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ममता की हि ंसा और दलित
पश्चिम बंगाल की स्थिति लगातार बिगड़ रही है । सत्ा प्ायोजित हिंसा को लेकर ममता सरकार मूक दर्शक बनी हुई है । विधानसभा चिुनाव के बाद से ही पुलिस-प्रासन के प्तयक्ष और अप्तयक्ष सहयोग से दलित-आदिवासी समाज के विरुद्ध भय का वातावरण बनाया जा रहा है । सिर्फ राजनीतिक विरोध के लिए भाजपा समथि्शकों की हतया , लूट और उतपीड़न का सहारा लिया जा रहा है । हिंसा को लेकर ममता सरकार द्ारा की जा रही एकतरफा राजनीति पर नयायालय भी आश्चर्य वयकि कर चिुका है । चिुनाव हारने के बाद मुखयमंत्ी पद पर कब्ा करने वाली ममता बनिजी अपनी वयशकिगत खामियों , कमियों और गलतियों पर निगाह डालने के स्थान पर केनद्र सरकार के विरुद्ध अनर्गल प्लाप करने में लगी हुई हैं । इसके लिए वह उन संवैधानिक मर्यादाओं को भी ताक पर रख चिुकी हैं , जिनका अनुपालन करना हर राजनेता के लिए आि्यक होता है । संवैधानिक पद पर आसीन राजयपाल की सलाह , सुझाव और तनददेश को भी दरकिनार करके ममता ने यह दर्शा दिया है कि वह सत्ा के लिए किस हद तक जा सकती हैं । हालांकि देश में कई अवसरों पर ऐसे हालात पैदा हुए हैं , जिसमें मुखयमंत्ी और राजयपाल के बीचि मतभेद सामने आए , लेकिन इसके बाद भी संवैधानिक मर्यादाओं का पालन किया गया । इसके विपरीत पश्चिम बंगाल में मर्यादायें टूट चिुकी हैं । एक वर्ग विशेष के लिए पूरे समाज को दरकिनार करके ममता सरकार ने पूरे राजय में भय का जो माहौल बना दिया है , उसकी कलपना चिुनाव से पहले शायद ही किसी ने की होगी । उच्च नयायालय ने सरकार और पुलिस पर जिस तरह की टिपणणी की है , उससे यह तो सिद्ध हो गया है कि राजय में गरीब , दलित , आदिवासी वर्ग की जनता के साथि हुई हिंसा के लिए ममता सरकार पूरी तरह से दोषी है और हिंसा को रोकने के लिए राजय सरकार ने अपने कर्तवयों का पूरी ईमानदारी के साथि निर्वाह नहीं किया ।
किसी भी लोकताशनत्क वयि्थिा में मर्यादा को धयान में रखते हुए ही नेतृति को अपना वयिहार निर्धारित करना होता है । आम जनता के साथि किसी भी सरकार से पक्षपात पूर्ण वयिहार की अपेक्षा नहीं की जा सकती है । मुखयमंत्ी पद पर बैठने वाला सिर्फ किसी एक राजनीतिक दल का नहीं होता है । ऐसे में मुखयमंत्ी जैसे जिममेदार पद पर बैठी ममता बनिजी का एकतरफा वयिहार कई प्श्ों को जनम देता है । प्श् यह भी है कि तृणमूल कांग्ेस की सुप्ीमो राजय में हो रही हिंसा को राजनीतिक नजरिए
से कयों देख रही हैं ? उनहोंने राजयपाल जैसे संवैधानिक पद की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया है । अगर ममता बनिजी को राजयपाल की किसी बात पर असंतोष है , तो भी उनका नाराजगी वयकि करने का अंदाज सभय होना चिाहिए । देखा जाये तो राजनीतिक विद्ेष की अवधारणा को अंगीकार करने वाली ममता बनिजी ने जिस प्कार की राजनीति कर रही हैं , वह संवैधानिक मर्यादाओं का खुला उललंघन ही माना जाएगा । राजयपाल किसी भी प्देश का संवैधानिक मुखिया होता है । राजय का प्रथम नागरिक होने के कारण यह राजयपाल का संवैधानिक दायिति होता है कि वह राजय की राजनीतिक सत्ा का संचिालन करने वाले मुखयमंत्ी को उतचिि समय पर मार्गदर्शन करता रहे । लेकिन वोट बैंक के लिए ममता बनिजी ने संविधान , राजयपाल , प्धानमंत्ी जैसे पदों की गरिमा को खंडित किया है । पश्चिम बंगाल में संसदीय मर्यादा एक तमाशा बन गई है । राजय में गरीब , दलित और आदिवासी जनता के साथि हो रही हिंसा को देखने के बाद नयायपालिका ने जिस तरह से सखि रूख अपनाया है , उससे हिंसा पीड़ित लोगों में उममीद सिर्फ नयायालय से ही बचिी है ।
बंगाल में जारी भयादोहन के बीचि प्धानमंत्ी नरेंद्र मोदी ने मंतत्मणडल में परिवर्तन करके पूरी दुनिया का यह सनदेर दिया है कि भारत में जाति , वर्ग या धर्म के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव ्िीकार नहीं है । मोदी सरकार की प्राथमिकता भारत के समपूण्श समाज का समग् विकास है । ऐसे में भारतीय समाज की विविधता कोई कमजोरी नहीं , बशलक एक बड़ी रशकि है । केंद्रीय मंतत्मणडल में देश के प्तयेक क्षेत् , वर्ग और जाति का प्तिनिधिति देखा जा सकता है । विविधता में एकता की परिकलपना को मजबूत करने वाले प्धानमंत्ी मोदी ने उत्र से लेकर दक्षिण एवं पूर्व से लेकर पश्चिम तक सभी राजयों को मशनत्मंडल में प्तििनधिति देने का प्यास किया है । पिछड़ों व अनुसूतचिि समाज के साथि ही महिलाओं को समुतचिि प्तिनिधिति देने के साथि युवाओं को भी यथिासंभव स्थान दिया गया है । परिवर्तन का मूल लक्य केंद्र सरकार को और गति प्दान करना है , जिससे समग् विकास के एजेंडे पर गतिपूर्वक कार्य किया जा सके । विकसित भारत का लक्य लेकर चिल रही मोदी सरकार अपने एजेंडे को लेकर ्पषट है और लक्य को हासिल करने के लिए ईमानदारी के साथि कार्य कर रही है ।
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