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वास्विक चुनौतियदों से बेखबर बिहार के राजनेता
जातिगत जनगणना की मांग , जनसंख्ा नियंत्रण का विरोध राजनीतिक लाभ के लिए जातीय उन्ाद भड़काने का प्यास
मनीष कुमार
जहां एक ओर भारत के बीजेपी शासित राजयों में आबादी पर नियंत्ण के लिए कानून बनाने की पहल हो रही है तो बिहार में बीजेपी के साथ शासन कर रहे मुखयमंत्ी नीतीश कुमार जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं । आखिर कयों ? बिहार में बीजेपी के साथ सरकार चला रहे मुखयमंत्ी नीतीश कुमार जनसंखया नियंत्ण कानून को गैर जरूरी बताकर जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं । केंद्र सरकार के साफ इनकार के बावजूद उनहोंने प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी को पत् भी लिखा है और उनसे मिलने का इंतजार कर रहे हैं । इसे लेकर राषट्ीय जनता दल ( राजद ) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के फिर मुखर होने से सियासत तेज हो गई है । बिहार में एनडीए सरकार की प्रमुख सहयोगी भाजपा पसोपेश में है और वह पार्टी की रणनीति के तहत जनसंखया नियंत्ण कानून की हिमायत कर रही है । दरअसल , सारा खेल अनय पिछड़ी जातियों के वो्ट बैंक का है । इनकी आबादी 52 फीसद बताई जाती है । राजनीतिक दलों के बीच ओबीसी के सच्चे हितैषी का केलड्ट लेने की होड़ लग गई है ।
अंग्ेजों के शासन में आखिरी जातीय जनगणना भारत में आखिरी बार 1931 में जातिगत
आधार पर जनगणना की गई थी । लद्तीय विशवयुद्ध लछड़ जाने के कारण 1941 में आंकड़ों को संकलित नहीं किया जा सका था । आजादी
के बाद 1951 में इस आशय का प्रसताव ततकालीन केंद्र सरकार के पास आया था , लेकिन उस समय ग्रह मंत्ी रहे सरदार वललभ भाई
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