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हिजाब विवाद : दलित समाज के हितों पर आघात

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च राज्यों के विधानसभा चुनाव में लगभग सभी गैर — भाजपाई दलों द्ारा जिस मुद्दे को सबसदे अधिक भुनानदे का प्र्यास हुआ वह कर्नाटक के एक कोनदे में शैक्षणिक संस्ान में धार्मिक पहनािदे को सिीका्यनाता दिलानदे के बहानदे शुरू वक्या ग्या वह सांप्रदाव्यक विवाद था जिसदे सामान्य बोलचाल में हिजाब विवाद कहा ग्या । कहनदे को तो अनदेकों पार्टि्यां एक दूसरदे के विरुद्ध चुनाव मैदान में उतरी हुई हैं और इस बार हर राज्य में किंचित बहुकोणी्य बहुकोणी्य चुनावी मुकाबला हो रहा है लदेवकन हिजाब विवाद को तूल ददेकर भाजपा को राजनीतिक जाल में उलझानदे और सभी चुनावी राज्यों में भाजपा के पक्ष में एकजुट दिख रहदे दलित मतदाताओं को भ्रमित करनदे के लिए सभी दलों नदे मानो आपस में हाथ मिला्या हुआ है ।
वासति में ददेखा जाए तो दशकों बाद ऐसा सुअवसर आ्या जब पांच राज्यों के महतिपूर्ण चुनाव के लिए होनदेिालदे पहलदे चरण के मतदान सदे ठीक पहलदे तक चुनावी चर्चाओं के केनद्र में समाज के दलित वर्ग का हित और सशक्तकरण था । हर तरफ उनके हितों की बात ही हो रही थी । विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर सदे अनदेकानदेक वा्यददे किए जा रहदे ्दे । कोई चुनाव के बाद दलित व्यक्त को मुख्यमंत्ी बनानदे का विशिास दिला रहा था तो इसके जवाब में दलित व्यक्त को उपमुख्यमंत्ी का पद ददेनदे का वा्यदा सुनाई ददे रहा था । पंजाब में तो चुनाव सदे ठीक पहलदे चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में पहली बार दलित समाज के व्यक्त को
मुख्यमंत्ी का पद भी ददे वद्या ग्या । चुनाव शुरू होनदे सदे पहलदे तक ऐसा माहौल बन ग्या जिसमें सभी चुनावों राज्यों का दलित समुदा्य एकजुट और बदेहद सश्त दिखाई पड़ रहा था । अपनी आपसी उपजाती्य टकराव को विस्मृत कर पूरा दलित समाज अपनी अकसमता के लिए उठ खड़ा हुआ था और राजनीतिक गैर — बराबरी को दूर करतदे हुए अपनदे हक और अधिकार के लिए सचदेत दिख रहा था । इसमें सबसदे बड़ी बात ्यह दिख रही थी कि समूचा दलित समाज सम्य — सम्य पर सबको आजमानदे और सबसदे धोखा खाकर जागरूक होनदे के बाद इस बार पूरी तरह भाजपा के पक्ष में गोलबंद होता दिखाई पड़ रहा था ।
भाजपा के पक्ष में दलित समाज की ्यह गोलबंदी गैर — भाजपाई दलों को किसी भी प्रकार सदे रास नहीं आ रहा था । इसी कारण चुनावी चर्चा के केनद्र सदे दलित समाज के मुद्ों को हटाकर उनकी एकजुटता को प्रभावित करनदे के लिए हिजाब का ऐसा बवाल खड़ा कर वद्या ग्या जिसकी चुनावी राज्यों में कोई प्रासंगिकता ही नहीं है । लदेवकन हिजाब विवाद का राजनीतिक एवं चुनावी लाभ उठानदे और दलित समाज की एकजुटता को एक बार फिर उपजाती्य संघर्ष में विभाजित करनदे के उद्देश्य सदे उसी वर्ग नदे सभी चुनावी राज्यों में इस मुद्दे को आगदे करके निर्रथक आंदोलन खड़ा कर वद्या जो हर बार चुनाव के सम्य मतदाताओं को भ्रमित करनदे के लिए कोई ना कोई अकारण बवाल खड़ा करता आ रहा है । इससदे पहलदे पकशचम बंगाल के चुनावों में किसानों के नाम पर चलाए गए आंदोलन के
तहत भाजपा के विरुद्ध जनमत को उकसानदे के लिए आंदोलनजीवि्यों की टोली वहां पहुंच गई थी । महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव के सम्य आरदे के जंगलों को बचानदे के नाम पर बदे — सिरपैर का बदेमानी आंदोलन भाजपा के खिलाफ चला्या ग्या । इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव सदे पूर्व किसानों के हितों की रक्षा करनदे , उनहें उनकी उपज की उचित मूल्य दिलानदे और उनकी आ्य दो गुनी करनदे के उद्देश्य सदे केनद्र सरकार द्ारा बनाए गए कृषि कानूनों का विरोध करनदे नाम पर बड़ा आंदोलन खड़ा वक्या ग्या । हालांकि कहा ग्या कि ्यह गैर — राजनीतिक आंदोलन है , लदेवकन इसका मकसद भाजपा को अधिकतम राजनीतिक नुकसान पहुंचाना ही था ।
हालांकि ' आंदोलनजीवि्यों ' की इस मंशा को समझनदे के बाद ददेश के किसानों का भ्रम दूर करनदे के लिए प्रधानमंत्ी नरेन्द्र मोदी नदे कृषि कानूनों को वापस लदेकर इस पूरदे आंदोलन की जड़ खोद दी । किसानों के नाम पर भाजपा के खिलाफ राजनीतिक साजिश के तहत जिन शक्तियों नदे किसान संगठनों का आंदोलन खड़ा करा्या था उनकी मंशा पर पानी फिरता दिखा तो उनहोंनदे कर्नाटक के हिजाब विवाद को तूल ददेकर भाजपा की त्यशुदा चुनावी बढ़त को रोकनदे की कोशिश की है ताकि मुकसलम वोटों का ध्ुिीकरण की हो जाए और दलितों को एकजुट व सश्त होनदे का मौका भी ना मिल सके । हालांकि आज का दलित समाज जागरूक भी है और अपनदे हितों को लदेकर पूरी तरह सचदेत भी है । इसीलिए ्यही है कि हिजाब विवाद के षड्यंत् का कोई प्रभाव दलितों की भाजपा के पक्ष में एकजुटता पर नहीं पड़़ेगा । बहरहाल हिजाब विवाद का मतदाताओं पर कितना असर पड़ा इसकी वििदेचना तो चुनाव का परिणाम सामनदे आनदे तक होती रहदेगी । लदेवकन हिजाब विवाद को बहस के केनद्र में ला दिए जानदे का सीधा नुकसान ददेश के उस दलित समाज को हुआ है जिसदे दशकों के बाद चुनावी चर्चा के केनद्र में आनदे का मौका मिला था ।
ekpZ 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 3