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दलित हित में नहीं है हलाल तंत्र
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त्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ्योगरी आदित्यनाथ के दनददेश पर राज्य में हलाल प्रमाणन ्युक्त खाद्य पदाथथों के निर्माण , भंडारण , वि्तरण एवं विक्र्य पर ्ततकाल प्रद्तबंध लगा दद्या ग्या है । ्यद्यपि इस प्रद्तबंध से उन उतपादों को मुक्त रखा ग्या है जो दन्यामा्त किए जा्ते हैं । इसका अर्थ ्यह है कि दन्यामा्त के लिए हलाल प्रमाणपत् पहले करी ्तरह मान्य रहेंगे लेकिन अब प्रदेश के सथानरी्य बाजार में कोई भरी वस्तु बेचने के लिए किसरी कंपनरी के लिए हलाल प्रमाणपत् लेना अनावश्यक हो ग्या है । उत्तर प्रदेश सरकार का ्यह दनणमा्य कई मामलों में ऐद्तहासिक है । लेकिन देश के अन्य राज्यों में फिलहाल हलाल व्यवसथा पर कोई रोक नहीं है और न हरी इसके लिए कोई सरकार पहल करने के लिए सामने आई है । वास्तव में देखा जाए ्तो " हलाल " और " हराम " करी मजहबरी व्याख्या के माध्यम से पूरे विशि में एक ऐसे सुदन्योदज्त ्तंत् को खड़ा कर दद्या ग्या है , जो ' हलाल ' करी आड़ में केवल मजहबरी धार्मिक , सामाजिक , राजनरीद्तक और आर्थिक दह्तों को पूरा कर रहा है । कांग्ेस सरकार के माध्यम से ' हलाल ्तंत् ' ने भार्त में जिस ्तरह से अपने पैर जमा लिए हैं , उसके नकारातमक परिणाम जमरीनरी स्तर पर देखे जा रहे हैं । केवल धर्म विशेष करी आसथा को पोदष्त करने के लिए " हलाल ्तंत् " को संपूर्ण गैर मुससलम वर्ग-समाज पर थोप दद्या ग्या है । ' हलाल ्तंत् ' को सैकड़ों िषथों से चले आ रहे धर्म ्युद्ध का आधुनिक सिरूप भरी कहा जा सक्ता है , जिसका एकमात् लक््य मजहबरी इसलादमक दह्तों को सुरदषि्त करना है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदरी के ने्तृति वालरी केंद्र सरकार के केंद्ररी्य वाणिज्य एवं उद्योग मंत्ाल्य ने " हलाल " पर अंकुश लगाने के लिए का्यमा प्रारमभ कर दद्या है और मांस दन्यामा्त में " हलाल " करी बाध्य्ता को समाप्त करके खटिक वर्ग के लाखों लोगों को राह्त ्तो दरी है , पर खटिक सदह्त अन्य ददल्त िगथों के सामने अभरी भरी ्तमाम समस्याएं सामने खड़री हुई हैं ।
देश भर में खटिक जाद्त करी लगभग पांच करोड़ जनसंख्या हैं । बहुसंख्यक खटिक समाज मांस के व्यवसा्य से हरी जुड़े हुए हैं । हलाल और हराम के खेल के कारण मांस व्यवसा्य से जुड़े खटिक एवं अन्य ददल्त वर्ग के लाखों लोगों के सामने रोजरी-रोिरी का संकट उतपन्न हुआ है । सबसे बड़री समस्या ्यह है कि वह झटका मांस करी दबक्ररी करें , जो मुससलम धर्म के लोगों को छोड़कर अन्य सभरी धर्म के लोग चाह्ते हैं ्या फिर हलाल मांस को बेचने के लिए बाध्य हो जाएं ? उत्तर प्रदेश एवं अन्य
कुछ प्रदेशों में खटिक सदह्त अन्य ददल्त जाद्त के लोग सूअर के मांस के व्यवसा्य से जुड़ें हैं । हलाल और हराम के कारण खटिकों सदह्त अन्य ददल्त वर्ग के लोगों का जरीिन नकारातमक रूप से प्रभावि्त हुआ है , सरकाररी ्तंत् को ्यह भरी समझना हरी होगा । भार्त में खप्त होने वाले अधिकांश मांस व्यवसा्य में मछलरी , गोजा्तरी्य मटन , बकररी , सूअर और मुगगी शामिल हैं । लेकिन हलाल के खेल के कारण सूअर को छोड़कर अन्य पशुओं के मांस व्यापार पर मजहबरी ्तंत् का प्रत्यषि ्या अप्रत्यषि रूप से कब्ा हो चुका है । इसके कारण खटिक एवं अन्य ददल्त िगगी्य जाद्त्यां अन्य पशुओं के मांस व्यापार से बाहर हो ग्या है । इससे आर्थिक-सामाजिक रूप से जो जटिल समस्याएं उतपन्न हुई हैं , उसका निराकरण अब कािरी कठिन हो्ता जा रहा है । ्यहां कडुआ सच ्यह भरी है कि भार्त में मांस करी खप्त अब मुससलम दह्तों पर निर्भर हो चुकरी है और इसरी का परिणाम हलाल ्तंत् के रूप में देखा जा सक्ता है ।
सबको विदद्त है कि हलाल के नामपर एक समानां्तर व्यवसथा बनाना और हलाल प्रमाणपत् करी व्यवसथा मजहबरी दह्तों पर निर्भर है , लेकिन ्यह भार्तरी्य लोक्तंत् और संविधान के लिए भरी एक बड़री चुनौ्तरी है । हलाल प्रमाणपत् वालरी व्यवसथा मजहबरी दह्तों पर केंदद्र्त है , ऐसे में किसरी इसलादमक देश में ्तो इसके लिए जगह हो सक्तरी है , लेकिन भार्त जैसे बहुधमगी लोक्तासनत्क देश में ऐसरी व्यवसथा का होना किसरी भरी रूप से सहरी नहीं माना जा सक्ता है । ऐसे में उत्तर प्रदेश करी ्योगरी सरकार ने जो दनणमा्य दल्या है , वह भार्त के लोक्तंदत्क चररत् को बनाए रखने वाले प्र्यास के रूप में देखरी जा सक्तरी है । आवश्यक्ता ्यह है कि हलाल व्यवसथा पर केनद्र सरकार को कोई सथाई कानून बनाने के लिए पहल करनरी हरी होगरी , जिससे खटिक सदह्त अन्य ददल्त जाद्त्यों के धार्मिक , आर्थिक एवं सामाजिक दह्तों को सुरदषि्त रखा जा सके अन्यथा हलाल ्तंत् धरीरे-धरीरे खटिक एवं अन्य ददल्त वर्ग करी कमर को ्तोड़ कर रख देगा और इसके नकारातमक परिणाम जब सामने आएंगे , ्तो उसका कोई समाधान नरीद्त-दन्यं्ताओं के ्तलाशने पर भरी नहीं मिलेगा । उच्च्तम न्या्याल्य को भरी इसपर विचार करना होगा कि जो हलाल खाना चाह्ते हैं ्तो वो हलाल खा्यें किं्तु झटका ्यानरी गैरहलाल मांस खाने वालों के मौलिक धार्मिक अधिकारों करी रषिा होनरी चाहिए ।
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