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क्ेत्रीय दलों ने अपनाया आक्रामक रूख
बिहार , यूपी व हरियाणा जैसे राजयों में क्ेत्ीय दल काफी मजबूत ससिलत में हैं और उनकी राजनीति ही जाति पर आधारित है । वैसे भी देश की राजनीति में पिछड़े वर्ग का दखल बढ़ा है । एक अनुमान के मुताबिक बिहार में ओबीसी की आबादी 26 प्रतिशत है । नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को अति पिछड़ी वर्ग की जातियों के अलावा ओबीसी में यादव को छोड़ अनय जातियों का साथ मिलता रहा है , हालांकि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में यह तीन नंबर पर आ गई । इधर , राजद भी 2020 में मिले वो्ट को एकजु्ट रखना चाहता है , इसलिए अपने जनाधार में जदयू की सेंध से बचने के लिए ओबीसी का सच्चा हितैषी बनने की जुगत में है ।
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी जातिगत जनगणना को लेकर बड़ा दांव खेल दिया है । उनहोंने कहा है कि अगर 2021 में जातीय जनगणना नहीं होगी तो बिहार ही नहीं , देश के सभी पिछड़ों-अति पिछड़ों के अलावा दलित व अलपसंखयक समाज के लोग जनगणना का बहिषकार कर सकते हैं । बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक् तेजसवी यादव कहते हैं , " 90 साल से विभिन्न जातियों की आबादी के बारे में स्टीक जानकारी नहीं है । कमजोर वगषों की उन्नति संबंधी सारी नीतियां पुराने आंकड़ों के आधार पर बनाए जा रहे हैं , जो कतई उचित नहीं कहा जा सकता ।"
भाजपा की नीयत साफ , सोच स्पष्ट भारतीय जनता पार्टी ( बीजेपी ) जो कभी
सवणषों तथा बनियों की पार्टी समझी जाती थी , अनय जातियों में अपना जनाधार बढ़ा चुकी है । इसलिए वह अब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के साथ ओबीसी को लामबंद करना चाहती है । साथ ही बीजेपी गरीब सवणषों को आरक्ण व जनसंखया नियंत्ण जैसे कानून के सहारे हिंदुओं को एकजु्ट करने की कोशिश भी कर रही है । भाजपा का रूख जातीय जनगणना पर साफ है ।
राजयों तथा केंद्र शासित प्रदेशों को ओबीसी की सूची बनाने का अधिकार देने वाले विधेयक को राजयसभा में पास कराने के पहले यह साफ कर दिया कि फिलहाल जाति जनगणना कराने का कोई इरादा नहीं है और न ही 2011 के जाति जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक किया जाएगा । आरएसएस भी जातिगत जनगणना का विरोध करता रहा है । हालांकि , बिहार भाजपा इकाई में भी अब जातीय जनगणना के सवर उभरने लगे हैं । भाजपा को्टे से राजसव व भूमि सुधार मंत्ी बने रामसूरत राय ने कहा कि जातीय जनगणना भी हो और जनसंखया नियंत्ण कानून भी बने । शायद यही वजह है कि प्रदेश बीजेपी अधयक् डॉ संजय जायसवाल ने भी कहा कि जातीय जनगणना के सभी पहलुओं पर केंद्र सरकार विमर्श कर रही है , इसके बाद इस पर कोई निर्णय लिया जाएगा ।
यानी समग्ता में समझें तो जातीय जनगणना तथा जनसंखया नियंत्ण कानून के मुद्े पर एनडीए में नूरा-कुशती जारी है । जानकारों का मानना है कि जनसंखया नियंत्ण कानून भले ही हाशिए पर जा सकता है किंतु जातीय जनगणना का जिन्न तो राजनीतिक दलों को सताता ही रहेगा , कयोंकि भारतीय समाज में जाति का वजूद जलद खतम होता नहीं दिख रहा है । वैसे भी , देश के अखबारों में छपने वाले वैवाहिक विज्ापन देख लीजिए । लोग 21वीं सदी में भी अपनी ही जाति के वर-वधू ढूंढते हैं । जाति समाज पर किस हद प्रभावी है , इसे समझने को यह काफी है । फिर राजनीति इससे अछूती कैसे रह सकती है । �
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