eMag_Jan2022_DA | Page 3

laikndh ;

मोदी से ही आस , मोदी पर ही विश्वास

ns

श के दलित समाज के साथ सबसे बड़ी विडंबना यह रह़ी है कि समय — समय पर इसने सबको आजमाया , सबको अपनाया । लेकिन , कोई भ़ी इस समाज का सह़ी माअर्थ में हितचिंतक एवं शुभचिंतक प्रमाणित नहीं हुआ । हर किस़ी ने दलित समाज को केवल वोट बैंक क़ी तरह उपयोग किया और वोट लेने के लिए अनेकों तिकडमें क़ी , हर तरह का सिांग रचा लेकिन वोट पाने के उपरांत इसको इसके हाल पर छोड दिया । यह आज क़ी ह़ी बात नहीं है बल्क बाबा साहब डॉ भ़ीमराव आंबेडकर को कांग्ेस क़ी इस़ी दोहऱी ऩीलत ने विवश किया जिसके कारण उनहें अलग राजऩीलतक दल का गठन करके चुनाव मैदान में उतरना पडा । बाबा साहब के बाद क़ी प़ीढ़ी के नेताओं पर यदि दृष्टपात किया जाय तो हर राजय में दलित वोट बैंक क़ी राजऩीलत करने के लिए क्ेत्रीय दलों का उभार हुआ लेकिन उन दलों ने दलित समाज का पोषण करने के सथान पर निज़ी राजऩीलतक लाभ के लिए उनका भरपूर शोषण ह़ी किया । जबकि दलित वर्ग के लोगों ने आंखे मूंद कर अपने नेताओं का ना केवल दलगत स़ीमा में रहते हुए समर्थन किया बल्क नेताओं द्ारा वोट क़ी सौदेबाज़ी किए जाने के बाद उनके कहने पर भाजपा के पक् में भ़ी मतदान करने से दलित वर्ग के लोग नहीं संकोच नहीं किया ।
लेकिन , इसके बदले में दलित वर्ग को कया मिला ? बिहार में जिसे दलित वर्ग ने अपना मस़ीहा माना उसने अपने परिवार के अलावा समाज के किस़ी भ़ी दलित साथ़ी को आगे बढने का रासता नहीं दिया । यहां तक कि जब इककस़ीिीं सद़ी क़ी शुरूआत में ह़ी उनके हाथों में सत्ा क़ी चाब़ी आई तो उनहोंने दलित के बजाय मुलसिम को मुखयमंत्री बनवाने क़ी जिद ठान द़ी जिसके नत़ीजे में बिहार में किस़ी क़ी सरकार नहीं बन सक़ी और मधयािलि चुनाव हुआ जिसमें उनके हाथों से सत्ा क़ी चाब़ी छिटक गई । ऐसा ह़ी यूप़ी में
हुआ जहां दलित क़ी बेट़ी कहलाने वाि़ी ने ना सिर्फ अपने कृतिति से खुद को हमेशा दौलत क़ी बेट़ी ह़ी दर्शाया बल्क दलित समाज के किस़ी भ़ी वयलकत को इतना आगे आने का मौका ह़ी नहीं दिया कि वह भवि्य में उनका उत्राधिकाऱी बन सके । अलबत्ा जब उनहें अपने सबसे कऱीब़ी सिपहसालार क़ी नियुलकत करऩी थ़ी तो उनहोंने दलित के बजाय एक ब्ाह्मण जाति के वयलकत पर विशिास दिखाया जिसने दलित समाज के समर्थन से हासिल राजऩीलतक शलकत का केवल अपने परिवार का हित करने में उपयोग किया । इस़ी प्रकार सबसे अधिक दलित जनसंखया वाले राजय पंजाब में तो दलित नेतृति को कभ़ी पनपने ह़ी नहीं दिया गया और इस बार भ़ी अपने सबसे बुरे वकत में जब कांग्ेस ने चरणज़ीत सिंह चन्नी को दलित चेहरे के तौर पर आगे आने का मौका भ़ी दिया तो लगे हाथों यह घोषणा भ़ी कर दिया कि चुनाव के बाद इनके बजाय नवजोत सिंह सिद्धू को ह़ी पाटटी अपना चेहरा बनाएग़ी ।
