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्टुकडों को 1026 में अफगयालनस्तान के गज़नधी शहर कधी जयामया मससजद कधी सीढ़ियों में लगवया्या । इसधी लु्ट़ेिे महमूद गजनवधी कया हधी रिशतेदयाि ्या सैयद सयालयाि मसूद । यह ्बड़ी सेनया लेकर 1031 में भयाित आ्या । सैयद सयालयाि मसूद एक सनकधी किसम कया धमया्मनध मुगल आक्रयान्ता ्या । महमूद गजनवधी तो ्बयाि-्बयाि भयाित आतया ्या लसफ्फ लू्टने के लिये और वयापस चलया जयातया ्या । लेकिन इस ्बयाि सैयद सयालयाि मसूद भयाित में विशयाल सेनया लेकर इसलिए आ्या ्या कि वह इस भूमि को “ दयारुल-इस्लाम ” ्बनयाकर रहेगया और इस्लाम कया प्रियाि पूरे भयाित में करेगया । जयालहि है कि तलवयाि के ्बल पर हधी यह होनया ्या ।
सैयद सयालयाि मसूद अपनधी सेनया को लेकर “ हिनदुकुश ” पर्वतमयालया को पयाि करके पयालकस्तान ( आज के ) के पंजया्ब में पहुंिया , पंजया्ब से लेकर उत्िप्रदेश के गयांगेय इलयाके को रौंदते , लू्टते , हत्या-्बलयात्कार करते सैयद सयालयाि मसूद अयोध्या के नज़दधीक सस्त ्बहियाइच तक आ ग्या । उसकया इियादया यहयां पर एक सेनया कधी छयावनधी और ियाजधयानधी ्बनयाने कया ्या । इस दौियान इस्लाम के प्रति उसकधी सेवयाओं को देखते हुए उसे “ गयाज़धी ्बया्बया ” कधी उपयालध दधी गई ।
इस मोड पर आकर भयाित के इतिहयास में एक विलक्षण घ्टनया घल्टत हुई । ज़ाहिर है कि इतिहयास कधी पुसतकों में जिसकया कहीं जिक्र नहीं लक्या ग्या है । इस्लामधी खतरे को देखते हुए पहलधी ्बयाि भयाित के उत्तरी इलयाके के हिनदू ियाजयाओं ने एक विशयाल गठ्बनधन ्बनया्या , जिसमें 17 ियाजया सेनया सहित शयालमल हुए और उनकधी संगठित संख्या सैयद सयालयाि मसूद कधी विशयाल सेनया से भधी ज्यादया हो गई । जैसधी कि हिनदुओं कधी परम्परा रहधी है , सभधी ियाजयाओं के इस गठ्बनधन ने सयालयाि मसूद के पयास संदेश भिजवया्या कि यह पलवत् धरतधी हमयािधी है और वह अपनधी सेनया के सया् चुपियाप भयाित छोडकर निकल जयाए अथवया उसे एक भ्यानक युद्ध झेलनया पड़ेगया । गयाज़धी मसूद कया जवया्ब भधी वहधी आ्या जो कि अपेक्षित ्या , उसने कहया कि इस धरतधी कधी सयािधी ज़मधीन खुदया कधी है , और वह जहयां ियाहे वहयां रह सकतया है । यह उसकया धयालम्मक कर्तव् है कि वह सभधी को इस्लाम
कया अनु्या्धी ्बनया्े और जो खुदया को नहीं मयानते उनहें काफ़िर मयानया जयाए ।
उसके ्बयाद ऐतिहयालसक ्बहियाइच कया युद्ध हुआ , जिसमें संगठित हिनदुओं कधी सेनया ने सैयद मसूद कधी सेनया को धूल ि्टया दधी । इस भ्यानक युद्ध के ्बयािे में इस्लामधी विद्वान शेख अबदुि रहमयान चिश्ती कधी पुसतक मधीि-उल-मसूिधी में विस्तार से वर्णन लक्या ग्या है ।
