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निर्णायक भूमिका में उप्र के दलित
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त्तर प्रदेश के चुनाव में दलितों की भूमिका अत्यंत ही महतवपूर्ण रहती है । देखा जाए तो लोकसभा के चुनाव में अथवा विधानसभा के चुनाव में सर्वाधिक आरलषित सीटें भाजपा के ही खाते में जाती हैं । राजनीतिक ढ़ाचे में देखा जाये तो उत्तर प्रदेश की सभी अनुसूचित जातियायं दो समूहों में सवाभाविक रूप से बटती नजर आती हैं । जाटव अथवा चमार जाति की लगभग पचासों उपजातियों की प्रतिबद्धता बहुजन समाज पाटटी के साथ निरयंतर रही है । बहुजन समाज पाटटी के कमजोर होने के कारण आज इस समुह की कुछ उपजातियायं भाजपा के साथ जुड़ती हुई दृष्टगत हैं ।
उत्तर प्रदेश की उकत जाटव एवयं चर्मकार जाति के अलावा अन् सभी अनुसूचित जातियायं एक अलग राजनीतिक समूह में है जो ज्ादातर 90 फीसदी तक भाजपा के साथ प्रतिबद्ध है । एक दशक पहले तक इस समूह की एक पासी जाति का समाजवादी पाटटी के साथ झुकाव था । किनतु आज सोशल मीडिया ने समाजवादी पाटटी के अलपसयंख्क प्रेम को उजागर कर पासी जाति को उनसे दूर कर दिया है । बहराइच जिले के राजा सोहेलदेव और बिजली पासी की वीरता की कहानियायं अब सामान् लोगों के हाथों में पकड़़े हुए मोबाइल में देखा जा रहा है । विदेशी आकायंता मोहममद गोरी के सगे भायंजे सालार मसूद को उसकी एक लाख सेना के साथ जमींदोज करने वाले राजा सोहेलदेव की तसवीर अब पासी समाज की समृलत में ताजा हो उठी है । यही कारण है कि सालार मसूद गाजी की कब्र पर अब हिनदुओं की उमड़ती भीड़ बहुत कम हो गई है ।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में खटिक जाति , वालमीलक जाति , पासी जाति और कोरी जाति के मतदाताओं ने यदि पूर्व की भायंलत इस बार भी
भाजपा के पषि में मतदान किया तो भाजपा के विजय रथ को कोई नहीं रोक सकता । खासतौर से समाजवादी पाटटी के बुनियादी मतदाताओं के उग्र सामाजिक ब्वहार के कारण दलित वर्ग के दोनों समूहों में से किसी भी समुह का उनहें समर्थन नहीं मिलेगा । रही बात बहुजन समाज पाटटी की तो मायावती जी के नाम पर पूरे प्रदेश में प्रथम समुह के दलितों का वोट मिलने से तो इनकार नहीं किया जा सकता है , लेकिन पश्चमी उत्तर प्रदेश में जाटव जाति का वोट तो चयंद्रशेखर उर्फ रावण द्ारा प्रभावित होगा । रावण को धमाांतरण करने वाली इसाई मिशनों की एजेंसियों ने धन-दौलत से इस तरह मजबूत बना दिया है कि जाटव और चमार वर्ग के कुछ वोटों को बलपूर्वक वह अपने पाले में खींच सकता है । इसके लिए देशी — विदेशी हिनदू विरोधी ताकतें भी उसके साथ पूर्व से ही कंधे से कंधा मिलाकर काम रहीं हैं ।
उत्तर प्रदेश में दलित जन प्रतिनिधियों और नेताओं को देखा जाए तो इनका सर्वाधिक नेतृतव सयंख्ा भाजपा में ही है । इसके मुकाबले सपा में इनका कोई प्रचलित या लोकप्रिय चेहरा नहीं है । ले — देकर के बसपा , जो दलितों की पाटटी कही जाती थी , आज उसे दलित मतदाताओं से अधिक ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रयासरत देखा जा सकता है । वासतलवकता तो यह है कि ब्राह्मण , षिलरिय , वै्् और दलित वर्ग का एक बड़ा समुदाय भाजपा के साथ आज भी षसथर भाव से खड़ा है । इसलिए उत्तर प्रदेश में देखा जाए तो आज भी भाजपा की प्रचयंि बहुमत की सरकार बनती हुई दिख रही है । यह ध्ुव सत् है और इसे काटा नहीं जा सकता ।
flracj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 3