिए अखबारों में बाईलाइन खबरें नहीं दी जाती थीं , जिससे खबर के लेखक के बारे में पता न चल सके । बुंदेलखंड में प्रकाशित अखबार खबर लहरिया भारत का एक मात्र अखबार था , जिसे सिर्फ दलित महिलाएं संचालित करती थीं । आठ पन्ों के अखबार खबर लहरिया में महिला रिपोर्टर बदलते समाज , भ्रषटाचार , सरकार के अधूरे वादों , गरीबों और महिलाओं की कहानियां सुनाती थीं । खबर लहरिया नामक अखबार बुंदेलखंडी भाषा में 2002 से चित्रकूट समेत बुंदेलखंड के कई जिलों से प्रकाशित होता था । हालांकि , 2015 में इसका प्रकाशन बंद हो गया । लेकिन तब से लेकर अब तक मोबाइल पोर्टल पर खबर लहरिया संचालित है । इस पूरी टीम में महिलाएं ही काम करती हैं । खबर लहरिया के लिए इसके सं्थापक एनजीओ निरंतर को यूने्को किंग सेजोंग लिट्रेसी सममान 2009 से सममातनर किया गया था । �
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