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पिछड़ों एवं दलितों के दोषीः राहुल गांधी
2024
में होने वाले आम चुनाव हेतु नरेंद्र मोदी का सामना करने के लिए राहुल गांधी को और भी अधिक गंभीर होना जरूरी है । किंतु लगता है कि उनके सलाहकार उनहें इससे अधिक गंभीर होने नहीं देंगे । जब जब जनता के मन में राहुल गांधी के लिए संवेदनशील भाव आते हैं , तो उनसे कुछ ऐसा कहलाकर सब नष्ट कर दिया जाता है । अपनी भाषा और कथित आरोपों के अहंकार में लोकसभा से निषकालशत कांग्ेस के पूर्व सांसद राहुल गांधी को अपनी गलतियों को कभी सवीकार नहीं करने दिया जाता है और न ही उन गलतियों से कभी कोई शिक्ा लेने दिया जाता हैं । संसद की सदसयता समापत होने उपरांत राहुल और उनके सहयोगी यह कुप्रचार कर रहे हैं कि प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी की सरकार की नीतियों के कारण दलित , पिछड़े एवं आदिवासीयों का जीवन सतर बिगड़ता जा रहा है । धरातल की ससिलतयों से बेखबर राहुल गांधी और उनके सलाहकार जो भी आरोप गत नौ साल से प्रधानमंत्ी मोदी और भाजपा पर लगते चले आ रहे हैं , वह सभी आरोप अंततोगतवा असतय ही सिद्ध होते रहे हैं । अपने असतय आरोपों के कारण राहुल गांधी कई बार नयायालय में जाकर माफी मांगने के लिए विवश भी हुए हैं । इसके बाद भी उनहोंने अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है ।
असतय आरोपों की श्र ंखला में राहुल ने पिछड़े वर्ग के विरुद्ध जो ल्टपपलणयां की हैं , उसके कारण दलित , पिछड़े और आदिवासी वर्ग में नाराजगी बढ़ रही है । भारतीय समाज का यह वह वर्ग है , जो प्रधानमंत्ी मोदी की नीतियों के कारण वासतव में लाभासनवत हुआ है और यह तथय दलित , पिछड़े और आदिवासी वर्ग के मधय जाकर वासतव में देखा और समझा जा सकता है । पिछड़े वर्ग के अपमान के मामले में फंसे कांग्ेस नेता राहुल यह भी समझ पाने में असहाय है कि उनकी पार्टी कांग्ेस द्ारा जाति-वर्ग को छलावे में रखने की राजनीति करते हुए दशकों तक सत्ा की मलाई का सेवन किया है ।
वासतव में देखा जाये तो भारतीय समाज में जाति नामक शबद प्राचीन काल से था ही नहीं । पहले विदेशी मुससलम आकांताओं और ततपशचात अंग्ेजों ने जाति शबद की उत्पलत की और फिर भारत के आसिावान हिनदू समाज को विभाजित करने की कुल्टल रणनीति का सहारा लिया , जिसमें वह सफल भी हुए । भारतीय धर्म ग्ंिों एवं अनयाय साहितयों के अनुसार देश में बारहवीं शताबदी के पहले मात् छत्ीस कार्य आधारित समुह थे । किंतु बारहवीं शताबदी के उपरांत भारत सरकार के वर्तमान गज्ट में लगभग साढ़े छह हजार जातियां और लगभग पचास हजार से अधिक उपजातियां हैं । भारतीय विद्ानों को सवाि्व आधारित नैरेल्टव गढ़ने के बजाय जातियों के निर्माण का मूल कारण खोजने की आवशयकता है ।
1947 में भारत को जब सवतंत्ता मिली , तो यह उममीद की जा रही थी कि नए भारत में जाति के उस कुचक को तोड़ने का प्रयास शीर्ष राजनेताओं और राजनीतिक दलों के माधयम से किया जायेगा , जिससे भारत के मूल सामाजिक समरसतापूर्ण समाज की सिापना पुनः हो सकेगी । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । देश के पहले कांग्ेसी प्रधानमंत्ी नेहरू जी ने अंग्ेजों के सत्ा अनुभव से सबक लेते
हुए जाति वयवसिा को इस तरह से भारत में पुष्ट किया कि जातिगत आधार पर देश के हर राजय में नए-नए सामाजिक एवं राजनीतिक संघठन खड़े होते चले गए । इन जाति आधारित संगठनों के कथित नेताओं का लक्य अपनी जाति का समपूण्व विकास और कलयाण कभी नहीं रहा और वो केवल कांग्ेस की कठपुतली बनकर सत्ा और सवलहत में ही लगे रहे । नेहरू जी ने जाति को सत्ा से जिस तरह जोड़ दिया था , उसका अनुसरण शीमती इंदिरा गांधी ने भी किया । आखिर कया कारण है कि वषषों तक " गरीबी ह्टाओ " का नारा देने के उपरांत देश से गरीबी कयों नहीं समापत हुई ? आखिर कया कारण रहा कि संवैधानिक रूप से आरक्ण की सुविधा मिलने के बाद भी देश का दलित समाज सवयं को अभावग्सत महसूस करता रहा ? वह कौन से कारण हैं , जिनकी वजह से दलितों और जातिगत हितों के लिए जो नेता सामने आये , वह अपने समाज का समपूण्व विकास करने में असफल सिद्ध हुए ?