हालांकि दलित समाज क़ी मासूमियत और स़ीिेपन का सदैव अनुचित लाभ ह़ी उठाया गया लेकिन अब देश के दलित समाज में आई जागृति और नई चेतना ने लाभ उठाने वालों क़ी कलई खोलकर रख द़ी है । यह़ी वजह है कि सतह़ी तौर पर देश क़ी दलित राजऩीलत नेतृति विह़ीन दृष्टगत हो रह़ी है और अब तक सियं को दलितों का मस़ीहा बताने वाले जम़ीऩी सतर पर जनता के ब़ीि विशिास खो चुके हैं । ऐसे में दूर से देखने पर तो यह़ी आभास हो रहा है कि दलित समाज राजऩीलतक तौर पर एकजुट नहीं है और उनहें विशिास क़ी डोर में एक साथ बांध कर रखनेवाला उनका कोई नेता ह़ी नहीं है । लेकिन निकट से परखा जाए तो देश के दलित समाज में जितऩी राजऩीलतक जागरूकता और सह़ी — गलत क़ी साफ समझ दिखाई पडत़ी है उतऩी सप्टता किस़ी अनय समाज में नहीं दिखत़ी । वर्ना कोई कारण नहीं था कि यूप़ी क़ी राजऩीलत में
दलित क़ी बेट़ी को सियास़ी शिखर से गिरकर शूनय पर सिमटने के लिए मजबूर होना पडता और बिहार में खुद को दलित वोटों का ठेकेदार समझनेवाले को शूनय पर आने के बाद ज़ीिनदान के लिए भाजपा क़ी शरण लेऩी पडत़ी और भाजपा के समर्थन से दोबारा अपऩी हनक कायम करने में उनहें सफलता मिलत़ी । यहां तक कि महारा्ट्र से लेकर गोवा तक में दलित राजऩीलत करनेवाले को अपना आलसतति बनाए रखने के लिए 2014 में ह़ी भाजपा क़ी शरण में आने के लिए विवश होना पडा और अब लसथलत यह है कि कांग्ेस को भ़ी ना केवल चन्नी के रूप में पंजाब में छद्म दलित याऩी इसाई को मुखयमंत्री क़ी नियुलकत करऩी पड़ी है बल्क यूप़ी और उत्राखंड में भ़ी उसे दलित केलनरित रणऩीलत बनाने के लिए विवश होना पडा है ।
इन सब बातों क़ी विवेचना क़ी जाए तो यह सप्ट हो जाता है कि देश के संपूर्ण दलित समाज ने अब अच्छी तरह समझ लिया है कि टुकडों में बंटकर क्ेत्रीय दलों के प़ीछे घूमने से उनका दोहन ह़ी होता रहेगा लेकिन यदि भाजपा का और विशेषरूप से प्रधानमंत्री नरेनरि मोद़ी का हाथ मजबूत किया जाए तो उनक़ी अनेकों आशाएं और आकांक्ाएं पूर्ण हो सकत़ी हैं । लिहाजा जब दलित वर्ग ने मोद़ी को शलकत द़ी तो मोद़ी ने भ़ी अपऩी सरकार गऱीबों और दलितों को समर्पित कर द़ी । मोद़ी सरकार में तमाम योजनाएं बनीं दलित वर्ग का हित सुरलक्त करने के लिए । हर योजना में समाज के अंतिम वयलकत का हित सुरलक्त किया गया । प्रधानमंत्री मोद़ी ज़ी ने खुद कुंभ में दलितों के चरण पखारे । उनके साथ जम़ीन पर बैठने से लेकर उनके साथ भोजन करने का भ़ी कोई अवसर प्रधानमंत्री मोद़ी ज़ी ने हाथ जाने नहीं दिया । यहां तक कि दलित वर्ग क़ी सुरक्ा सुलनलशित करने के लिए सुप्ऱीम कोर्ट के फैसले को संविधान संशोधन के द्ारा पलटने से भ़ी संकोच नहीं किया गया । ऐसे में दलित वर्ग का मोद़ी ज़ी के साथ जुडना सिाभाविक भ़ी है और अपेलक्त भ़ी । लेकिन जातिगत राजऩीलत करनेवाले लोग इस सच को जानने के उपरांत यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि दलितों ने मोद़ी ज़ी के रूप में अपना प्रतिनिधि चुन लिया है और उनहें अब केवल मोद़ी ज़ी से ह़ी आस भ़ी है और मोद़ी ज़ी पर ह़ी विशिास भ़ी है ।
tuojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 3