laikndh ;
धर्म परिवर्तन करने वाले दलितों को आरक्षण क्ों ?
/
र्म परिवर्तन करके ईसाई या मुस्लिम बन चुके अनुसूचित जाति के लिोगों को दचलिर मानकर आरक्षण दिया जाना चाहिए या नहीं , इस प्रश्न के निर्धारण के चलिए केंद्र सरकार ने एक आयोग का गठन कर दिया है । उच्चतम नयायालिय के पूर्व प्रधान नयायाधीश की अधयक्षता वालिा यह आयोग कया निर्णय लिेगा , यह कह पाना अभी समभव नहीं है । लिेकिन यह एक ऐसा मुद्ा है , जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से संवेदनशीलि है । सुनियोजित रूप से ऐसा प्रचारित किया जा रहा है कि धर्म परिवर्तन करने वालिे दचलिरों की स्थिति काफी ख़राब है और मुस्लिम एवं ईसाई धर्म अपनाने के बाद भी उनकी पहचान दचलिर ईसाई और दचलिर मुस्लिम के रूप में होती है । इसके आलिावा जब धर्म परिवर्तन करने वालिे अनुसूचित जनजाति के लिोगों को आरक्षण का दिया जा रहा है तो अनुसूचित जाति के लिोगों को कयों नहीं दिया जा रहा है ।
प्रश्न यह है कि जब धर्म परिवर्तन करने वालिों लिोगों की स्थिति दचलिरों जैसी है तो फिर यह कयों कहा जाता है कि ईसाई और इस्लाम पंथि में किसी भी तरह के जातिगत भेदभाव का कोई स्थान नहीं है ? भारत में हिनदू समाज को तोड़ने के चलिए सैकड़ों वर्षों से प्रयास किये जा रहे हैं । धर्म परिवर्तन कराकर अपनी संखया बढ़ाने का दांव सबसे पिलिे अरब के उन क्रूर मुस्लिम शासकों ने चलिा थिा , जो लिूट-खसोट के चलिए भारत में घुसे थिे । बाद में मुस्लिम शासकों ने इसे एक परंपरा का रूप दिया , जिसका परिणाम देश में मुस्लिम समुदाय के रूप में मौजूद जनता के रूप में देखा जा सकता हैI मुस्लिम शासकों की हिनदू समाज विभाजक परंपरा को अंग्ेजों ने भी अपनाया और ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के नाम पर हिनदू जनता का धर्म परिवर्तन करने में जुट गए । अंग्ेजों ने भेदभाव को बढ़ाकर हिनदू समाज में स्थापित प्राकृतिक सामाजिक समरसता को नषट किया और धर्म परिवर्तन कराने के चलिए अनैतिक साधनों का निर्ममता के साथि प्रयोग किया । यह चसलिचसलिा ्वरनत्र भारत में आज तक जारी है ।
कांग्ेस के नेतृतव वालिी केंद्र सरकार के कार्यकालि में धर्मपरिवर्तन करने वालिे दचलिरों को अनुसूचित जाति में शाचरलि करने की जब मुहिम चलिायी गयी थिी , उस समय ( 2005 में ) मैंने तत्कालीन सरसंघचालिक मोहन भगवत से इस गंभीर चवर्य पर चर्चा की थिी । उसके बाद भाजपा के अनेकों दचलिर नेताओं के साथि एक कार्यशालिा का आयोजन किया गया , जिसमें इस मुद्े को उठाया गया । कार्यशालिा में सतयनारायण जटिया , रामनाथि कोविंद , थिावरचंद्र गिलिोत , विशव हिनदू परिर्द के नेता बी . मदनन और संघ के केंद्रीय सद्य इंद्रेश कुमार भी सम्मिलित हुए । बैठक में यह निर्णय चलिया गया कि संघ परिवार धराांतरित दचलिरों को अनुसूचित जाति में शाचरलि करने
के मुद्े का पुरजोर विरोध किया जायेगा कयोंकि इससे दचलिर समाज का अहित होगा । इस बैठक के बाद आरक्षण बचाओ आंदोलिन समिति का गठन हुआ । समिति का संयोजक रामनाथि कोविंद और सह संयोजक बी . मदनन को बनाया गया । बाद में इस चवर्य को पूरे देश में लिे जाने का कार्य मैंने ्वयं किया । इस समबनर में उच्चतम नयायालिय के मुखय नयायाधीश बालिाकृषणन , राषट्ीय अनुसूचित जाति आयोग के तत्कालीन अधयक्ष बूटा सिंह के साथि बैठक भी की । इतना ही नहीं , तत्कालीन कांग्ेस सरकार ने इस र्ड्ंत्र पर आधारित राषट्ीय धार्मिक एवं भार्ायी अलपसंखयक आयोग का गठन किया और उसका अधयक्ष रंगनाथि मिश्ा को बनाया । उस समय पूरे देश के विभिन्न हि्सों में प्रेस वार्ता के माधयर से मैंने इसका पुरजोर विरोध किया । रंगनाथि आयोग की सेक्ेटरी-जनिलि आशा दास से भी मुलिाकात की और उनिें भी इस चवर्य की गंभीरता से अवगत कराया । मुंबई के टाटा इंस्टट्ूट ऑफ़ सोशलि साइंस ने भी एक कार्यशालिा का आयोजन किया जिसमें मेरे नेतृतव में प्रो . सुवर्ण रावलि , चरचलिंद कांबलिे डिककी के वर्तमान चेयरमैन इतयाचद लिोग भी शाचरलि हुए । सौभागय से उस कार्यशालिा के दो सत्र का चेयर करने के रूप में मुझे अवसर चरलिा । हमें ्रिण है कि यह एक गेमचेंजर सिद्ध हुआ । इस चवर्य की गंभीरता को हमने विविध रुप से सामने रखा और यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि धर्मानररित दचलिरों को अनुसूचित जाति का दर्जा किसी भी स्थित में नहीं दिया जाना चाहिए । यह सभी तथय रिकार्ड में हैं , जिनिें कभी भी सतयाचपर किया जा सकता है । बाद में रंगनाथि आयोग की सेक्ेटरी-जनिलि आशा दास के एक डिसेंट नोट के साथि यह मुद्ा ठन्डे ब्रे में चलिा गया थिा ।
इस प्रकरण की क्ोनोलिॉजी समझने का प्रयास होना चाहिए । जब यह चवर्य 1936 में चरिटिश इंडिया सरकार के समक्ष आया तो उनिोंने यह कहते हुए धराांतरित ईसाई और मुसलिरानों को अनुसूचित जाति में शाचरलि करने से अ्वीकार कर दिया थिा कि ईसाई और मुस्लिम समाज जातिविहीन होता है । ्वरंत्रता के उपरांत जब डॉकटि भीमराव आंबेडकर जी द्ािा संविधान बनाया जा रहा थिा तो उनिोंने भी धराांतरित ईसाई और मुसलिरानों को अनुसूचित जाति की श्ेणी में रखने से अ्वीकार कर दिया थिा । तदुपरांत देश में अनेकों प्रधानमंत्री हुए , किंतु कभी भी धराांतरित ईसाई और मुसलिरानों को अनुसूचित जाति में शाचरलि करने का प्रयास नहीं किया । 2004 में जब यूपीए सरकार आई तो उसने सोनिया गांधी के सह पर यह खतरनाक खेलि प्रारंभ किया । परंतु उसका यथिोचित जवाब दे दिया गया थिा । आज पुनः इस पर चर्चा होना आशचय्मजनक ही नहीं , बसलक किसी गंभीर खतरे का संकेत है ।
vDVwcj & uoacj 2022 3