eMag_Sept2022_DA | Page 41

नयूज चैनल के बलॉग पेज पर लिखता है कि पशु और मनुषय में यही विशेष अनरर है कि पशु अपने विकास की बात नहीं सोच सकता , मनुषय सोच सकता है और अपना विकास कर सकता है । हिनदू धर्म ने दलित वर्ग को पशुओं से भी बदतर स्थति में पहुँचा दिया है , यही कारण है कि वह अपनी स्थति परिवर्तन के लिए पूरी तरह निर्णायक कोशिश नहीं कर पा रहा है , हां , पशुओं की तरह ही वह अचछे चारे की खोज में तो लगा है लेकिन अपनी मानसिक गुलामी दूर करने के अपने महान उद्ेशय को गमभीरता से नहीं ले रहा है । इनहोने जो इसमें इनका मत ्पषट दिखाई दे रहा है किनरु प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि कया िमाांतरण ही एक मात्र उपाय बचा है ? और यदि कर भी लिया कया गारंटी है कि िमाांतरण करने से सारे कषठ दूर हो जायेंगे ? मान लो यदि धर्म परिवर्तन कर सारे कषट दूर होते तो आज मुस्लमो के 56 देश है कितने देशों के मुस्लम शांति और सामाजिक समर्धि , समरसता और सोहार्द से जीवन जी रहे है ?
साजिश से सचेत रहना जरूरी
धर्मिक और जातिगत पागलपन मनुषय के ्िभाव में है सुकरात को जहर किसी पशु ने नही दिया था , जीसस को शूली पर लटकाने वाले भी मनुषय ही थे , ्िामी दयानंद को विष देने वाले बाहर से नहीं आये थे मतलब यह है कि मनुषय ही मनुषय समाज के विकास में बाधक रहा है । प्रथम बात , हम मानते है कि देश में अभी भी कुछ जगह जातिवाद और छुआछूत वयापर है और इस सामाजिक भेदभाव की सम्या से कोई भी वर्ग समुदाय या देश अछूता नहीं है । यहाँ तक कि अमेरिका जैसे विकसित शसकरशाली देश में भी गोरे काले का भेदभाव हमसे कहीं जयादा है । मुस्लम देशों में तो शिया , सुन्ी की आपसी जंग किसी से छिपी नही है पर पातक्रान जैसे कुछ देशों में तो अहमदिया जैसे गरीब तबके पर खुले रूप से अत्याचार होते है । दूसरी बात आज लोगों कि सोच काफी हद तक बदली और बदल रही है । कया कोई शहरों में किसी हलवाई
की जाति पूछकर समोसा खरीदता है ? रेहड़ी वाले उसका धर्म या जात पूछकर पानीपूरी या जलेबी खाता है ? नहीं पूछता परनरु यदि किसी रेहड़ी वाले से किसी ग्ाहक का झगड़ा हो जाये और नौबत मारपीट तक आ जाये तो मीडिया से जुड़े लोग रेहड़ी वाले की जाति धर्म पूछकर , यदि दुभागय से किसी कारण वो रेहड़ी वाला मुस्लम या दलित हुआ तो खबर जरुर बना देते है कि देखिये किस तरह एक दलित या अलपसंखयक पर हमला हुआ उसके लिए नयूज ्टूतडयो से इंसाफ की मांग उठाई जाएगी । इसके
बाद तथाकथित दलितों के देवता हैं , गरीबों के रहनुमा हैं , जिनहें इसी काम के लिए देश-विदेश से पैसा मिल रहा है । ये धार्मिक व जातीय घृणा के सौदागर सड़कों पर ज्ापन , धरना , प्रदर्शन , सतयाग्ह तथा महापड़ाव डालने की घोषणा कर धरना प्रदर्शन शुरू कर देते है और इस मामले को शुरू करने वाली मीडिया लाइव प्रसारण शुरू कर देती है । इनकी कोशिश यही रहती है कि जिसे ये दलित दलित कहकर कहकर सातिना प्रकट करते है जितना यह चाहते है वह केवल वही और उतना ही सोचे जितना यह लोग चाहते जिसका मापदंड पहले से ही तय लगता
है !
यह लोग हर एक मुद्े पर ऐसा दिखाते है जैसे इनके हाथ में दलितों का भविषय है , ये गलत मुद्े तथा अधूरी जानकारियों के जरिए देशभर के दलित बहुजन गुमराह कर रहे हैं , कयोंकि ये ्िघोषित महान अंबेडकरवादी हैं । कई बार तो लगता है जैसे कुछ नेताओं ने देश को खंड-खंड करने की साजिश का जिममा सा ले लिया हो ? हम मानते है कुछ सम्या विराट रूप लेकर खड़ी हो जाती हैं । किनरु कया उसका निदान राजनीति और मीडिया ही कर सकती है ,
उसके लिए नयाय प्रणाली कोई मायने नही रखती ? यदि हाँ तो ऐसी धारणा को कौन बल दे रहा है यह प्रश्न भी इस संदर्भ में प्रासंगिक है । हमे किसी प्रकार की राजनीति नहीं करनी है , जिसे करनी है वो करे , हम मानवता , शांति , सहिषरुरा , भाईचारे , समानता तथा ्िरंत्रता जैसे लोकतांत्रिक मूलयों के पक्षधर है और रहेंगे । किनरु किनही वजहों से जब कुरीति , छुआछूत के कारण या किसी अनय वजह से हमारे देश या धर्म पर ठेस लगती है तो उसकी सीधी पीड़ा हमारे ह्रदय में होती है ।
( साभार ) flracj 2022 41