eMag_Nov2023_Dalit Andolan Patrika | Page 48

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विकास और दिशा की चुनरौिरी से जूझता दलित विषयक साहित्य

कंवल भारती vk

ज ददल्त साहित्य के समषि उ्तनरी चुनौद्त्याँ नहीं हैं , दज्तनरी हमारे सम्य में थीं । हमारा ्तो ज्यादा्तर सम्य और ऊर्जा ददल्त साहित्य के विरोदध्यों से संघर्ष करने में हरी खर्च हुई । केवल ददषिणपंथरी हरी नहीं , बसलक कुछ वामपंथरी भरी , हालाँकि सारे नहीं , ददल्त साहित्य के विरोधरी थे । वे भरी्तर से आज भरी विरोधरी हैं , पर अब ददल्त साहित्यकार उनके विरोध करी परवाह नहीं कर्ते । उनका बहु्त हरी भोंडा और हास्यासपद ्तक्फ पहले ्यह हो्ता था कि “ जब ददल्तों करी बा्त हम कर हरी रहे हैं , ्तो फिर अलग से ददल्त साहित्य करी क्या जरूर्त है ? वर्णव्यवसथा के पषि में भरी ब्राह्मणों के प्रा्य : ऐसे हरी कु्तमाक थे , जैसे , शूद्रों को पढ़ने- लिखने करी क्या जरूर्त है , जब उनकरी सहा्य्ता के लिए ब्राह्मण मौजूद है , ्या शूद्र को हदथ्यार रखने करी क्या जरूर्त है , जब षित्री उसकरी सहा्य्ता के लिए मौजूद है , ्या शूद्र को धन रखने करी क्या जरूर्त है , जब उसकरी सहा्य्ता के लिए वैश्य धन रख्ता है ? लेकिन सच ्यह है कि इनमें से किसरी ने भरी शूद्रों करी सहा्य्ता के लिए न कलम चलाई , न हदथ्यार उठाए । और न धन खर्च दक्या । शूद्रों का उतथान ्तभरी हुआ , जब उनहोंने स्वयं दशषिा ग्हण करी , हदथ्यार रखे और धनार्जन दक्या । इसरी प्रकार ददषिण पंदथ्यों और वाम पंदथ्यों दोनों ने हरी ददल्तों के दुखों को अनुभव नहीं दक्या । जब अनुभव हरी नहीं दक्या , ्तो वे लिख्ते भरी क्या ? इसलिए
ददल्त समाज के दुख ्तभरी साहित्य में आए , जब स्वयं ददल्त लेखकों ने कलम उठाई ।
ददल्त साहित्य को स्थापित करने के लिए हमने बहु्त लंबरी लड़ाई लड़री है । इसके लिए अखबार निकाले गए , मंच बनाए गए , संगठन बनाए गए और विरोदध्यों को ्तार्किक जवाब दिए गए । कुछ जन-संस्कृति मंच जैसे कुछ वामपंथरी संगठन हमारे समर्थन में आए । हमने उनके मंचों से भरी ददल्त साहित्य का पषि रखा । परिणाम्त : 1990 के दशक में हरी कुछ राष्ट्ररी्य अख़बारों और पदत्काओं ने ददल्त विमर्श को
छापना आरमभ दक्या । ददल्त साहित्य और विमर्श को स्थापित करने में ओमप्रकाश वाल्मीकि , मोहनदास नैमिशरा्य , श्योराजसिंह बेचैन , और मैं सब िरीम-भावना से एकजुट होकर ्योजना बनाकर काम कर्ते थे । लेकिन मौजूदा दौर और भविष््य करी चुनौद्त्यों करी बा्त करें ्तो ्यह चुनौ्तरी अब ज्यादा बड़री है । हालाँकि सथापना का संघर्ष अब नहीं है , परन्तु विकास और दिशा करी चुनौ्तरी अभरी भरी है । ददल्त साहित्य आज प्रगद्त पर है , इसमें संदेह नहीं । कवि्ता , कहानरी , उपन्यास , निबनध , आलोचना आदि कई विधाओं में ददल्त
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