lkfgR ;
दलित विषयक साहित्य से समृद्ध होती हिंदी
संघ करी राजभाषा हिंदरी है । राजभाषा के रूप में ्यह निश्चित भार्त
दक्या ग्या है कि ्यह भार्त करी सभरी संसकृद्त्यों का प्रद्तदनदधति करेगरी । साहित्यिक भाषा में इसे भार्तरी्य समाज के विभिन्न धमथों , जाद्त्यों , िगथों और षिेत्ों का प्रद्तदनदधति करना है । कुछ दशक पूर्व ्तक भार्तरी्य भाषाओं में एक खास वर्ग का साहित्य था और पठन-पाठन के माध्यम से व्यक्त ज्ान भरी अभिजा्त वर्ग के पास था । ्यह उसरी ्तरह था , जिस ्तरह एक सम्य म्त देने ्या अपना प्रद्तदनदध चुनने का अधिकार खास वर्ग को हरी था । पर जिस ्तरह लोक्तंत् ने वह म्ताधिकार सभरी को सुलभ कर दद्या , उसरी ्तरह सभरी भाषाएं मिलकर आज भाषाई लोक्तंत् करी रचना कर रहरी हैं ।
विग्त कुछ दशकों से हिंदरी और भार्त करी अन्य भाषाओं में ज्ान करी विविध्ता बढ़ी है । साहित्य में ददल्त विष्यक साहित्यकार का भाषाई ्योगदान देखा ग्या है । इस साहित्य को अभरी ्तक ददल्त साहित्य के नाम से पुकारा जा रहा है । इससे समाज के वंदच्त और निर्धन ्तबकों करी समस्याओं का खुलासा हो रहा है और भाषा के षिेत् में नए-नए शबदों द्ारा अभू्तपूर्व अवदान हो रहा है । इस ्तरह भार्तरी्य भाषाओं के साहित्य में विविध्तापूर्ण समृद्धि आ रहरी है । इसरी में स्वातंत्रोत्तर ददल्तों करी साहित्यिक आवाज पहलरी बार सुनरी जा रहरी है । ्यह आवाज सरहदों के पार भरी जा रहरी है । भार्तरी्य ददल्त साहित्य चूंकि अपनरी भाषाई मौलिक्ता के साथ आ्या है , इसलिए ्यह भाषाई लोक्तंत् को सांस्कृतिक सार्थक्ता प्रदान कर्ता है ।
हिंदरी का ददल्त साहित्य असल में ‘ हिंदुस्तानरी ’
भाषा में अधिक है । ्यहां हिंदरी संसकृ्तदनष्ि्ता के आग्ह से मुक्त है । ददल्त साहित्य का निजरी और सथानरी्य शबद भंडार ्तो हमारे शबदकोशों को भरी नए शबद दे्ता है । ऐसा नहीं है कि ददल्त आतमकथाएं मानक ्या खड़ी बोलरी करी उपेषिा कर्तरी हैं । वह मानक अपनरी जगह है । ्यह रचनातमक साहित्य है और रचना में पात्ों करी मौलिक भाषा और नैसर्गिक संस्कृति आ्तरी है , ्तो उसके साथ समाज और संस्कृति करी मौलिक अभिव्यक्ति भरी आ्तरी है । ्यद्यपि हिंदरी मरीदड्या ददल्त सच को सामने लाने में पूररी ्तरह उदार नहीं दिख्ता , लेकिन इसमें नकारातमक हरी सहरी , कुछ ्तो आ्ता है ।
भाषाई दृष्टि से हिंदरी समाज मुगल काल और ब्रिटिश दौर में वर्चसििाद से मुक्त नहीं हुआ था । बसलक सामाजिक इद्तहास करी दुखद घड़ियों में वर्ण व्यवसथा के कठोर दन्यमों ने ददल्त समाज को ज्ान करी साझेदाररी से अलग कर
समाज करी मुख्यधारा से बदहष्कृ्त दक्या , ्तो भाषाई आधुनिकरीकरण भरी बादध्त हुआ । वैसे में ददल्त समाज करी मुक्ति के प्र्यास उसकरी अपनरी भाषा-शैलरी में हुए । वे प्र्यास हम सिामरी अछू्तानंद , बिहाररीलाल हरर्त जैसे वरिष्ठ कवि्यों और चिं्तकों के प्र्यासों में देख सक्ते हैं । इसलिए आज ददल्त साहित्य में आ रहरी रचनाएं , विषेशकर आतमकथाएं , हिंदरी का जो रूप प्रस्तु्त कर रहरी हैं , उससे हिंदरी का विकास हरी हो रहा है । हिंदरी का सहज सरल होना न केवल ददल्तों , आदिवादस्यों और पिछड़ी जाद्त्यों के दह्त में है , बसलक स्वयं हिंदरी को जरीिं्त बनाए रखने के लिए भरी ्यह आवश्यक होगा ।
अपने देश में कई प्रकार करी हिंदरी प्रचदल्त है । विविध प्रकार करी हिंदरी का सममान करने और लोक्तांदत्क विविध्ता के सापेषि उसे फलने-िकूलने देने के लिए ्यह आवश्यक हो जा्ता है कि हम अखबाररी हिंदरी , सरकाररी का्यामाल्यों करी हिंदरी , सिनेमा और नाटकों करी हिंदरी , संस्कृतनिष्ठ कठिन हिंदरी और ददल्त विष्यक साहित्य करी आसान हिंदरी के बरीच सामंजस्य बिठाने का प्र्यास करें । लोक्तंत् में वस्तु्तः वहरी भाषा विस्तार पा्तरी है , जिसके पढने , लिखने और समझने वालों करी संख्या अधिक हो्तरी है । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लोक्तांदत्क व्यवसथा द्ारा प्रदत्त अभिव्यक्ति के अधिकार , अवसर और मंच उपलबध कराने के कारण हरी हिंदरी भाषा को ददल्त आतमकथाओं ने इ्तना समृद्ध दक्या है । इसमें लोक संस्कृति और लोकभाषा ने भरी अपनरी मौलिक भूमिका निभाई है । हिंदरी करी इस लोक्तांदत्क्ता को बनाए रखना आवश्यक है ।
( साभार )
50 uoacj 2023