उनहोंने ललिया है कि मसूद 1033 में ्बहियाइच पहुंिया , त्ब तक हिनदू ियाजया संगठित होनया शुरु हो चुके थे । यह भधीषण रकतपयात वयालया युद्ध मई-जून 1033 में लड़ा ग्या । युद्ध इतनया भधीषण ्या कि सैयद सयालयाि मसूद के किसधी भधी सैनिक को जधीलवत नहीं जयाने लद्या ग्या , यहयां तक कि युद्ध ्बंदियों को भधी मयाि ियालया ग्या । मसूद कया समूचे भयाित को इस्लामधी रंग में रंगने कया सपनया अधूिया हधी रह ग्या ।
्बहियाइच कया यह युद्ध 14 जून 1033 को समयापत हुआ । ्बहियाइच के नज़दधीक इसधी मुगल आक्रयांतया सैयद सयालयाि मसूद ( त्याकथित गयाज़धी ्बया्बया ) कधी कब् ्बनधी । ज्ब लफिोज़शयाह तुगलक कया शयासन समूचे इलयाके में पुनर्स्थापित हुआ , त्ब वह ्बहियाइच आ्या और मसूद के ्बयािे में जयानकयािधी पयाकर प्रभयालवत हुआ और उसने उसकधी कब् को एक विशयाल दरगयाह और गुम्बज कया रूप देकर सैयद सयालयाि मसूद को “ एक धमया्मत्मा ” के रूप में प्रियारित करनया शुरु लक्या । एक ऐसया इस्लामधी धमया्मत्मा जो भयाित में इस्लाम कया प्रियाि करने आ्या ्या । मुगल कयाल में धधीिे-धधीिे यह किंवदंतधी कया रूप लेतया ग्या और कयालयानति में सभधी लोगों ने इस “ गयाज़धी ्बया्बया ” को “ पहुंिया हुआ पधीि ” मयान
लल्या त्या उसकधी दरगयाह पर प्रतिवर्ष एक “ उर्स ” कया आयोजन होने लगया , जोकि आज भधी जयािधी है ।
इस समूचे घ्टनयाक्रम को यदि ध्यान से देिया जया्े तो कुछ ्बयातें मुख् रूप से सपष्ट होतधी हैं-
1 . महमूद गजनवधी के इतने आक्रमणों के ्बयावजूद हिनदुओं के पहलधी ्बयाि संगठित होते हधी एक क्रूर मुससलम आक्रयांतया को ्बुिधी तरह से हिया्या ग्या अ्या्मत यदि हिनदू संगठित हो जयाएं तो उनहें कोई रोक नहीं सकतया ।
2 . एक मुगल आक्रयांतया जो भयाित को इस्लामधी देश ्बनयाने कया सपनया देखतया ्या , आज कधी तयािधीि में एक “ पधीि-शहधीद ” कया दजया्म पयाए हुए है और दुषप्रियाि के प्रभयाव में आकर मूर्ख हिनदू उसकधी मज़ार पर जयाकर मत्था ्ट़ेक रहे हैं ।
3 . एक इतनया ्बड़ा तथ् कि महमूद गजनवधी के एक प्रमुख रिशतेदयाि को भयाित कधी भूमि पर समयापत लक्या ग्या , इतिहयास कधी पुसतकों में सिरे से हधी गया््ब है । जो कुछ भधी उपलबध है इं्टिने्ट पर हधी है ,
इस सम्बनध में रोमिलया ्यापर कधी पुसतक “ दरगयाह ऑफ़ गयाजधी इन ्बहियाइच ” में उललेि है । एन्नया सुवोरोवया कधी एक और पुसतक “ मुससलम सें्टस ऑफ़ सयाउथ एलश्या ” में भधी इसकया उललेि मिलतया है । जो हिनदू उस दरगयाह पर जयाकर अभधी भधी स्वासथ् और शयािधीरिक तकलीफ़ों सम्बन्धी त्या अन् दुआएं मयांगते हैं , उनकधी खिल्ली सव्ं “ हमयािे महयान सनत क्बधीि दयास , दयादू द्याल और गुरु नयानक देव ” भधी उड़ा चुके हैं । दयादू दुलन्या ्बयाविधी , क्बिें पूजे उत । जिनको कधीड़े िया चुके , उनसे मयांगे पूत । �
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