'' राजनीतिक-सामाजिक लोकतंत्र की हत्ा के लिए याद रहेगी कांग्ेस ''
अक्म् शाह
आपातकाल को भारत के लोकतांतत्क इतिहास में एक काले अधयाय के रूप में याद किया जाता है । भारत का लोकतंत् मजबूत हो और इस अधयाय की कभी पुनरावृतत् न हो , कयोंकि भारत में लोकतंत् की परंपरा का इतिहास सदियों पुराना है । प्राचीन समय में कई ऐसे राजय हुए जिनकी शासकीय प्णाली में प्िातांतत्क मूलयों के आदर्श पढ़ने को मिलते हैं । लिचछिी , कंबोज सहित मौर्य काल में ककंलग आदि इसमें अग्णी हैं । कालरिम में भारत की शासकीय प्णाली से लोकतांतत्क मूलयों का सर्वाधिक क्षय उस बड़े कालखंड में हुआ , जब विदेशी आरिांिाओं के हाथिों में भारत के अलग-अलग भूभागों के शासन की बागडोर आई ।
आजादी मिलने के बाद भारत आधुनिक लोकतंत् के रूप में पूर्ण गणराजय बना । शासन की बागडोर जनता द्ारा चिुनी हुई सरकार के हाथिों में आई । ्ििंत्िा आंदोलन की कोख से निकली कांग्ेस को ्िाभाविक तौर पर देश की शासन वयि्थिा का प्तिनिधिति करने का अवसर मिला । इस दौर में देश के सामने लोकतंत् के भविषय और जनता के मौलिक अधिकारों को लेकर अनेक सवाल थिे । इन सवालों के जवाब ततकालीन कांग्ेस सरकार की नीतियों पर आतश्ि थिे । ये सवाल इसलिए भी खड़े हुए , कयोंकि महातमा गांधी की हतया के बाद तथयहीन और मिथया आरोप के आधार पर नेहरू सरकार ने ‘ प्तिबंध ’ का पहला प्योग राषट्रीय ्ियंसेवक
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