eMag_Oct 2021-DA | Page 3

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दलित मुख्यमंत्री या प्ायोजित षडयंत्

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ग्रेस की इटालियन नरेता श्ीमती सोनिया तरह-तरह सरे भारत में राजनीतिक खरेि खरेिती है । उनका पसंदीदा राजनीतिक खरेि है हिंदुओं की भारी संखया में धमाांतरण करना । पंजाब के मुखयमंत्ी श्ीमान चरणजीत सिंह चन्ी के मुखयमंत्ी होनरे सरे सोनिया जी के धमाांतरण के खरेि सरे पर्दा उठता हुआ दिख रहा है । सोनिया जी भारत में ईसाइयत का एजेंडा लगातार चला रही हैं । बडी मुस्कि सरे यूपीए के कार्यकाल में संगठित होकर दलितों नरे उनके धमाांतरण के एजेंडे को रोकनरे में सफलता प्ापत किया था । आज भी वह धमाांतरण के खरेि को चालु रखनरे हरेतु प्यासरत हैं ।
आज एक दलित को पंजाब का मुखयमंत्ी बनाए जानरे केसाथ भारतीय राजनीतिक परिप्रेक्य को समझनरे का प्यास होना चाहिए । चरणजीत सिंह चन्ी यदि चर्च जातरे हैं और वरे इसाई हैं तो इसका यह भी अर्थ ्पषट है कि वरे दलित नहीं हैं । अब वरे अनुसूचित जाति के भी नहीं हैं । अनुसूचित जाति की परिभाषा के अंतर्गत मुस्िम , इसाई या किसी भी अनय पंथ का अनुयायी किसी भी स्थलत में अनुसूचित जाति का नहीं हो सकता । अनुसूचित जाति के अंतर्गत केवल हिनदू , नवबौद्ध और सिख पंथ के वरे लोग जिनके साथ अस्पृशयता का वयवहार पूर्व काल सरे होता रहा है अथवा वरे लोग जो अ्वच्छ वयवसाय में लगरे रहरे हैं , वही आतरे हैं ।
चरणजीत सिंह चन्ी रैदासिया समाज सरे आतरे थरे किंतु धमाांतरण करके चन्ी जी अव ईसाई बन गयरे हैं । रैदासिया समाज के लोग संत शिरोमणि गुरू रैदास जी के अनुयायी होतरे हैं । ऐसा उल्लेख है कि संतशिरोमणी गुरु रैदास काशी में पंचकोशी मार्ग पर अवस्थत अपनरे अड़ी पर जूतरे गाठनरे का कर्म करतरे थरे । यानी रैदासिया हिनदू समाज के वरे धर्माभिमानी लोग हैं जो चर्म — कर्म में वयावसायिक रूप सरे लग गयरे किंतु विदरेिी मुस्िम आकांताओं के इ्िाम मजहब को अपनानरे के शर्त को ठुकरा दिया । मधय काल में विदरेिी मुस्िम आकानताओं द्ारा जिन ्वालभमानी , धर्माभिमानी एवं राषट्ालभमानी लोगों को तलवार की नोक पर बलपूर्वक दमन — दलन के उपरांत चर्म — कर्म में
लगाकर दलित बनाया गया । और वरे विवशतावश अ्वच्छ कार्य करनरे के कारण अस्पृशय बनतरे चिरे गयरे ।
चरणजीत सिंह चन्ी का हिनदू धर्म ्छोडकर इसाई होना कोई इलतिफाक अथवा ्वैसच्छक धार्मिक ्वतंत्ता की अभिवयस्त का मामला नहीं है । अलबतिा इसके पी्छे एक बहुत बड़ा षड़यंत् ल्छपा हुआ है । और यह भारतीय राजनीतिक लड्कोसदा में भारत एवं हिनदू विरोधी शक्तयों के सफल धमाांतरण अभियान का बहुत बड़ा उदाहरण है । यदि इसपर धयान दिया जाय तो इससरे भारत में दलितों के धमाांतरण के एक बहुत भयानक षड़यंत् का खुलासा होता है । दरेि और समाज समाज के समक्ष इस तरह के षड़यंत् का खुलासा होना और ऐसरे षड़यंत्ों को रोकनरे की दिशा में ठोस कदम उठाया जाना आज अतयंत आवशयक है ।
