लिए रचित हैं एवं उनके लिए मार्गदर्शक के कार्य कर रहे हैं । इन गीतों की रचना , श्ृंगार , भसकर , प्रेम , करुणा , वातसलय , ककृतष , प्रककृति वर्णन इतयातद से ऊपर उठकर ज्ान की परमपरा को अक्षुणर बनाने एवं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ्थानानररण करने के उद्ेशय से किया गया है ।
भवति गीत
मैथिल अपनी भसकर भावना , धार्मिक सं्कार और धर्म के प्रचार में योगदान के लिए विखयार हैं । अत : यह ्िाभाविक है कि यहाँ के लोक गीतों में भसकर गीत का महतिपूर्ण ्थान है ।
मिथिला के लोग वैसे तो शसकर के पुजारी के रुप में विखयार है परनरु शिव उनके आदर्श देव हैं । राम की पूजा में भी उनका जवाब नहीं है । विद्यापति अपने लोक गीतों के माधयम से राधा एवं ककृषर को मथुरा से मिथिला ले आए । काली , दस विद्या , दुर्गा , जाया , ब्ह्म बाबा , गोसाउन और ग्ामदेवता के अलावा सूर्य देव , गणेश एवं अनय देवताओं
की लोक गीतों के माधयम से पूजा होती है । मिथिला के मुसलमान भी मैथिली मरसिया गीत एवं विवाह के समय सोहर गाते हैं ।
प्ेम एवं सौन्य्फ के गीत
सम्य मिथिला क्षेत्र ज्ान के साथ-साथ
भसकर , प्रेम एवं सौनदय्त के लिए विखयार है । विद्यापति ने भसकर के अगाधभाव को राधा- ककृषर , महेशबानी व नचारी , गंगा-गीत , भगवती गीत के माधय से उजागर किया है वहीं दूसरी ओर प्रेम प्रसंग एवं सौनदय्त का सर्वाधिक उन्र वर्णन भी विद्यापति ने ही किया है । यह परमपरा आज भी विद्यमान है । इन गीतों के प्रमुख प्रकार में तिरहुत को सर्वाधिक प्रचलित माना गया है । तिरहुत गीत उतसि , सं्कार एवं अनुषठातनक अवसरों में तो गाए जाते ही हैं , चर्खा चलाते हुए , आटा पीसते हुए , सीकी बिनते हुए , खाना पकाते हुए एवं अनय कायषों को समपातदर करते हुए मैथिली ललना इन गीतों को गाते-गुनगुनाते रहती है । खेतों में कार्य करने वाले किसान , मजदूर , ्त्री , पुरुष , गिाले , चरवाहे भी प्रेम , श्ृंगार और सौनदय्त के गीत गाते रहते हैं । तिरहुत में मिलन का गीत है । तिरहुत में विरह का भी गीत है ।
गौरव गीत व कथा गाथा
इस श्ेरी के अनरग्तर वैसे गीत हैं जो मिथिला भूमि एवं यहाँ के लोगों की ऐतिहासिक , आधयासतमक , धार्मिक , माइथोलोजिकल महानता की गाथा कहते हैं । ऐसे गीतों में मिथिला भूमि की महानता यहाँ के ऐतिहासक एवं पौराणिक पात्रों की महानता की गाथा को गाते हैं । ऐसी कथा-गाथा को कहानी की तरह सुनाया जाता है । इन कथा गाथाओं में प्रमुख है राजा सलहेश , अलहाऊदल , दीनाभरिी , कारिख महाराज , कोइला बीर , नेवार , अजुरा , गोपीचनद और मैनावती इतयातद ।
संसार में शायद ही किसी अनय भाग में लोकगीतों का इतना परत दर परत मिलता है । जितना मैथिली लोक गीत में । मिथिला में असंखय लोकगीत अनादि काल से चले आ रहे हैं । इनका संचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सामानयरया मौखिक परमपरा द्ारा होता रहा है । तिरहुत गीत एवं यहाँ की महिला दोनों एक दूसरे के बिना पूर्ण नहीं है और लोकगीत की परमपरा सदा से चली आ रही है । �
flracj 2022 37