के पास और दलित-पिछड़े मेरे साथि बैठें ।
बात घूम फिर कर फिर वहीं आती है कि आखिर दलितों का एक वर्ग मायावती को छोड़कर कयों गया ? समाजशा्त्ी डॉ . सुधा पई नरेंद्र मोदी , अमित शाह , भाजपा और राषट्रीय ्ियंसेवक संघ की 2014 की रणनीति की परोक्ष रूप से ि्दीक ही करती हैं । उनके
मुताबिक बसपा मानवीय ऑकसीिन ( दलित समथि्शन ) के बिना ही राजनीतिक एवरे्ट पर चिढ़ गई । इसलिए उस ऊंचिाई पर टिक नहीं पाई । उनका मानना है कि विचिारधारा की दृशषट से दलित राजनीति अब कांशीराम के बाद के युग में पहुंचि गई है । अब राजनीतिक रशकि उसके लिए सुपर मैग्ेट नहीं होगी , कुछ और होगा ।
मुताबिक दलित राजनीति में बदलाव के दो कारण हैं । पहला , अस्मिा की राजनीति कमजोर पड़ रही है । दूसरा , विकास की आकांक्षा बढ़ना । उनहोंने दलित समाज में बनी इस राजनीतिक खेमेबंदी को आंबेडकरवादी दलित बनाम हिंदुतििादी दलित का नाम दिया । वह कहती हैं कि भाजपा हिंदुति की अस्मिा के तहत इस वर्ग का सामाजिक समावेशन कर रही है । दलित तचिंतक डॉ . चिंद्रभान का अलग ही मत है । उनके
कया ? यह वह नहीं बताते ।
उत्र प्देश की दलित राजनीति की तुलना बिहार और पंजाब से नहीं हो सकती , कयोंकि तीनों राजयों में परिस्थितियां ही नहीं , दलित समाज की संरचिना में भी अंतर है । पंजाब में दलित समाज इतनी जयादा जातियों में नहीं बंटा , जितना उत्र प्देश में । वहां बड़ा बंटवारा सिख और गैर सिख दलितों का है । जातियों की संखया कम होने के बावजूद वे कभी राजनीतिक रूप
से एक नहीं होतीं । बिहार में दलित राजनीति खासतौर से बसपा की राजनीति की धुरी यानी जाटवों की संखया बहुत कम है । यही कारण है कि बाबू जगजीवन राम जयादातर कम अंतर से ही लोकसभा चिुनाव जीतते थिे । बिहार में दलितों में प्भावशाली जाति पासवान है ।
रामविलास पासवान लंबे समय तक उसके नेता रहे । उनके निधन के बाद परिवार में बंटवारा और पाटजी पर कबिे की लड़ाई चिल रही है । उनके बेटे तचिराग पासवान को यदि पिता की राजनीतिक विरासत हासिल करनी है तो सड़क पर उतरकर लंबे संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा । लगता नहीं कि वह ऐसा कर पाएंगे । एक बात यह कही जा सकती है कि दलित राजनीति देश की मुखयधारा में आ रही है । मुखयधारा से आशय यह है कि वह किसी एक नेता , पाटजी या विचिारधारा की बंधुआ नहीं रह गई है । दलित समाज अपना सामाजिक , राजनीतिक और आतथि्शक हित देखकर फैसला करने में सक्षम हो गया है । वह मुसलमानों की तरह अपने ही समाज के उन तचिंतकों के भुलावे में आने को तैयार नहीं है कि भाजपा उनकी दु्मन है । यही कारण है कि भाजपा और गैर जाटव दलितों का गठबंधन पिछले सात साल में कमजोर नहीं हुआ है ।
( साभार ) tqykbZ 2021 Qd » f ° f AfaQû » f ³ f ´ fdÂfIYf 39