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भारत राष्ट्र को हमेशा सर्वोपरि माना डॉ आं बेडकर ने हिन्दू समाज में मध्यकाल तक नहीं थी अस्ृश्यता क्र्देशी मुस्लिम आकांताओ ंने क्र्भति किया हिन्दू समाज को

सुविधा के हिसाब से हर कोई डॉ . अमबेडकर को अपने अपने राजऩीलतक

तऱीके से परिभाषित करने में लगा हुआ है , लेकिन सच तो यह है कि डॉ . अमबेडकर का पूरा संघर्ष हिंदू समाज ओर रा्ट्र के सशक्तीकरण का ह़ी था । डॉ . अमबेडकर के चिनतन और दृष्ट को समझने के लिए यह धयान रखना जरूऱी है कि वे अपने चिनतन में कहीं भ़ी दुराग्ह़ी नहीं है । उनके चिनतन में जडता नहीं है । डॉ अमबेडकर का दर्शन समाज को गतिमान बनाए रखने का है । हिंदू समाज के इस सशक्तीकरण क़ी यात्ा को डॉ . अमबेडकर ने आगे बढाया , उनका दृष्टकोण न तो संकुचित था और न ह़ी वे पक्पात़ी थे । दलितों को सशकत करने और उनहें लशलक्त करने का उनका अभियान एक तरह से हिंदू समाज ओर रा्ट्र को सशकत करने का अभियान था । उनके द्ारा उठाए गए सवाल जितने उस समय प्रासंगिक थे , आज भ़ी उतने ह़ी प्रासंगिक है कि अगर समाज का एक बडा हिससा शलकतह़ीन और अलशलक्त रहेगा तो हिंदू समाज ओर रा्ट्र सशकत
कैसे हो सकता है ? यह तथय भाजपा के पूर्व सासंद एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के पूर्व अधयक् डॉ विजय सोनकर शासत्री ने सामने रखा । डॉ शासत्री ( इंदौर ) महू लसथत डाँ ब़ी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ान विशिलिद्ािय में गत 6 दिसंबर को आयोजित डाँ आंबेडकर : वैचारिक समरण पखवाडे में आयोजित एक कार्यक्रम में उपलसथत लोगों को समबोलित कर रहे थे ।
डॉ आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस में आयोजित कार्यक्रम में डॉ शासत्री ने कहा कि डॉ . अमबेडकर का मत था कि जहां सभ़ी क्ेत्ों में अनयाय , शोषण एवं उतप़ीडन होगा , वहीं
सामाजिक नयाय क़ी धारणा जनम लेग़ी । आशा के अनुरूप उतर न मिलने पर उनहोंने 1935 में नासिक में यह घोषणा क़ी , वे हिंदू नहीं रहेंगे । अंग्ेज़ी सरकार ने भले ह़ी दलित समाज को कुछ कानूऩी अधिकार दिए थे , लेकिन डॉ अमबेडकर जानते थे कि यह समसया कानून क़ी समसया नहीं है । यह हिंदू समाज के भ़ीतर क़ी समसया है और इसे हिंदुओं को ह़ी सुलझाना होगा । वे समाज के विलभन् िगगो को आपस में जोडने का कार्य कर रहे थे । डॉ अमबेडकर ने भले ह़ी बौद्ध धर्म स्वीकार करने क़ी घोषणा कर द़ी थ़ी । लेकिन ईसाई या इसिाम से खुला निमंत्ि मिलने के बावजूद उनहोंने इन विदेश़ी
tuojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 5