मुखयमंत्ी श्ी चन्ी की जाति रैदासिया यानी चर्मकार जाति है । चर्मकार जाति ईसाई मिशनरियों के रडार पर लगभग पौनरे दो सौ वषषों सरे है । भारत में चर्मकार जाति के धमाांतरण के इतिहास का लगभग पौनरे दो सौ वषषों का लिखित प्माण ्पषट दरेखा जा सकता है । इसके लिए वर्ष 1825 में लार्ड मैकािरे द्ारा भारत के संदर्भ में लरिटिश संसद में दिए गए भाषण और उसके उपरांत 1857 में अंग्रेजों के विरूद्ध हुई मरेरठ की कांलत पर दृष्टिपात करना अति आवशयक है । मैकािरे नरे भारत को लंबरे समय तक गुलाम बनानरे के लिए यहां के सामाजिक , सांस्कृतिक और धार्मिक संरचना पर योजनाबद्ध आकमण का उल्लेख किया था । इसके बाद 1857 की खूनी कांलत के बाद अंग्रेजों नरे मैकािरे के सुझाए गए उपायों को कारगर ढ़ंग सरे लागू करनरे का गंभीर निर्णय लिया गया ।
उपरो्त परिप्रेक्य में सन् 1857 की कांलत के उपरांत सन् 1860 में ऑ्सफोर्ड विशवलवद्ािय के एक कुटिल प्ोफेसर एम ए िरेरिंग को भारत भरेजा गया था । भारत में प्ोफेसर िरेरिंग नरे खासतौर सरे उतिर प्दरेि के मिर्जापुर , वाराणसी , जौनपुर , रायबररेिी , लखनऊ और कानपुर जैसी जगहों का भ्रमण करके हिनदू समाज का गहन अधययन किया । भारतरत्न बाबा साहब डॉ भीमराव रामजीराव अंबरेडकर जी का सन् 1891 में जनम हुआ था । डाँ अंबरेडकर
जी के जनम कसरे भी लगभग बीस वर्ष पहिरे सन् 1872 में प्ोफेसर िरेरिंग की एक खतरनाक पु्तक प्काशित हुई । ' हिनदू ट्ाइबस एणड का्ट ' नामक प्ोफेसर िरेरिंग के उस ग्ंथ में ्पषट रूप सरे अनरेकों अनय दलित जातियों के साथ चर्मकार जाति के विककृत विवरण का उल्लेख किया गया । उसके निषकषदा के रूप में यह सिद्ध करनरे का प्यास था कि चर्मकार जाति को पूरी तरह इसाई बन जाना चाहिए ्योंकि इसमें ही उनका कलयाण है ।
चर्मकार जाति को इसाई के रूप में धमाांतरित करनरे की दिशा में सन् 1920 में लिखी गई प्ोफेसर डबलयू एस लवग्स की पु्तक का उल्लेख भी अति आवशयक है । लरिटिश विद्ान एवं िरेखक प्ोफेसर डबलयू एस लवग्स नरे सन् 1920 में अपनी पु्तक ' दि चमार्स ' को प्काशित कराया । आज भी चर्मकार जाति के भोिरेभािरे लोग इस पु्तक को भगवतगीता की तरह अपनरे घरों में रखतरे हैं । ' दि चमार्स ' नामक इस पु्तक में चर्मकार जाति के समबंध में अपमानजनक इतिहास के साथ ही यह भी लिखा गया है कि चर्मकार जाति के लोगों को इसाई बन जाना चाहिए ।
इस तरह सरे दरेखा जाए तो भारत की चर्मकार जाति विदरेिी इसाई मिशनरियों के रडार पर लगातार पौनरे दो सौ सालों सरे है और प्ायोजित मिशनरियों नरे नि : संदरेह इनकी सरेवा अवशय की है िरेलकन वह सरेवा नि : ्वाथदा नहीं थी । अपितु इसप्कार की बदिरे में उनके पुरखों के धर्म को ही खरीद लिया । मरेरा दावा है कि आज दरेिभर में चर्मकार जाति के लगभग 70 फीसदी सरे अधिक लोग इसाई धर्म अपना चुके हैं । केवल उनही लोगों नरे इसाईयत को ठुकरा दिया है जो आर्थिक एवं शैक्षणिक रुप बहुत मजबूत हैं , िरेलकन उनकी संखया 10 — 20 फीसदी सरे अधिक नहीं है । इसाईयत को अपना चुके धर्मानतरित चर्मकार जाति के लोग यदि अपनरे धार्मिक ्टेटस का खुलकर प्दर्शन करेंगरे तो इनहें अनुसूचित जाति के लाभ सरे बंचित होनरे का भय है । इसलिए चन्ी जैसरे लोग राजनीतिक लाभ िरेनरे के उपरांत सार्वजनिक रूप सरे चर्च में जानरे की भूल कर बैठतरे हैं । परनतु बात उठेगी तो दूर तक जाएगी । चन्ी जैसरे लोग तो उस पिटाररे की मात् चाबी हैं जिसके खुलनरे सरे हिनदू विरोधी षड़यंत् के कािरे सांप की काली सच्ाई सामनरे आ गई है । प््तुतकतादााः डाँ विजय सोनकर शास्त्री पूर्व संसद सद्य ( लोकसभा )
vDVwcj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 3