ज्ान को ब्ाह्मण , क्षत्रिय , शूरि , वैशय , स्त्रयों के लिए तथा जो अतयनर पतित हैं उनके भी कलयार के लिये दो । विद्ान और धनिक मेरा तयाग न करें । ( यजुिदेद 26 / 2 )
-हे ईशिर , मुझे ब्ाह्मण , क्षत्रिय , शूरि और वैशय सभी का प्रिय बनाइए । मैं सभी से प्रसंशित होऊं । ( अथर्ववेद-19 / 32 / 8 )
-सभी श्ेषट मनुषय मुझे पसंद करें । मुझे विद्ान , ब्ाह्मणों , क्षत्रियों , शूरिों , वैशयों और जो भी मुझे देखे उसका प्रियपात्र बनाओ । ( अथर्ववेद-19 / 62 / 1 ) इन वैदिक प्रार्थनाओं से विदित होता है कि – -वेद में ब्ाह्मण , क्षत्रिय , वैशय और शूरि चारों वर्ण समान माने गए हैं । -सब के लिए समान प्रार्थना है तथा सबको बराबर सममान दिया गया है
। -और सभी अपराधों से छूटने के लिए की गई प्रार्थनाओं में शूरि के साथ
किए गए अपराध भी शामिल हैं । -वेद के ज्ान का प्रकाश समभाव रूप से सभी को देने का उपदेश है । यहां धयान देने योगय है कि इन मंत्रों में शूरि शबद वैशय से पहले आया है । अतः ्पषट है कि न तो शूरिों का ्थान अंतिम है और ना ही उनहें कम महत्ि दिया गया है । इस से सिद्ध होता है कि वेदों में शूरिों का ्थान अनय िरषों की ही भांति आदरणीय है और उनहें उच् सममान प्रापर है । यह कहना कि वेदों में शूरि का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय है जिससे भेदभाव बरता जाए , पूर्णतया निराधार है | �
flracj 2022 15