ऐसे अनेकानेक प्रश्ों का उत्र बहुत सपष्ट है । सवतंत्ता के बाद से कांग्ेस ने सवयं को सत्ा के केंद्र में रखने के लिए हिनदू समाज को जहां उच्च-निम्न जातियों में बां्ट दिया , वहीं विभिन्न पंथों एवं महजब की कट्टरता के आधार पर गैर हिनदू जनता को बां्ट कर कांग्ेस दलित , मुससलमों और ईसाई समूह की मसीहा बन गयी । कांग्ेस की हिनदू विरोधी रणनीति में हिनदू धर्म एवं संस्कृति के कट्टर विरोधी वामदलों ने भरपूर साथ दिया । परिणामसवरुप देश के हर राजय में यानी उत्र से दलक्ण तक और पूरब से पसशचम राजयों तक जातिगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लेने वाले विभिन्न राजनेता , राजनीतिक दल एवं संघठन का एक ऐसा जमावड़ा लग गया , जिसने जाति-पांति , पंथ , तुष्टिकरण , क्ेत्वाद एवं परिवारवाद के मुद्े से देश को बाहर निकलने नहीं दिया । दलितों के उतिान के नाम पर राजनीतिक दलों ने दलितों का इस तरह शोषण किया कि आज भी समपूण्व दलित वर्ग अपने अधिकारों के लिए लड़ रहा है , पर उनके अधिकार आज भी पूरी तरह उनहें नहीं मिल सके हैं । इसी कड़ी में अब राहुल गांधी का नाम जुड़ गया है और वह भी सपष्ट हो गया है कि दलित , गरीब और पिछड़े कांग्ेस के लिए वो्ट बैंक से जयादा कुछ नहीं है । इन वगषों का समर्थन अगर कांग्ेस को नहीं मिलता है तो खीजकर कांग्ेस सार्वजनिक रूप से इनका अपमान करने से पीछे नहीं रहेगी । राहुल गांधी भी उसी राह पर चल रहे हैं । कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि राहुल गांधी का उपयोग उनकी ही पार्टी के नेता अपने हितों एवं सवािषों के लिए कर रहे हैं । भाजपा के विरुद्ध राजनीतिक लड़ाई को वयसकतगत सतर पर ले जाना कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है । राहुल गांधी द्ारा किये गए पिछड़े वर्ग के अपमान के विषय को भाजपा संगठन ने पूरे देश में उठाने का जो निर्णय लिया है , वह सराहनीय और समयानुकूल है । देखना यह होगा कि कांग्ेस और उनके नेता दलित , पिछड़े और आदिवासी वर्ग के बार-बार सार्वजनिक अपमान करने की प्रवृत्ति से कब बाज आते हैं ? वैसे भी नरेंद्र मोदी जी के समक् राहुल गांधी के अलावा चुनौती के रूप में कोई एक ठोस चेहरा नहीं है । आवशयकता है कि राहुल गांधी अपने आप को संभालकर रखें , ताकि 2024 में मोदी जी को चुनौती दे सकें I
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